दिल्ली

मेट्रो की ग्रे लाइन को दिखाई हरी झंडी

मेट्रो की ग्रे लाइन को दिखाई हरी झंडी

नई दिल्ली। मेट्रो की ग्रे लाइन पर बने ढांसा स्टेशन का शनिवार दोपहर उद्घाटन हुआ। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने हरी झंडी दिखाकर ग्रे लाइन मेट्रो पर ढांसा स्टेशन से नजफगढ़ …

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कम्युनिटी रेडियो यानि ‘सबका साथ सबका विकास’ : प्रो. द्विवेदी

कम्युनिटी रेडियो यानि 'सबका साथ सबका विकास' : प्रो. द्विवेदी

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तथा वन वर्ल्ड फाउंडेशन इंडिया के संयुक्त आयोजन में बोले आईआईएमसी के महानिदेशक नई दिल्ली । ”भारत में 335 कम्युनिटी रेडियो स्टेशन हैं, जिनकी पहुंच देश की लगभग 10 करोड़ आबादी तक है। संकट के समय …

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सकारात्मक मीडिया से बनेगा नया भारत : प्रो. संजय द्विवेदी

सकारात्मक मीडिया से बनेगा नया भारत : प्रो. संजय द्विवेदी

नई दिल्ली। ”मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है और लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। आजादी से पहले मीडिया समाज में चेतना जगाने का काम करता था। आज नए भारत के निर्माण में सकारात्मक मीडिया की आवश्यकता है।” यह …

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देश की आजादी का अमृत महोत्सव पर मीडिया सेमिनार का आयोजन हुआ

देश की आजादी का अमृत महोत्सव पर मीडिया सेमिनार का आयोजन हुआ

नई दिल्ली। भारत सरकार द्वारा मनाये जा रहे देश की ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव सप्ताह’ के समापन दिवस पर “मीडिया स्वतंत्रता व तनाव मुक्त पत्रकारिता वातावरण” विषय पर पत्रकारों के लिए आयोजित सेमीनार में मुख्य अतिथि के रूप में भारतीय …

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लोकसभा अध्यक्ष से मिले आईआईएमसी के महानिदेशक

लोकसभा अध्यक्ष से मिले आईआईएमसी के महानिदेशक

नई दिल्ली। भारतीय जन संचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने गुरुवार को लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला से शिष्टाचार भेंट की। इस दौरान उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष को संस्थान की वर्तमान शैक्षिक गतिविधियों एवं रचनात्मक कार्यों की जानकारी दी …

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ओटीटी कंटेट की गुणवत्ता बनाए रखना डिजिटल मीडिया आचार संहिता का लक्ष्य : विक्रम सहाय

ओटीटी कंटेट की गुणवत्ता बनाए रखना डिजिटल मीडिया आचार संहिता का लक्ष्य : विक्रम सहाय

नई दिल्ली। ”डिजिटल मीडिया आचार संहिता 2021 के केंद्र में आम नागरिक हैं। आचार संहिता का उद्देश्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कायम रखते हुए ओटीटी (ओवर-द-टॉप) प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने वाली सामग्री की गुणवत्ता को बनाए रखना है।” यह विचार …

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रोबो जर्नलिज्म आज के मीडिया की हकीकत : शशि शेखर

रोबो जर्नलिज्म आज के मीडिया की हकीकत : शशि शेखर

भारतीय जन संचार संस्थान में स्थापना दिवस व्याख्यान का आयोजन नई दिल्ली। ”रोबोट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आज के मीडिया की हकीकत है। तकनीक ने अब मीडिया को पूरी तरह बदल दिया है। तकनीकी क्षमता आज पत्रकारों की महत्वपूर्ण योग्यता है।” …

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मुख्य सचिव पिटाई मामला: केजरीवाल, सिसौदियो समेत 11 आप विधायक बरी

मुख्य सचिव पिटाई मामला: केजरीवाल, सिसौदियो समेत 11 आप विधायक बरी

नई दिल्ली। दिल्ली की राऊज एवेन्यू कोर्ट ने आज दिल्ली के तत्कालीन मुख्य सचिव अंशु प्रकाश से मारपीट के मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया समेत 11 आम आदमी पार्टी के विधायकों को आरोपों से बरी कर दिया …

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‘द वीक-हंसा रिसर्च’ के सर्वे में आईआईएमसी बना देश का सर्वश्रेष्ठ मीडिया शिक्षण संस्थान

