महादेव के अर्द्धनारीश्वर रूप के बारे में आप सभी जानते ही होंगे। किसी ने पढ़ा होगा, किसी ने सुना होगा तो किसी ने कही देखा होगा। वैसे यह आपको शायद ही पता होगा कि महादेव और मां भगवती को ये रूप भृंगी की एक जिद ही वजह से धारण करना पड़ा था। उनके इस रूप ने संसार को ये संदेश दिया कि दुनिया में स्त्री और पुरुष दोनों का अपना स्थान है, न कोई किसी से कम और न कोई किसी से ज्यादा है। उनके इस रूप ने यह संदेश दिया कि स्त्री और पुरुष के साथ मिलने से ही ये सृष्टि चलती है। अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं इस रूप से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में।
महादेव के अर्द्धनारीश्वर रूप की कथा- भृंगी महादेव के बहुत बड़े भक्त थे। लेकिन वो माता भगवती को हमेशा उनसे अलग मानते थे और सिर्फ शिव को ही पूजते थे। एक बार वे कैलाश पर अपने आराध्य की परिक्रमा करने पहुंचे। सदैव की तरह महादेव के बाईं जंघा पर आदिशक्ति मां जगदंबा विराजमान थीं। महादेव समाधि में थे और जगदंबा चैतन्य थीं। जगदंबा के नेत्र खुले थे। शिवप्रेम में भृंगी मतवाले हो रहे थे और वे सिर्फ शिवजी की परिक्रमा करना चाहते थे क्योंकि ब्रह्मचर्य की उनकी परिभाषा अलग थी। अपने उतावलेपन में उन्होंने माता से अनुरोध कर दिया कि वे शिवजी से अलग होकर बैठें ताकि मैं शिवजी की परिक्रमा कर सकूं। जगदंबा समझ गईं कि ये तपस्वी तो है, लेकिन इसे ज्ञान नहीं हुआ है। उन्होंने भृंगी को समझाया कि वे महादेव की शक्ति हैं, उनसे अलग नहीं हो सकतीं। लेकिन भृंगी समझने को तैयार नहीं हुए।
उन्होंने अपने मन की करने के लिए सर्प का रूप धारण किया और शिवजी की परिक्रमा करने लगे। सरकते हुए वे जगदंबा और महादेव के बीच से निकलने का यत्न करने लगे। तभी शिवजी की समाधि भंग हो गई और उन्होंने समझ लिया कि मूर्ख जगदंबा को मेरे वाम अंग पर देखकर विचलित है। शिवजी ने भक्त को समझाने के लिए सांकेतिक रूप से अर्द्धनारीश्वर स्वरूप धारण कर लिया और जगदंबा उन्हीं में विलीन हो गईं। लेकिन भृंगी को भगवान का संदेश समझ में नहीं आया और उन्होंने अपनी जिद पूरी करने की लिए चूहे का रूप धारण किया और अर्द्धनारीश्वर रूप को कुतरकर एक दूसरे से अलग करने की कोशिश की। शिवभक्त भृंगी की धृष्टता को लगातार सहन करती आ रही जगदंबा का धैर्य आखिर टूट गया और उन्होंने भृंगी को श्राप दिया। हे भृंगी तू सृष्टि के आदि नियमों का उल्लंघन कर रहा है। यदि तू मातृशक्ति का सम्मान न करने में अपनी हेठी समझता है तो अभी इसी समय तेरे शरीर से तेरी माता का अंश अलग हो जाएगा। यह श्राप सुनकर स्वयं महादेव भी व्याकुल हो उठे। क्योंकि शरीर विज्ञान की तंत्रोक्त व्याख्या के मुताबिक इंसान के शरीर में हड्डियां और पेशियां पिता से मिलती हैं, जबकि रक्त और मांस माता के अंश से प्राप्त होता है। इस श्राप के बाद भृंगी की तो दुर्गति हो गई और उनके शरीर से तत्काल रक्त और मांस अलग हो गया।
शरीर में सिर्फ हड्डियां और मांसपेशियां बची रह गईं। इस श्राप के बाद भृंगी असहनीय पीड़ा में पड़ गए, तब उन्हें समझ में आया कि स्त्री और पुरुष दोनों का दर्जा समान है, हमें उन्हें फर्क की नजर से नहीं देखना चाहिए। हमें दोनों का सम्मान करना चाहिए। इसके बाद भृंगी ने असह्य पीड़ा से तड़पते हुए जगदंबा की प्रार्थना की, इसके बाद माता ने उन्हें माफ कर उनकी पीड़ा समाप्त कर दी और वे अपना श्राप वापस लेने लगीं। तभी भृंगी ने उन्हें रोक दिया और कहा कि माता मेरी पीड़ा दूर करके आपने मेरे उपर बड़ी कृपा की है। लेकिन आप मुझे इसी स्वरूप में रहने दीजिए ताकि मेरा ये स्वरूप संसार के लिए एक उदाहरण बने कि स्त्री और पुरुष में फर्क करने वाले लोगों का क्या हश्र होता है। भक्त की यह बात सुनकर महादेव और जगदंबा दोनों पुलकित हो गए।
अर्द्धनारीश्वर स्वरूप धारण किए हुए मां जगदंबा और पिता महादेव ने तुरंत भृंगी को अपने गणों में प्रमुख स्थान दे दिया। तब महादेव ने कहा कि अब इस रूप में तुम्हारी उपस्थिति इस जगत के लिए संदेश होगी कि नारी और पुरुष में भेद करने वाले की गति तुम्हारे जैसे हो जाती है। पुरुष और स्त्री से मिलकर ये संसार आगे बढ़ता है। दोनों का अपना स्थान और अपना अस्तित्व है।