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स्विस बैंकों में डेढ़ गुना हुआ भारतीयों का धन

भारत में कालेधन पर एक के बाद एक चोट के बीच स्विस बैंकों को पिछले साल भारतीयों ने मालामाल कर दिया है। स्विट्जरलैंड में बैंकों के नियामक स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) द्वारा गुरुवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक भारतीयों ने पिछले वर्ष स्विस बैंकों में 101 करोड़ स्विस फ्रैंक (करीब 7,000 करोड़ रुपये) जमा किए हैं, जो 2016 के मुकाबले 50.2 फीसद ज्यादा है। इसमें भारतीयों और आप्रवासी भारतीयों द्वारा दूसरे देशों की इकाइयों के रूप में जमा रकम शामिल नहीं है। वर्ष 2004 में 56 फीसद बढ़ोतरी के बाद स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा रकम में यह सबसे बड़ा इजाफा है। पिछले वर्ष से पहले लगातार तीन वर्षों तक स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा की गई रकम में गिरावट देखी गई थी। स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा की गई रकम का आंकड़ा इसलिए चौंकाने वाला है, क्योंकि भारत पिछले कुछ समय से दुनियाभर में भारतीयों द्वारा छुपाए गए कालेधन को वापस लाने की लगातार कोशिशें कर रहा है। गौरतलब है कि गोपनीयता कानूनों की आड़ में स्विस बैंक दुनियाभर के कालेधन की सुरक्षित पनाहगाह बने हुए थे। हालांकि भारत में स्विस बैंक की कुल संपत्ति लगातार दूसरे वर्ष गिरावट के साथ पिछले वर्ष के आखिर में 320 करोड़ स्विस फ्रैंक रह गई। इसमें रियल एस्टेट और इस तरह की अन्य संपत्तियां शामिल नहीं हैं। गुरुवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक 2016 में स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा की गई रकम 45 फीसद गिर गई थी, और यह सबसे बड़ी सालाना गिरावट थी। उस साल भारतीयों ने स्विस बैंक में महज 4,500 करोड़ रुपये जमा कराए थे। आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि पिछले वर्ष भारतीयों द्वारा स्विस बैंकों में खुद जमा कराई रकम 6,891 करोड़ रुपये, जबकि वेल्थ मैनेजरों के जरिये जमा कराई गई रकम 112 करोड़ रुपये पर पहुंच गई है। पिछले वर्ष के आखिर में स्विस बैंकों में भारतीय व्यक्तिगत ग्राहकों द्वारा जमा रकम 3,200 करोड़ रुपये, अन्य बैंकों द्वारा जमा रकम 1,050 करोड़ रुपये जबकि सिक्युरिटीज और अन्य देनदारियों के मद में जमा रकम 2,640 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। हालांकि 2007 तक सिक्युरिटीज और अन्य मदों में स्विस बैंकों में जमा भारतीय रकम अरबों रुपये में हुआ करती थी। लेकिन भारतीय नियामकों की सख्ती के बाद उसमें गिरावट आनी शुरू हुई। वर्ष 2006 के अंत में भारतीयों द्वारा सभी मदों में स्विस बैंकों में जमा रकम 23,000 करोड़ रुपये के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर थी। लेकिन एक दशक बाद यह आंकड़ा महज 10वें हिस्से तक रह गया। भारत और कई अन्य देशों द्वारा घपलों-घोटालों के साक्ष्य मुहैया कराने के बाद स्विट्जरलैंड ने विदेशी ग्राहकों की जानकारी देनी पहले ही शुरू कर दी है। अब वह ऑटोमेटिक इन्फॉरमेशन एक्सचेंज संबंधी करार के बाद कालेधन के खिलाफ भारत की लड़ाई में और मदद करने को राजी हो गया है। इससे पहले स्विट्जरलैंड ने कहा था कि कालेधन पर चोट के बाद भारतीयों द्वारा सिंगापुर और हांगकांग जैसे फाइनेंशियल हब के मुकाबले स्विस बैंकों में जमा रकम का आंकड़ा बहुत कम रह गया है। रिपोर्ट में एसएनबी ने कहा है कि विदेशी ग्राहकों द्वारा स्विस बैंकों में जमा रकम का आकार पिछले वर्ष के आखिर में करीब तीन फीसद बढ़कर 100 लाख करोड़ रुपये के आसपास पहुंच गया है। पाकिस्तान फिर भी आगे हालांकि एसएनबी के मुताबिक पिछले वर्ष पाकिस्तानियों द्वारा स्विस बैंकों में किया निवेश 21 फीसद घटा है। लेकिन 7,700 करोड़ रुपये के साथ पाकिस्तान स्विस बैंकों में रकम जमा करने के मामले में भारत से आगे ही है। आंकड़ों के आईने में - 980 करोड़ स्विस फ्रैंक पर पहुंच गया स्विस बैंकों का लाभ पिछले वर्ष - 100 लाख करोड़ के आसपास पहुंच गई विदेशी ग्राहकों द्वारा जमा राशि - 56 फीसद इजाफा हुआ था भारतीय जमा में वर्ष 2004 के दौरान, उसके बाद पिछले वर्ष सबसे ज्यादा