जयंती 25 सितंबर पर विशेष मूल्य आधारित मीडिया के पक्षधर थे दीनदयाल जी -प्रो. संजय द्विवेदी पं. दीनदयाल उपाध्याय स्वयं बहुत बड़े पत्रकार और संचारक थे। अपनी विचारधारा को पुष्ट करने के लिए पत्रों का संपादन, प्रकाशन, स्तंभलेखन, पुस्तक लेखन उनकी रूचि का विषय था। उन्होंने लिखने के साथ-साथ बोलकर भी एक प्रभावी संचारक की भूमिका का निर्वहन किया है। उनकी स्मृति को रेखांकित करते हुए क्या हम विचार कर सकते हैं कि समाज जीवन के हर पक्ष में एकात्म मानवदर्शन किस तरह प्रभावी हो सकता है। भरोसा करना कठिन है कि श्री दीनदयाल उपाध्याय जैसे साधारण कद-काठी और सामान्य से दिखने वाले मनुष्य ने भारतीय राजनीति और समाज को एक ऐसा वैकल्पिक विचार और दर्शन प्रदान किया कि जिससे प्रेरणा लेकर हजारों युवाओं की एक ऐसी मालिका तैयार हुयी, जिसने इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में भारतीय राजसत्ता में अपनी गहरी पैठ बना ली। क्या विचार सच में इतने ताकतवर होते हैं या यह सिर्फ समय का खेल है? किसी भी देश की राजनीतिक निष्ठाएं एकाएक नहीं बदलतीं। उसे बदलने में सालों लगते हैं। डा.श्यामाप्रसाद मुखर्जी से लेकर श्री नरेंद्र मोदी तक पहुंची यह राजनीतिक विचार यात्रा साधारण नहीं है। इसमें इस विचार को समर्पित लाखों-लाखों अनाम सहयोगियों को भुलाया तो जा सकता है किंतु उनके योगदान को नकारा नहीं जा सकता। राजनीति के लिए नहीं, विचार के साधकः पं. दीनदयाल उपाध्याय राजनीति के लिए नहीं बने थे, उन्हें तो एक नए बने राजनीतिक दल जनसंघ में उसके प्रथम अध्यक्ष डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की मांग पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक श्री मा.स.गोलवलकर (गुरूजी) ने राजनीति में भेजा था। यह एक संयोग ही था कि डा. मुखर्जी और दीनदयाल जी दोनों की मृत्यु सहज नहीं रही और दोनों की मौत और हत्या के कारण आज भी रहस्य में हैं। दीनदयालजी तो संघ के प्रचारक थे। आरएसएस की परिपाटी में प्रचारक एक गृहत्यागी सन्यासी सरीखा व्यक्ति होता है, जो समाज के संगठन के लिए अलग-अलग संगठनों के माध्यम से विविध क्षेत्रों में काम करता है। देश के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन बन चुके आरएसएस के लिए वे बेहद कठिन दिन थे। राजसत्ता उन्हें गांधी का हत्यारा कहकर लांछित करती थी, तो समाज में उनके लिए जगह धीरे-धीरे बन रही थी। शुद्ध सात्विक प्रेम और संपर्कों के आधार पर जैसा स्वाभाविक विस्तार संघ का होना था, वह हो रहा था, किंतु निरंतर राजनीतिक हमलों ने उसे मजबूर किया कि वह एक राजनीतिक शक्ति के रूप में भी सामने आए। खासकर संघ पर प्रतिबंध के दौर में तो उसके पक्ष में दो बातें कहने वाले लोग भी संसद और विधानसभाओं में नहीं थे। यही पीड़ा भारतीय जनसंघ के गठन का आधार बनी। डा. मुखर्जी उसके वाहक बने और दीनदयाल जी के नाते उन्हें एक ऐसा महामंत्री मिला जिसने दल को न सिर्फ सांगठनिक आधार दिया बल्कि उसके वैचारिक अधिष्ठान को भी स्पष्ट करने का काम किया। चुनावी सफलताओं के बिना बने राजनीति के दिशावाहकः पं. दीनदयाल जी को गुरूजी ने जिस भी अपेक्षा से वहां भेजा वे उससे ज्यादा सफल रहे। अपने जीवन की प्रामणिकता, कार्यकुशलता, सतत प्रवास, लेखन, संगठन कौशल और विचार के प्रति निरंतरता ने उन्हें जल्दी ही संघ और जनसंघ के कार्यकर्ताओं