प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं। पहला:- सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला), दूसरा:- उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी), तीसरा:- सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी)। दस महा विद्या : 1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4.भुवनेश्वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला। जानिए देवी भुवनेश्वरी के बारे में 5 रहस्य।
1. दस महाविद्याओं में से 5वीं महाविद्या भुवनेश्वरी देवी की जयंती भाद्रपद के शुक्लपक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है। ग्रहण, रंगों के त्यौहार होली, उजाले का प्रतीक दीवाली, महाशिवरात्रि, कृष्ण पक्ष एवं अष्टमी के दिन मुख्य रूप से भुवनेश्वरी देवी की पूजा की जाती है।
2. भुवनेश्वरी देवी को आदिशक्ति और मूल प्रकृति भी कहा गया है। भुवनेश्वरी ही शताक्षी और शाकम्भरी नाम से प्रसिद्ध हुई। कहते हैं कि इन्होंने दुर्गमासुर का वध किया था। इन्हें काल की जन्मदात्री भी कहा जाता है। इनके मुख्य आयुध अंकुश और पाश है। आदि शक्ति भुवनेश्वरी मां का स्वरूप सौम्य एवं अंग कांति अरुण हैं। भुवनेश्वरी के एक मुख, चार हाथ हैं। चार हाथों में गदा-शक्ति का एवं राजंदंड-व्यवस्था का प्रतीक है। माला-नियमितता एवं आशीर्वाद मुद्रा-प्रजापालन की भावना का प्रतीक है। आसन-शासनपीठ-सवोर्च्च सत्ता की प्रतीक है।
3. पुत्र प्राप्ती के लिए लोग भुवनेश्वरी देवी की आराधना करते हैं। भक्तों को अभय एवं सिद्धियां प्रदान करना इनका स्वभाविक गुण है।
4. इस महाविद्या की आराधना से सूर्य के समान तेज और ऊर्जा प्रकट होने लगती है। ऐसा व्यक्ति अच्छे राजनीतिक पद पर आसीन हो सकता है। माता का आशीर्वाद मिलने से धनप्राप्त होता है और संसार के सभी शक्ति स्वरूप महाबली उसका चरणस्पर्श करते हैं।
5. भुवनेश्वरी माता का मंत्र: स्फटिक की माला से ग्यारह माला प्रतिदिन ‘ह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नम:’ मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम किसी जानकार से पूछें।