देशभर में भूकंप के झटकों से धरती लगातार हिलती रहती है। दिल्ली समेत देश के कई हिस्से ऐसे हैं, जहां भूकंप का आना तेजी से बढ़ा है। आंकड़ों की मानें तो तीन या उससे अधिक तीव्रता के देशभर में 2020 में ही सिर्फ 956 से अधिक भूकंप दर्ज किए गए। वहीं, दिल्ली-एनसीआर और उसके आस-पास के इलाकों में 13 भूकंप दर्ज किए गए।
यह जानकारी पृथ्वी विज्ञान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने संसद में दी। डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि हम भूकंप के जल्द वार्निग सिस्टम के लिए एक पायलट स्टडी करने जा रहे हैं। एक बार संस्तुति मिल जाने के बाद यह अध्ययन यूनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्वे के साथ मिलकर किया जाएगा। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की इकई नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी ने मैग्नेटोटेल्यूरिक जियोफिजिकल सर्वे शुरू किया है। यह सर्वे आईआईटी कानपुर और देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के साथ मिलकर किया जा रहा है। इसका उद्देश्य दिल्ली-एनसीआर में सिस्मिक स्रोतों को चिन्हित करना है। भूकंप विज्ञान केंद्र (एनसीएस) द्वारा देशभर में 115 भूकंप स्टेशनों का एक राष्ट्रव्यापी नेटवर्क संचालित किया जा रहा है। डॉ हर्षवर्धन ने बताया कि वर्ष 2021-22 के दौरान 35 अतिरिक्त फील्ड स्टेशन जोड़कर मौजूदा राष्ट्रीय भूकंप नेटवर्क को सुदृढ़ बनाने की योजना है। इस प्रकार भूकंप निगरानी करने वाले केंद्रों की संख्या बढ़कर 150 हो जाएगी। इससे चुनिंदा स्थानों पर छोटे भूकंपों का पता लगाने में सहायता मिलेगी।
भूकंपीय जोन
भूकंप के खतरे के हिसाब से देश को चार हिस्सों में बांटा गया है- जोन-2, जोन-3, जोन-4 तथा जोन 5। इनमें सबसे कम खतरे वाला जोन 2 है तथा सबसे ज्यादा खतरे वाला जोन-5 है। नार्थ-ईस्ट के सभी राज्य, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से जोन-5 में आते हैं। उत्तराखंड के कम ऊंचाई वाले हिस्सों से लेकर उत्तर प्रदेश के ज्यादातर हिस्से और दिल्ली जोन-4 में आते हैं। मध्य भारत अपेक्षाकृत कम खतरे वाले हिस्से जोन-3 में आता है, जबकि दक्षिण के ज्यादातर हिस्से सीमित खतरे वाले जोन-2 में आते हैं, लेकिन यह एक मोटा वर्गीकरण है। दिल्ली में कुछ इलाके हैं, जो जोन-5 की तरह खतरे वाले हो सकते हैं। इस प्रकार दक्षिणी राज्यों में कई स्थान ऐसे हो सकते हैं, जो जोन-4 या जोन-5 जैसे खतरे वाले हो सकते हैं। दूसरे जोन-5 में भी कुछ इलाके हो सकते हैं, जहां भूकंप का खतरा बहुत कम हो और वे जोन-2 की तरह कम खतरे वाले हों।
बार-बार झटके आखिर आते ही क्यों हैं?
जिन इलाकों में भूकंप का खतरा अधिक होता है, वहां सैकड़ों साल में धरती की निचली सतहों में तनाव बढ़ने लगता है। ऐसा टेक्टॉनिक प्लेटों के अपनी जगह से हिलने के कारण होता है, लेकिन तनाव का असर अचानक ही नहीं, बल्कि धीरे-धीरे होता है। पहले लंबे समय तक धरती शांत रहती है, फिर कुछ समय के लिए परतें हिलने लगती हैं और यही प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है। नेपाल उस जगह स्थित है, जहां धरती की परतों की गतिविधि सबसे ज्यादा है। यहां हर साल इंडियन प्लेट करीब चार सेंटीमीटर तक यूरेशियन प्लेट के नीचे खिसक जाती है। किसी भी महाद्वीप की प्लेट के लिए यह एक बहुत ही तेज गति है। हिमालय की बढ़ती ऊंचाई का भी यही कारण है।