का श्रद्धाभाजन बना दिया। बेहद साधारण परिवार और परिवेश से आए दीनदयालजी भारतीय राजनीति के मंच पर बिना बड़ी चमत्कारी सफलताओं के भी एक ऐसे नायक के रूप में स्थापित होते दिखे, जिसे आप आदर्श मान सकते हैं। उनके हिस्से चुनावी सफलताएं नहीं रहीं, एक चुनाव जो वे जौनपुर से लड़े वह भी हार गए, किंतु उनका सामाजिक कद बहुत बड़ा हो चुका था। उनकी बातें गौर से सुनी जाने लगी थीं। वे दिग्गज राजनेताओं की भीड़ में एक राष्ट्रऋषि सरीखे नजर आते थे। उदारता और सौजन्यता से लोगों के मनों में, संगठन कौशल से कार्यकर्ताओं के दिलों में जगह बना रहे थे तो वैचारिक विमर्श में हस्तक्षेप करते हुए देश के बौद्धिक जगत को वे आंदोलित-प्रभावित कर रहे थे। वामपंथी आंदोलन के मुखर बौद्धिक नेताओं की एक लंबी श्रृखंला, कांग्रेस के राष्ट्रीय आंदोलन से तपकर निकले तमाम नेताओं और समाजवादी आंदोलन के डा. राममनोहर लोहिया जैसे प्रखर राजनीतिक चिंतकों के बीच अगर दीनदयाल उपाध्याय स्वीकृति पा रहे थे, तो यह साधारण घटना नहीं थी। यह बात बताती है गुरूजी का चयन कितना सही था। उनके साथ खड़ी हो रही सर्वश्री अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, नानाजी देशमुख. जेपी माथुर,सुंदरसिंह भंडारी, कुशाभाऊ ठाकरे जैसे सैकड़ों कार्यकर्ताओं की पीढ़ी को याद करना होगा, जिनके आधार पर जनसंघ से भाजपा तक की यात्रा परवान चढ़ी है। दीनदयाल जी इन सबके रोलमाडल थे। अपनी सादगी, सज्जनता, व्यक्तियों का निर्माण करने की उनकी शैली और उसके साथ वैचारिक स्पष्टता ने उन्हें बनाया और गढ़ा था। भारतीय राजनीतिक विमर्श में सार्थक हस्तक्षेपः एकात्म मानववाद के माध्यम से सर्वथा एक भारतीय विचार को प्रवर्तित कर उन्होंने हमारे राजनीतिक विमर्श को एक नया आकाश दिया। यह बहुत से प्रचलित राजनीतिक विचारों के समकक्ष एक भारतीय राजनीतिक दर्शन था, जिसे वे बौद्धिक विमर्श का हिस्सा बना रहे थे। अपने इस विचार को वे व्यापक आधार दे पाते इसके पूर्व उनकी हत्या ने तमाम सपनों पर पानी फेर दिया। जब वे अपना श्रेष्ठतम देने की ओर बढ़ रहे थे, तब हुयी उनकी हत्या ने पूरे देश को अवाक् कर दिया। दीनदयाल जी ने अपने प्रलेखों और भाषणों में ‘एकात्म मानववाद’ शब्द पद का उपयोग किया है। भाजपा ने 1985 में इसे इसी नाम से स्वीकार किया, किंतु नानाजी देशमुख और संघ परिवार के बीच ‘एकात्म मानवदर्शन’ नामक शब्दपद स्वीकृति पा चुका है। एकात्म मानवदर्शन के आधार पर कैसा मीडिया बनेगाः ऐसे प्रसंग यह विचार करना जरूरी हो जाता है कि आखिर एकात्म मानवदर्शन के आधार पर हमारी मीडिया का चेहरा बने तो वह कैसा होगा? एकात्म मानवदर्शन को लेकर समाज जीवन के विविध पक्षों में कैसे परिवर्तन होंगें, इस पर विद्वानों ने अलग-अलग विचार किया है। किंतु हमें यह जानना जरूरी है कि आज के सबसे प्रभावकारी माध्यम मीडिया में एकात्म भाव की उपस्थिति से क्या बदलाव आएंगें। एकात्म मानवदर्शन क्योंकि विभेद का दर्शन नहीं है, वह विषयों पर संपूर्णता में विचार करने वाला दर्शन है। एक ऐसी चिंतनधारा है जिसमें मनुष्यता के मूल्य और मनुष्य की मुक्ति संयुक्त है। दीनदयाल जी अपनी विचारधारा में मीडिया को अलग करके नहीं देखते। वे यही दृष्टि रखते किस तरह मीडिया समाज की एकता, उसकी बेहतरी और मनुष्यता की मुक्ति में सहायक हो। संवाद मनुष्य की आवश्यकता भी है और उसकी