भारत में कालेधन पर एक के बाद एक चोट के बीच स्विस बैंकों को पिछले साल भारतीयों ने मालामाल कर दिया है। स्विट्जरलैंड में बैंकों के नियामक स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) द्वारा गुरुवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक भारतीयों ने …

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मैक्सिको: नामांकन से लेकर चुनाव प्रचार तक 133 नेताओं की हत्या

मैक्सिको में इस रविवार चुनाव होने वाले हैं, लेकिन मतदान से पहले ही एक रिपोर्ट से पूरे देश में भूचाल मचा है. रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव से पहले ही कुल 133 नेताओं की हत्या की जा चुकी है. परामर्श देने वाली एटलेक्ट संस्था के एक अध्ययन में यह दावा किया गया. संस्था के मुताबिक देश में बढ़ रही हिंसा ने रिकॉर्ड स्तर पर राजनीति को भी अपनी चपेट में ले लिया है. हत्या के इन अपराधों को सितंबर में उम्मीदवारों के पंजीकरण से शुरू होने और चुनाव प्रचार खत्म होने तक दर्ज दिया गया है. हाल ही में पश्चिमी राज्य मिकोआकैन में एक अंतरिम मेयर की हत्या कर दी गई थी. ज्यादातर हत्याएं स्थानीय स्तर के नेताओं की गई जो अक्सर मैक्सिको के ताकतवर मादक पदार्थ माफिया के निशाने पर रहते हैं. चुनाव संबंधी हिंसा का अध्ययन करने वाली संस्था एटलेक्ट ने बताया कि मृतकों में 48 उम्मीदवार वो थे जो चुनाव में खड़े हुए थे जिनमें से 28 की हत्या प्रारंभिक प्रचार के दौरान की गई और 20 की आम चुनाव प्रचार के दौरान. संस्था के निदेशक रूबेन सालाजर ने कहा , “ यह हिंसा स्थानीय स्तर पर केंद्रित है. इनमें से कम से कम 71 प्रतिशत हमले निर्वाचित अधिकारियों और स्थानीय स्तर पर चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के खिलाफ किए गए. संस्था ने कहा यह मैक्सिको में हुआ अब तक सबसे हिंसक चुनाव है. मैक्सिको सरकार के 2006 में मादक पदार्थ तस्करी से लड़ने के लिए सेना की तैनाती किए जाने के बाद यहां हिंसा बहुत बढ़ गई है.मैक्सिको में इस रविवार चुनाव होने वाले हैं, लेकिन मतदान से पहले ही एक रिपोर्ट से पूरे देश में भूचाल मचा है. रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव से पहले ही कुल 133 नेताओं की हत्या की जा चुकी है. परामर्श देने वाली एटलेक्ट संस्था के एक अध्ययन में यह दावा किया गया. संस्था के मुताबिक देश में बढ़ रही हिंसा ने रिकॉर्ड स्तर पर राजनीति को भी अपनी चपेट में ले लिया है. हत्या के इन अपराधों को सितंबर में उम्मीदवारों के पंजीकरण से शुरू होने और चुनाव प्रचार खत्म होने तक दर्ज दिया गया है. हाल ही में पश्चिमी राज्य मिकोआकैन में एक अंतरिम मेयर की हत्या कर दी गई थी. ज्यादातर हत्याएं स्थानीय स्तर के नेताओं की गई जो अक्सर मैक्सिको के ताकतवर मादक पदार्थ माफिया के निशाने पर रहते हैं. चुनाव संबंधी हिंसा का अध्ययन करने वाली संस्था एटलेक्ट ने बताया कि मृतकों में 48 उम्मीदवार वो थे जो चुनाव में खड़े हुए थे जिनमें से 28 की हत्या प्रारंभिक प्रचार के दौरान की गई और 20 की आम चुनाव प्रचार के दौरान. संस्था के निदेशक रूबेन सालाजर ने कहा , “ यह हिंसा स्थानीय स्तर पर केंद्रित है. इनमें से कम से कम 71 प्रतिशत हमले निर्वाचित अधिकारियों और स्थानीय स्तर पर चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के खिलाफ किए गए. संस्था ने कहा यह मैक्सिको में हुआ अब तक सबसे हिंसक चुनाव है. मैक्सिको सरकार के 2006 में मादक पदार्थ तस्करी से लड़ने के लिए सेना की तैनाती किए जाने के बाद यहां हिंसा बहुत बढ़ गई है.

