पूर्वी दिल्ली स्थित एशिया का सबसे बड़ा माने जाने वाला गाजीपुर स्थित लैंडफिल साइट (कूड़े का पहाड़) को जमींदोज करने की दिशा में अब गंभीर प्रयास शुरू हो गए हैं। इसका नतीजा भी दिखने लगा है। पहली बार 70 एकड़ में फैले इस पहाड़ की ऊंचाई एक साल में बढ़ने के बजाय घटी है। हालांकि चौड़ाई बढ़ी है। दरअसल, यहां सालभर पहले छह ट्रॉमेल मशीनें लगाई गई थीं। इनसे प्रतिदिन 1200 टन कूड़े का निस्तारण किया जा रहा है। शुक्रवार को सांसद गौतम गंभीर ने यहां छह नई मशीनों का उद्घाटन किया। इसके बाद अब यहां प्रतिदिन 2400 टन कूड़ा निस्तारण का रास्ता साफ हो गया है। एक साल में 12.5 मीटर (40 फीट) ऊंचाई कम हो चुकी है। उम्मीद की जा रही है कि अगले एक साल में इतनी ही ऊंचाई और कम हो जाएगी। अगर नए कूड़े को छोड़ दिया जाए और इतनी ही मशीनों से काम किया जाए तो अनुमान है कि 16 साल में यह पहाड़ जमींदोज हो जाएगा। हालांकि निगम के अधिकारी बताते हैं कि धीरे-धीरे और मशीनें लगाई जाएंगी। इससे क्षमता बढ़ेगी तो 10 साल में या उससे पहले भी इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।
पिछले साल राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने आदेश जारी कर दिल्ली के तीनों निगमों को मध्यप्रदेश के इंदौर की तर्ज पर कूड़ा निस्तारण के लिए काम शुरू करने को कहा था। इसके लिए एक अक्टूबर तक का समय दिया गया था। पूर्वी निगम ने सबसे पहले सितंबर, 2019 में ट्रामेल मशीनों को गाजीपुर लैंडफिल साइट पर स्थापित किया। इसके बाद ओखला और भलस्वा लैंडफिल साइट पर भी इन मशीनों का प्रयोग शुरू किया गया, लेकिन पूर्वी निगम ने इस पर अधिक गंभीरता दिखाई।
सांसद गौतम गंभीर के प्रयास से इस पर तेजी से काम शुरू हुआ। गौतम गंभीर ने इंदौर नगर निगम के अधिकारियों को बुलाकर इस पर विस्तृत कार्ययोजना तैयार की। इसके बाद तय हुआ कि पहाड़ पर नया कूड़ा न डाला जाए। इसके बाद प्रतिदिन 2600 टन कूड़ा जो आ रहा है, उसे कूड़े के पहाड़ के साथ वाली खाली जगह पर डाला जाने लगा। इस पहाड़ में 1.40 करोड़ टन पुराना कूड़ा है। ट्रॉमेल मशीनें पुराने कूड़े का ही निस्तारण कर रही हैं। ऊपरी सिरे पर कूड़ा कम था। इस वजह से ऊंचाई जल्दी घटी, लेकिन अब उसकी रफ्तार धीमी हो जाएगी। जैसे-जैसे नीचे आएंगे, कूड़ा अधिक मिलता जाएगा।
गौतम गंभीर के साथ पहुंचे पूर्वी निगम के सलाहकार अभियंता अरुण कुमार ने बताया कि नए कूड़े में 600 टन का इस्तेमाल बिजली बनाने के लिए किया जा रहा है। इससे प्रतिदिन 10 मेगावाट बिजली तैयार हो रही है। बाकी दो हजार टन कूड़ा अभी यहां गिर रहा है। इस तरह से सात लाख टन नया कूड़ा भी यहां जमा हो चुका है। इसके निस्तारण के लिए विभिन्न कंपनियों से बातचीत चल रही है। जब पुराने और नए कूड़े के निस्तारण की व्यवस्था हो जाएगी, तभी हम इसे जमींदोज करने के अपने लक्ष्य तक पहुंच पाएंगे। कई जगहों पर लगीं हैं ट्रॉमेल मशीनें दिल्ली से पहले मध्यप्रदेश के इंदौर, छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर और गुजरात के कुछ शहरों में ट्रामेल मशीनों का इस्तेमाल कूड़ा निस्तारण के लिए किया जा रहा है। दिल्ली में ये मशीनें फिलहाल किराये पर ली गई हैं।
गौतम गंभीर (सांसद, पूर्वी दिल्ली) का कहना है कि मुझे मेहनत पर विश्वास है। हमारे साझा प्रयासों ने कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई 40 फीट तक कम कर दी है। यह प्रयास आगे भी जारी रहेगा। यह पूर्वी दिल्ली का ही मुद्दा नहीं है, बल्कि पूरी दिल्ली का है। इससे छुटकारा पाने के लिए सभी एजेंसियों को मिलकर काम करने की जरूरत है।