प्रेरणा भी। वह संवाद किए बिना रह नहीं सकता। उसका समूची सृष्टि से रिश्ता है और संवाद है। जिसे हम प्रकृति से संवाद की भी संज्ञा देते हैं। मनुष्य के लिए संवाद कैसा हो इस पर बहुत विचार हुआ है। सूचना की भी इसमें एक बड़ी भूमिका है। इस भूमिका का वास्तविक निर्वाह ही हमें मनुष्य बनाता है। एक शायर शायद इसीलिए कहते हैं- “आदमी को मयस्सर नहीं इंसा होना।” यानि आदमी को इंसान या मनुष्य बनाने की यात्रा एक कठिन यात्रा है। कठिन संकल्प से ही व्यक्ति रूपांतरित होता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर व्यक्ति की सूचना का संचार कितना व्यापक हो। सवाल यह भी है कि क्या हर सूचना व्यक्ति के लिए जरूरी है। साथ ही ऐसा क्या किया जाए कि व्यक्ति को सूचना इस प्रकार दी जाए, जिससे उसके विकास में मदद मिले न कि वह भ्रमित हो। मीडिया में लाइए शुभदृष्टिः एकात्म मानवदर्शन के आधार बनने वाले मीडिया और सूचना की दुनिया में सबका हित निहित होना है। वह एकांगी मीडिया नहीं होगा, वह सूचना को जारी करने से पहले उसके प्रभाव का भी आकलन करेगा। मीडिया और शुभ दोनों विरोधी लगते हैं। पश्चिमी अवधारणा में खबर तभी बनेगी, जब कुछ अशोभन हो, चौंकानेवाला हो, दर्द का विस्तार करने वाला हो, तो इसमें शुभदृष्टि कहां है? एकात्म भाव से भरा मीडिया इसके विपरीत चलेगा। वह हर सूचना में शुभदृष्टि का विचार करेगा। सूचनाओं को विद्रूप करने, उसे खींचने के बजाए- वह शुभदृष्टि के चलते उसकी न्यूनतम नकारात्मकता का विचार करेगा। जाहिर तौर पर यह मीडिया आज की मीडिया के लीक से अलग चलेगा। वह बाजार और व्यापार के लिए संवाद से सौदा नहीं करेगा। वह मनुष्यता और मनुष्य की मुक्ति को केंद्र में रखते हुए वही परोसेगा, जिससे समाज में जुड़ाव बढ़े और शुभदृष्टि का विचार हो। क्या ऐसा मीडिया संभव है? साथ ही यह सवाल भी है कि यदि समाज में शुभदृष्टि का विचार स्थापित हो जाता है तो क्या हमारा परंपरागत मीडिया अप्रासंगिक नहीं हो जाएगा? सवाल यह भी मौजू है कि मीडिया में सकारात्मकता का प्रसार क्या मुख्यधारा के मीडिया को शक्ति दे सकता है? क्या विचारों और सुसंवाद पर आधारित ऐसे मीडिया की रचना संभव है जिसकी दृष्टि बाजारू न हो? आज दुनिया में 24 घंटे का कोलाहल करने वाला मीडिया उपलब्ध है, क्या इसका भी नियमन नहीं होना चाहिए कि आखिर चौबीस घंटें हमें मीडिया क्यों चाहिए? नकारात्मकता, बिजनेस माडल के आधार पर चलने वाला मीडिया आखिर किसकी जरूरत है? भारत में अभी मीडिया का बहुत व्याप न होने के बावजूद भी अब इसके कंटेट और इसकी जरूरतों पर बात शुरू हो गयी है। हमें यह विचार करने का समय आ गया है कि हमें सोचें कि आखिर हमें कितना और कैसा मीडिया चाहिए? हम कैसे इस मीडिया में वह एकात्म भाव भर सकते हैं जो हर मनुष्य में मौजूद है और नैसर्गिक है। मीडिया की परंपरागत संवाद शैली से अलग हमें इसे शुभदृष्टि की ओर ले जाने की जरूरत है। मीडिया और समाज अलग-अलग नहीं चल सकतेः जीवन मूल्यों की जितनी जरूरत मनुष्य को है, उतनी ही मीडिया को भी है। यह संभव नहीं है कि समाज तो मूल्यों के आधार पर चलने का आग्रही हो और उसका मीडिया, उसकी फिल्में, उसकी प्रदर्शन कलाएं, उसकी पत्रकारिता नकारात्मकता का प्रचार कर रही हों। समाज और मनुष्य को प्रभावित करने का सबसे प्रभावी माध्यम होने के नाते हम इन्हें ऐसे नहीं छोड़ सकते। इन्हें