टीका लेने वाले 97 फीसद से अधिक लोगों ने अभियान को सराहा : डॉ. विनोद 

लखनऊ : भारत में कोविड-19 टीका लगवाने वाले 97 फीसद लोग अब तक इस टीकाकरण से संतुष्ट पाए गए हैं। यह जानकारी नीति आयोग के सदस्य और भारत सरकार के कोविड-19 टास्क फोर्स के प्रमुख डॉ. विनोद कुमार पॉल ने दी है। दुनिया के अब तक के सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रम के तहत भारत ने 66 लाख लोगों को कोविड-19 के टीके लगा दिए हैं। इनमें स्वास्थ्य कर्मी और फ्रंटलाइन कार्यकर्ता शामिल हैं, जिन्हें इसका खतरा ज्यादा है। ‘कैसे बढ़ाएं टीकाकरण पर भरोसा’ वेबिनार का आयोजन बुधवार को हार्वर्ड टी.एच. चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ- इंडिया रिसर्च सेंटर और प्रोजेक्ट संचार की ओर से किया गया था। इसमें भारतीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने कोविड-19 टीकाकरण पर भारतीय संदर्भ में चर्चा की।

नीति आयोग के सदस्य और भारत सरकार की कोविड-19 टास्क फोर्स, के अध्यक्ष डॉ. विनोद कुमार पॉल ने कहा कि भारत का टीकाकरण का अब तक का अनुभव बहुत सकारात्मक और उत्साहवर्धक रहा है। उन्होंने कहा, “टीकों को ले कर हिचकिचाहट अब बहुत तेजी से समाप्त हो रही है। दोनों टीके सर्वाधिक सुरक्षित टीकों में हैं। ये टीके लेने वाले 1500 लोगों में से सिर्फ एक  को टीकाकरण उपरांत समस्या हो रही है और वह भी बहुत हल्की।” देश की बड़ी आबादी को टीका उपलब्ध करवाने की भारत की रणनीति के बारे में उन्होंने कहा, “इतने बड़े कार्यक्रम के लिए भारत के आत्मविश्वास का आधार घरेलू टीकों की व्यापक उपलब्धता, टीकों के भंडारण और वितरण की विशाल ढांचागत सुविधाएं और ‘को-विन’ के रूप में एक समग्र आईटी समाधान है।”उन्होंने कहा कि को-विन टीकों की आपूर्ति, कोल्ड चेन की स्थिति और टीकों के भंडार पर नजर रखने के लिहाज से तो बेहद उपयोगी है ही साथ ही यह लाभार्थियों को टीके संबंधी सूचनाएं भी उपलब्ध करवा देता है।

नीति आयोग के सदस्य और भारत सरकार की कोविड-19 टास्क फोर्स, के अध्यक्ष डॉ. विनोद कुमार पॉल

भारत सरकार के जैव प्रोद्योगिकी विभाग की सचिव डॉ. रेणु स्वरूप ने कहा मानव संसाधन, ढांचागत सुविधाओं और टीकों के लिए उपयुक्त माहौल बनाने में किया गया भारत का प्रयास अब तक के इस टीकाकरण कार्यक्रम की सफलता की मुख्य वजह रहा है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा,“भारत में 5-6 टीके मंजूरी की प्रक्रिया में काफी आगे पहुंच चुके हैं। इनमें से दो टीके फेज-3 ट्रायल में हैं। जो टीके तैयार किए जा रहे हैं उनमें एक डीएनए आधारित टीका है जिसे कैडिला बना रही है। इसी तरह एक एमआरएनए आधारित टीका जिनोवा बना रही है, आरबीडी आधारित प्लेटफार्म पर बायो-ई का टीका तैयार हो रहा है और रूसी स्पुतनिक टीके का भारतीय साझेदारी में ट्रायल चल रहा है। भारत बायोटेक दूसरे टीकों के अलावा नाक से दिया जाने वाला टीका भी तैयार कर रहा है। कई दूसरे टीके भी प्री क्लीनिकल ट्रायल में काफी आगे बढ़ चुके हैं।” उन्होंने कहा, “जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है ‘मैत्री टीका आपूर्ति कार्यक्रम’ के माध्यम से जल्दी ही कई और टीके भी दुनिया भर के लोगों के लिए उपलब्ध होंगे।”

भारत सरकार की राष्ट्रीय टीकाकरण तकनीकी सलाहकार समूह (NTAGI) की कोविड-19 उप-समिति के प्रमुख डॉ. एन.के. अरोड़ा ने बताया कि भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) की ओर से 2019 में लिए गए फैसले के आधार पर आपात स्थिति में टीकों या दवाओं के उपयोग के लिए विशेष व्यवस्था की जा सकी है। उन्होंने कहा कि टीकों को ऐसी मंजूरी देते समय तीन तरह के आंकड़ों की जरूरत होती है- सुरक्षा, प्रभाव और प्रतिरक्षा या बाहरी तत्तों से लड़ने की शक्ति (इम्यूनोजेनेसिटी)। किसी टीके के ‘आपातकालीन उपयोग’ के लिए सिर्फ सुरक्षा और प्रतिरक्षा के आंकड़े पर्याप्त माने जाते हैं। यही पैमाना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य है। इस आधार पर भारत के कोवैक्सीन और कोविशिल्ड दोनों टीके उपयोग के लिए उपयुक्त हैं। अभी कोवैक्सीन के प्रभाव के आंकड़े आने बाकी हैं, लेकिन आम लोगों को निश्चिंत रहना चाहिए क्योंकि इसका एंटीबॉडी उत्पादन बहुत शानदार है और यह उपयोग के लिए पूरी तरह सुरक्षित है।”

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