नेहरू कभी भी किसी के सामने नहीं रोते तो क्या कोई और नहीं रो सकता!

दयानंद पांडेय

एक बहुत प्रसिद्ध जुमला है , नेहरू कभी भी किसी के सामने नहीं रोते। हुआ यह था कि जवाहरलाल नेहरू के चचेरे भाई बी के नेहरू ने एक अंगरेज औरत फोरी से किया था। 1935 में वो बी के नेहरू से शादी करने भारत आईं तो उन्हें जवाहरलाल नेहरू से मिलने के लिए कोलकाता ले जाया गया जहां वो अलीगंज जेल में बंद थे। जेल में जब मुलाकात का समय समाप्त हो गया और जेल का दरवाज़ा बंद होने लगा तो फोरी रोने लगीं। नेहरू ने फोरी का यह रोना देख लिया और फोरी को एक चिट्ठी लिख कर कहा , ‘अब जब तुम नेहरू परिवार का सदस्य बनने जा रही हो, तुम्हें परिवार के कायदे और क़ानून भी सीख लेने चाहिए। ” नेहरू ने लिखा था , ‘ सब से पहली चीज़ जिस पर तुम्हें ध्यान देना चाहिए वो ये है कि चाहे जितना बड़ा दुख हो, नेहरू कभी भी किसी के सामने नहीं रोते।” लेकिन कहते हैं कि चीन युद्ध के बाद प्रदीप के लिखे और लता मंगेशकर के गए गीत , ऐ मेरे वतन के लोगों , ज़रा आंख में भर लो पानी ! सुन कर नेहरू की आंख में पानी देखे गए थे। बस इस एक घटना के बाद या पहले किसी ने भी नेहरू को कभी रोते नहीं देखा।

नेहरू तो नेहरू , इंदिरा गांधी को भी फ़िरोज़ गांधी , नेहरू और फिर संजय गांधी की मृत्यु के बाद भी किसी ने कभी रोते नहीं देखा। संजय गांधी को भी किसी ने कभी रोते नहीं देखा। राजीव गांधी , सोनिया गांधी , राहुल गांधी या प्रियंका गांधी को भी कभी किसी ने रोते नहीं देखा। लेकिन तमाम अंतरराष्ट्रीय नेताओं समेत कई सारे भारतीय राजनेताओं को बार-बार रोते लोगों ने देखा है। प्रधान मंत्री नरेंद्र तो इतनी बार रोते हुए देखे गए हैं कि उन के तमाम विरोधी उन्हें अभिनेता कहते रहते हैं। राहुल गांधी ने तो एक बार कह दिया था कि नरेंद्र मोदी , अमिताभ बच्चन से भी बड़े अभिनेता हैं। वामपंथी दोस्त तो नरेंद्र मोदी की हर अच्छी बात में भी निगेटिव खोज लेते हैं। हां , जाने क्यों अभी तक न वामपंथी , न कांग्रेस , न कोई और विरोधी नरेंद्र मोदी के रोने में अडानी , अंबानी कनेक्शन खोज पाए हैं। हो सकता है , रिसर्च चल रही हो और कि आगे कभी नरेंद्र मोदी के रोने में अंबानी , अडानी कनेक्शन भी स्थापित कर दें।

लेकिन संवेदनशील लोग , बात-बेबात रो पड़ने वाले मुझ जैसे लोग जानते हैं कि नरेंद्र मोदी के रोने में अभिनय कभी नहीं होता , न दिखावा। स्वाभाविक रोना होता है। क्या एक राजनीतिज्ञ को रोने का अधिकार नहीं होता। भावुक होने का अधिकार नहीं होता। हां , साज़िश के सौदागरों को आंसू का मोल नहीं मालूम होता। यह बात मैं ज़रूर मानता हूं। और कल राज्यसभा में ग़ुलाम नबी आज़ाद के विदाई भाषण में नरेंद्र मोदी के घिग्घी बंध जाने , गला भर आने में , रोने में भी अगर किसी को अभिनय दिख गया हो तो उस की संवेदनशीलता पर मुझे कुछ नहीं कहना। आप खुद तय कर लीजिए। अमिताभ बच्चन के एक इंटरव्यू की याद आती है। मैं ने अमिताभ बच्चन से रोने के अभिनय के बारे में पूछा था तो वह बोले थे , ‘ मेरे रोने में सिर्फ़ अभिनय नहीं होता। कई बार मैं अपने जुड़ी कोई अप्रिय बात सोच लेता हूं और रो पड़ता हूं। सोचता हूं कई बार कि फ़िल्मों में इतनी बार रो चुका हूं कि कभी अपने माता-पिता की मृत्यु पर भी ठीक से रो पाऊंगा कि नहीं। क्यों कि सचमुच का रोना , अभिनय नहीं होता। ‘

गुजरातियों की कश्मीर में आतंकियों द्वारा हत्या पर ग़ुलाम नबी आज़ाद ने जो तब के गुजरात के मुख्य मंत्री का जो सहयोग किया था , जो संलग्नता दिखाई थी , उस के प्रति कृतज्ञता ही थी। उस कृतज्ञता में अगर गला भर आया , आवाज़ रुंध गई , रोना आ गया तो इस में बुरा क्या था। गुजरात की जनता के प्रति मोदी का समर्पण भाव था यह। अभिनय नहीं। सिर्फ़ रोना नहीं। संसद में पहले भी कई लोग रो चुके हैं। हां , लेकिन मोदी के खाते में रोना ज़्यादा दर्ज है। यह भी कि मोदी की तरह भी कभी कोई नहीं रोया अभी तक। फिर भी अगर आप इसे मोदी का अभिनय मानते हैं तो क्षमा कीजिए फिर आप अभिनय की इबारत भी नहीं जानते। संवेदना से तो आप का कोई रिश्ता ही नहीं है।

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