भी हमें अपने जीवन मूल्यों के साथ जोड़ना होगा, जो मनुष्यता और मानवता के विस्तार का ही रूप हैं। अगर हम ऐसा मीडिया खड़ा कर पाते हैं तो समाज के बहुत सारे संकट स्वयं दूर हो जाएंगें। फिर टीवी बहसों से निष्कर्ष निकलेगें, फिर फिल्में समाज में समरसता और ममता का भाव भरेंगीं, फिर खबरें डराने के बजाए जीने का हौसला देंगीं। फिर खबरों का संसार ज्यादा व्यापक होगा। वे जिंदगी के हर पक्ष का विचार करेंगीं। वे एकांगी नहीं होंगीं, पूर्ण होंगीं और शुभता के भाव से भरी-पूरी होंगीं। जाहिर है यहां किसी धार्मिक और आध्यात्मिक मीडिया की बात नहीं हो रही है। सिर्फ उस दृष्टि की बात हो रही है जो एकात्म मानवदर्शन हमें देता है। वह है सबको साथ लेकर चलने, सबका विकास करने और सबसे कमजोर का सबसे पहले विचार करने की बात है। जहां दुनिया को बनाने वाले सारे अववय एक दूसरे से जुड़े हैं। जहां सब मिलकर संयुक्त होते हैं और वसुधा को परिवार समझने की दृष्टि देते हैं। दीनदयाल जी की स्मृतियां और उनके द्वारा प्रतिपादित विचारदर्शन एक सपना भी है तो भी इस जमीं को सुंदर बनाने की आकांक्षा से लबरेज है। उसकी अखंडमंडलाकार रचना का विचार करें तो मनुष्यता खुद अपने उत्कर्ष पर स्थापित होती हुयी दिखती है। इसके बाद उसका समाज और फिल्में, उसका समाज और उसका मीडया, उसका समाज और उसके मूल्य, उसका राह और उसका मन सब एक हो जाते हैं। एकात्म सृष्टि से, एकात्म व्यक्ति से, एकात्म परिवेश से जब हम हो जाते हैं तो प्रश्नों के बजाए सिर्फ उत्तर नजर आते हैं। समस्याओं के बजाए समाधान नजर आते हैं। संकटों के बजाए उत्थान नजर आने लगता है। दुनिया एकात्म मानवदर्शन की राह पर आ रही है, अपने भौतिक उत्थान के साथ आध्यात्मिकता को संयुक्त करने के लिए वह आगे बढ़ चुकी है। यह होगा और जल्दी होगा, हम चाहें तो भी होगा, नहीं चाहे तो भी होगा। क्या हम घरती पर स्वर्ग उतारने के सपने को अपनी ही जिंदगी में सच होते देखना चाहते हैं, तो आइए इस विचार दर्शन को पढ़कर, जीवन में उतारकर देखते हैं। यह हमें इसलिए करना है क्योंकि हमारा जन्म भारत की भूमि पर हुआ है और जिसके पास पीड़ित मानवता को राह दिखाने का स्वाभाविक दायित्व सदियों से आता रहा है। एक बार फिर यह दायित्व क्या हम नहीं निभाएंगें? ( लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक हैं)

नई दिल्ली। देश की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘द वीक’ और ‘हंसा रिसर्च’ के सर्वे में भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी), नई दिल्ली को पत्रकारिता एवं जनसंचार के क्षेत्र में देश का सर्वश्रेष्ठ मीडिया शिक्षण संस्थान घोषित किया गया है। इससे पहले …

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दिल्ली पुलिस की लंबी ड्यूटी होगी कम, तीन शिफ्ट में लग सकती है ड्यूटी

दिल्ली पुलिस की लंबी ड्यूटी होगी कम, तीन शिफ्ट में लग सकती है ड्यूटी

नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस की लंबी ड्यटी कम हो सकती है। जी हां पुलिसकर्मियों की अब तीन शिफ्टों में ड्यूटी लग सकती है। यह संकेत दिल्ली पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने 15 अगस्त से पहले दिल्ली पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना …

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