मैक्सिको में इस रविवार चुनाव होने वाले हैं, लेकिन मतदान से पहले ही एक रिपोर्ट से पूरे देश में भूचाल मचा है. रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव से पहले ही कुल 133 नेताओं की हत्या की जा चुकी है. परामर्श देने …

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नॉर्थ कोरिया की वजह से टली भारत-अमेरिका टू प्लस टू वार्ता!

भारत और अमेरिका के बीच होने वाली टू प्लस टू बैठक अमेरिका की तरफ से टाल दी गई है. अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो अब 6 जुलाई को उत्तर कोरिया के नेता किम-जोंग-उन के साथ वार्ता में शामिल होने प्योंगयांग जा रहे हैं. फाइनेंशियल टाइम्स की खबर के मुताबिक अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि विदेश मंत्री पोम्पियो की प्योंगयांग यात्रा की वजह से भारत-अमेरिका के बीच होने वाली अहम टू प्लस टू बैठक टाल दी गई है. पोम्पियो ने सुषमा से जताया था खेद इससे पहले अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने भारत के साथ होने वाली वार्ता के टालने पर खेद प्रकट करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से जल्द ही वार्ता के लिए नई तिथियां तय करने की बात कही थी. तय कार्यक्रम के अनुसार ये वार्ता 6 जुलाई को अमेरिका में भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो, रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस के बीच होनी थी. जिसमे दोनो देशों के संबंधो, रक्षा और व्यापार को लेकर कई अहम फैसले होने थे. इसे पढ़े : ट्रंप को अब भी नहीं किम पर ऐतबार, उत्तर कोरिया पर 1 साल और जारी रहेगा प्रतिबंध उत्तर कोरिया पर परमाणु कार्यक्रम बंद करने का है दबाव 12 जून को सिंगापुर में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प और उत्तर कोरिया के नेता किम-जोंग-उन के बीच कोरियाई प्रायद्वीय को पूरी तरह से परमाणु हथियारों से मुक्त करने की दिशा में आगे बढ़ने पर सहमति बनी थी. साथ ही यह भी तय हुआ था कि दक्षिण कोरिया में भी अगर अमरीका की परमाणु पनडुब्बियां और हथियार हैं तो वे भी अमरीका को वापस लेने होंगे. लेकिन इस समझौते में इस बात का ब्यौरा नहीं दिया गया था कि उत्तर कोरिया कब और कैसे अपने हथियार छोड़ेगा. अमेरिकी विदेश मंत्री पोम्पियो को जिम्मेदारी की गई है कि वे उत्तर कोरिया को उसके परमाणु कार्यक्रमों को बंद करने के लिए राजी करें. पॉम्पियो पहले ही कह चुके हैं कि उत्तर कोरिया की ओर से निरस्त्रीकरण दर्शाने के बाद ही उस पर लगी आर्थिक पाबंदियां हटाई जाएंगी.

भारत और अमेरिका के बीच होने वाली टू प्लस टू बैठक अमेरिका की तरफ से टाल दी गई है. अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो अब 6 जुलाई को उत्तर कोरिया के नेता किम-जोंग-उन के साथ वार्ता में शामिल होने प्योंगयांग …

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अमेरिका: अखबार के दफ्तर पर हमले में पांच जाने गई

अमेरिका: अखबार के दफ्तर पर हमले में पांच जाने गई

अमेरिका में एक अखबार के दफ्तर पर हुए हमले में गोलीबारी में 5 लोग मारे गए हैं. घटना मेरीलैंड स्थित एनापोलिस शहर में हुई जिसमे कई लोग घायल भी हो गए. घटना की सुचना मिलते ही पुलिस ने मोर्चा सँभालते …

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नेतन्याहू से मुलाकात के बाद यहूदियों को अल्पसंख्यक दर्जा देने की घोषणा

बता दें, मुख्यमंत्री बनने के बाद विजय रुपाणी का यह पहला विदेशी दौरा है, जिसमें वो इजरायल आए है. यहाँ पर विजय रुपाणी आतंरिक सुरक्षा ,जल प्रबंधन और कृषि के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने को लेकर बेंजामिन नेतन्याहू से बातचीत करेंगे. इससे पहले जब बेंजामिन नेतन्याहू भारत के दौरे पर थे, तब उन्होंने भी गुजरात का दौरा किया था.

