‘पति छोड़ दूंगी पर नौकरी नहीं।’ बांसगांव की मुनमुन का यह स्वर गांव और क़स्बों में ही नहीं बल्कि समूचे निम्न मध्यवर्गीय परिवारों में बदलती औरत का एक नया सच है। पति परमेश्वर की छवि अब खंडित है। ऐसी बदकती, …
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समय से न लिखने पर रचनाएं भी रिसिया जाती हैं
सच बताऊं दो , चार , दस करोड़ रुपए कमा कर भी वह सुख नहीं मिल सकता जो सुख मुझे बिना एक पैसा पाए किसी रचना को पूरा कर के मिल जाता है । मिलता ही रहता है । अनमोल है …
Read More »एक जीनियस की विवादास्पद मौत
विष्णु प्रताप सिंह जीनियस तो थे ही स्मार्ट भी बहुत थे और प्राइवेट सेक्टर की नौकरी में होने के बावजूद खुद्दार भी ख़ूब थे। यह उनकी खुद्दारी ही थी जो उनकी ओर सब को बरबस खींचती थी। उनके प्रतिद्वंद्वी और …
Read More »छोटा हूं ज़िंदगी से, पर मौत से बड़ा हूं
छोटा हूं ज़िंदगी से पर मौत से बड़ा हूं. आलोक तोमर के निधन की खबर जब होली के दिन मिली तो सोम ठाकुर के एक गीत की यही पंक्तियां याद आ गईं. सचमुच मौत आलोक तोमर से बहुत छोटी साबित …
Read More »जब जिसकी सत्ता तब तिसके अखबार
राजा का बाजा बजा : इधर ममता बनर्जी, सोमा को लेकर भाई लोग पिल पडे़ हैं। पत्रकारिता के प्रोडक्ट में तब्दील होते जाने की यह यातना है। यह सब जो जल्दी नहीं रोका गया तो जानिए कि पानी नहीं मिलेगा। इस …
Read More »महिला लेखन यानी भूख की मारी चिड़िया
महिला लेखन की बिसात और ज़मीन अब बदल गई है। शर्म, संकोच और शराफ़त की जगह अब शरारत, शातिरपन और शोखी अपनी जगह बना रही है। जैसे समाज और व्यवहार बदल रहा है, औरत बदल रही है, वैसे ही महिला …
Read More »सच तो यह है कि कबीर के बाद कोई लेखक सेक्यूलर नहीं हुआ
फेसबुक पर तमाम लेखक लोग सेक्यूलर होने का चोंगा ओढ़ कर बैठे हैं । लेकिन सच यह है कि इन में एक भी सेक्यूलर नहीं हैं । यह अपने को सेक्यूलर कहने वाले सभी लेखक एकपक्षीय हैं । एजेंडा चलाने …
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