देश की दो-तिहाई आबादी को रियायती अनाज बांटने और खाद्य प्रबंधन की खामियों के चलते खाद्य सब्सिडी दिनों दिन अनियंत्रित होती जा रही है। यह गंभीर चिंता का विषय है। इस पर अंकुश पाने के लिए सरकार को तत्काल विचार करने की जरूरत है। संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में इसके लिए कारगर कदम उठाने की सलाह दी गई है। बढ़ती खाद्य सब्सिडी को घटाने के लिए सबसे पहला उपाय अनाज के लागत मूल्य के साथ उपभोक्ताओं को दिए जाने वाले अनाज के मूल्य आनुपातिक रूप से बढ़ना चाहिए। इसके लिए सेंट्रल इश्यू प्राइस (सीआइपी) नियमों में संशोधन करने की जरूरत है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत 67 फीसद आबादी को अति रियायती दर पर अनाज दिया जाता है। खाद्य सुरक्षा के प्रति बढ़ती प्रतिबद्धता को देखते हुए खाद्य प्रबंधन की आर्थिक लागत को घटाना कठिन हो गया है। इसके चलते खाद्य सब्सिडी लगातार बढ़ रही है। खाद्य प्रबंधन की खामियों को भी दूर करने की जरूरत है। लेकिन सीआइपी (निर्गत मूल्य) को प्रत्येक पांच वर्ष बाद संशोधित करने का नियम है। लेकिन इसे अब तक एक बार भी संशोधित नहीं किया गया है, जिसके चलते एक रुपये किलो मोटा अनाज, दो रुपये किलो गेहं और तीन रुपये किलो चावल का वितरण किया जाता है। इसी दर पर वर्ष 2013 के बाद से लगातार अनाज का वितरण किया जा रहा है।
राशन की दुकानों से जिन दरों पर अनाज दिया जा रहा है, उसके मुकाबले उस अनाज का मूल्य बहुत अधिक होता है। एनएफएसए के लिए हर साल 6.02 करोड़ टन अनाज की जरूरत होती है। इससे सालाना डेढ़ लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी देनी पड़ रही है। आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में सीआइपी में संशोधन करने की सिफारिश की गई है, जिससे अनाज के वास्तविक लागत मूल्य और सीआइपी का अंतर कम किया जा सके।
वर्ष 2013 में गेहूं का केंद्रीय निर्गत मूल्य दो रुपये किलो और चावल तीन रुपये किलो था, उस समय एफसीआई का गेहूं का लागत मूल्य 19.08 रुपये और चावल का 26.15 रुपये था। वर्ष 2020-21 में गेहूं का लागत मूल्य 26.83 रुपये और चावल का लागत मूल्य 37.23 रुपये प्रति किलो पहुंच गया है। जबकि राशन की दुकानों से अभी भी गेहूं दो रुपये और चावल तीन रुपये किलो ही दिया जा रहा है। केंद्रीय एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) के पास 8.19 करोड़ टन अनाज भंडारण की क्षमता है, जिसमें 6.69 करोड़ टन गोदाम में और 1.50 करोड़ टन अनाज खुले में रखा जाता है।