हाल ही में कुछ महीनों पहले हुए चुनाव के बाद गुजरात के नए मुख्यमंत्री बने विजय रुपाणी अभी इजरायल दौरे पर है. विजय रुपाणी का मुख्यमंत्री बनने के बाद यह पहला विदेश दौरा है. इस दौरे पर विजय रुपाणी ने …

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इतिहास के साथ फिर की मोदी ने बड़ी छेड़छाड़

नरेंद्र मोदी

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर अपनी एक रैली के दौरान इतिहास से छेड़छाड़ करते हुए एक ऐसा बयान दिया है, जो संभव ही नहीं हो सकता. हाल ही में संत कबीरदास जी 500 वीं पुण्यतिथि यूपी …

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गरीबों में राशन दुकानों से सस्ती दर पर दाल बांटने की तैयारी

गरीबों में राशन दुकानों से सस्ती दर पर दाल बांटने की तैयारी की जा रही है। इस बारे में उपभोक्ता व खाद्य मंत्रालय कैबिनेट नोट तैयार कर रहा है। सरकारी स्टॉक में फिलहाल 55 लाख टन दालें पड़ी हुई हैं, जिन्हें बाजार के हिसाब से अधिक मूल्य पर खरीदा गया है। अगर उसे खुले बाजार में बेचना पड़ा तो भारी घाटा उठाना पड़ेगा। घाटे के इस सौदे से बचने के लिए देश के 201 पिछड़े जिलों में सस्ती दर पर दालों को बेचने पर विचार किया जा रहा है। सरकारी स्टॉक की दालों को खपाने के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में शुक्रवार को सचिवों की समिति की बैठक बुलाई गई है। बैठक में बफर स्टॉक की पुरानी पड़ी दालों के साथ मूल्य समर्थन योजना के तहत खरीदी दालों को पिछड़े जिलों में बांटे जाने पर कोई अहम फैसला लिया जा सकता है। महंगी दाल खरीद कर बाजार में निजी व्यापारियों को सस्ते में बेचना सरकार को भारी पड़ सकता है। दलहन फसलों की सरकारी एजेंसी नैफेड ने चालू सीजन में 43 लाख टन से अधिक की खरीद कर ली है। कई राज्यों में अभी भी खरीद चालू है। इनमें चना, अरहर, मसूर, उड़द और मूंग है। सारी दालें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदी गई हैं। जबकि खाद्य मंत्रालय के बफर स्टॉक में 12 लाख टन पुरानी दाल पड़ी हुई है। इसमें काफी दालें बाजार भाव पर खरीदी गई हैं। कुछ दालें आयातित हैं। देश के चिन्हित 201 पिछड़े जिले के उपभोक्ताओं को इसका लाभ दिया जाएगा। केंद्रीय उपभोक्ता मामले व खाद्य मंत्री राम विलास पासवान ने बताया कि इस बारे में विस्तृत विचार-विमर्श हो चुका है। इसके लिए कैबिनेट की मंजूरी जल्द ही ले ली जाएगी। दलहन कारोबार के एक जानकार व्यापारी ने बताया कि अरहर को छोड़कर बाकी सभी दलहन फसलें साबुत भी खाई जाती हैं, इसलिए राशन प्रणाली के तहत उपभोक्ताओं को दालें बांटना बहुत आसान है। दालों में सबसे अधिक सरकारी खरीद चने की हुई है। यह 25 लाख टन से भी अधिक है। 20 लाख टन अरहर, चार लाख टन उड़द, तीन लाख टन मूंग और इतनी ही मात्रा में मसूर खरीदी गई है। मानसून के सक्रिय होने के साथ ही सरकारी खरीद ठप होने लगी है।

गरीबों में राशन दुकानों से सस्ती दर पर दाल बांटने की तैयारी की जा रही है। इस बारे में उपभोक्ता व खाद्य मंत्रालय कैबिनेट नोट तैयार कर रहा है। सरकारी स्टॉक में फिलहाल 55 लाख टन दालें पड़ी हुई हैं, …

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नोटबंदी का साइड इफेक्ट? अचानक 50% बढ़ा स्विस बैंक में भारतीयों का पैसा

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी की ओर से विदेशों में जमा काला धन को वापस लाने के लिए कई तरह के दावे किए जाते थे. सरकार बनने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषण में कई बार कहा कि ''पहले चर्चा होती थी, कितना गया.. लेकिन अब चर्चा होती है कितना आया.'' काले धन के खिलाफ अभियान चलाने की सरकार की कोशिशों को अब झटका लगा है. स्विस बैंक ने जो ताजा आंकड़े जारी किए हैं उसमें दिख रहा है कि पिछले एक साल में भारतीयों की जमा पूंजी में करीब 50% की बढ़ोतरी हुई है. पिछले तीन साल से ये आंकड़े लगातार घट रहे थे, लेकिन अचानक 2017 में इतनी लंबी छलांग मोदी सरकार के लिए चिंता बढ़ा सकती है. विपक्ष के अलावा कई साथियों ने भी इसको लेकर सरकार को घेरा है. नोटबंदी के बाद पहुंचा सबसे ज्यादा पैसा? दरअसल, ये आंकड़ा इसलिए भी चौंकाता है कि क्योंकि मोदी सरकार आने के बाद लगातार तीन साल कालेधन में कमी आई थी. लेकिन 2016 में नोटबंदी का फैसले के बाद इसमें अचानक बढ़ोतरी हुई. स्विस बैंक ने जो आंकड़े जारी किए हैं वह 2017 के हैं और नोटबंदी 8 नवंबर, 2016 को लागू हुई थी. यानी साफ है कि नवंबर 2016 और 2017 के बीच सबसे ज्यादा पैसा स्विस बैंक पहुंचा. प्रधानमंत्री ने जब नोटबंदी का ऐलान किया था तब इसे कालेधन के खिलाफ सबसे बड़ी 'सर्जिकल स्ट्राइक' बताया गया था. कैसे बढ़ता गया इतना पैसा? # स्विस बैंक खातों में जमा भारतीय धन 2016 में 45 प्रतिशत घटकर 67.6 करोड़ फ्रैंक (लगभग 4500 करोड़ रुपए) रह गया था. बैंक की तरफ से 1987 में आंकड़े देने की शुरुआत के बाद से ये सबसे कम का आंकड़ा था. # लेकिन 2017 में जो आंकड़े जारी किए गए उसमें अब 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. स्विस बैंक खातों में सीधे तौर पर रखा गया धन 2017 में लगभग 6891 करोड़ रुपए (99.9 करोड़ फ्रैंक) हो गया. इसके अलावा प्रतिनिधियों के जरिए रखा गया पैसा इस दौरान 112 करोड़ रुपए (1.62 करोड़ फ्रैंक) रहा. पहले क्या थी स्थिति? ऐसा नहीं है कि स्विस बैंक में पहली बार भारतीयों की जमा पूंजी में बढ़ोतरी आई हो. इससे पहले भी कई बार आंकड़ें भारतीयों को चौंकाने वाले ही रहे हैं. स्विस बैंक खातों में रखे भारतीयों के धन में 2011 में 12%, 2013 में 43%, 2017 में 50.2% की वृद्धि हुई थी. जबकि इससे 2004 में यह धन 56% बढ़ा था. 2007 तक भारत स्विस बैंक की जमा पूंजी की लिस्ट में टॉप 50 देशों में शामिल था, लेकिन अब वह ब्रिक्स देशों से भी नीचे चला गया है.

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी की ओर से विदेशों में जमा काला धन को वापस लाने के लिए कई तरह के दावे किए जाते थे. सरकार बनने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने …

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लेटलतीफी से बचने के लिए रेलवे की चालाकी! बढ़ा दिया 185 ट्रेनों का अराइवल टाइम

लेटलतीफी से बचने के लिए रेलवे की चालाकी! बढ़ा दिया 185 ट्रेनों का अराइवल टाइम

पिछले कई महीनों से देश के करोड़ों यात्री रेलवे की लेटलतीफी से काफी परेशान हैं. हाल यह है कि कई ट्रेन ने 24 से 28 घंटे तक लेट होने का रिकॉर्ड ही बना दिया. लेकिन इनको सही समय पर चलाने …

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दिल्ली के बाद अब मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में सुकून देगी बारिश

वहीं छत्‍तीसगढ़ में राजधानी रायपुर समेत प्रदेश भर में मानसून ने दस्‍तक दे दी है. मंगलवार शाम राजधानी समेत प्रदेश के कई इलाकों में बारिश हुई. हालाँकि मध्यप्रदेश में होने बारिश लोगों की जिंदगियों को इतना अस्त-व्यस्त नहीं करती है जितना मुंबई, बिहार आदि राज्यों में बाढ़ और भारी बारिश के कारण लोगों की जिंदगियां मुश्किल में होती है.

देश के कई हिस्सों में मानसून ने दस्तक दे दी है. मानसून के दस्तक देने के साथ ही मुंबई और केरल में जोरदार बारिश हुई. वहीं मानसून की दस्तक दिल्ली में भी हो गई है जिसके बाद वहां पर लोगों …

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