अमेरिका और ईरान के बीच बन रहे युद्ध के हालात के बीच पाकिस्तान ने अपनी भूमिका साफ कर दी है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने सोमवार को कहा कि पाकिस्तान अपनी जमीन को किसी युद्ध के लिए इस्तेमाल नहीं होने देगा तथा अमेरिका और ईरान के बीच तनाव को कम करने में भूमिका निभाएगा।
कुरैशी ने तेहरान से आग्रह किया कि वह अमेरिका द्वारा जनरल सुलेमानी को मारने की प्रतिक्रिया में कोई कदम बढ़ाने से परहेज करे। ईरान ने धमकी दी है कि वह इस हमले का जवाब देगा। इस हमले को भुलाया नहीं जा सकता है। ऐसे में ईरान कब क्या कदम उठा दे कहा नहीं जा सकता है। अमेरीका के साथ बढ़ते तनाव के बाद अब ईरान ने खुलेतौर पर ये घोषणा कर दी है कि वो साल 2015 के परमाणु समझौते के तहत लागू की गई किसी भी पाबंदी को नहीं मानेगा।
पाकिस्तानी संसद के ऊपरी सदन को संबोधित करते हुए कुरैशी ने सुलेमानी की हत्या की पृष्ठभूमि में क्षेत्रीय स्थिति और इस विषय पर पाकिस्तान की नीति का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी भी देश के खिलाफ नहीं किया जाएगा और हम किसी भी क्षेत्रीय संघर्ष का हिस्सा नहीं बनेगा।’ उन्होंने कहा कि पाकिस्तान किसी भी एकपक्षीय कार्रवाई के खिलाफ है और क्षेत्र में तनाव कम करने की भूमिका निभाएगा।
इस बीच अमेरिकी एयर स्ट्राइक में ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी के मारे जाने के बाद हालात बिगड़ गए हैं। इसके बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लगता है कि ईरान के साथ 2015 के परमाणु समझौते को कायम रखा जा सकता है। वह इसके लिए ईरान के साथ बातचीत भी कर सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि ईरान ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण है लेकिन संदेह ये था कि ये परमाणु बम विकसित करने का कार्यक्रम था। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अमरीका और यूरोपीय संघ ने 2010 में ईरान पर पाबंदी लगा दी। वर्ष 2015 में ईरान का 6 देशों के साथ एक समझौता हुआ, ये देश अमरीका, ब्रिटेन, फ़्रांस, चीन, रूस और जर्मनी थे। इस समझौते के तहत ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रमों को सीमित किया, बदले में उसे पाबंदी से राहत मिली थी। इस समझौते के तहत ईरान को यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम रोकना पड़ा। ये रिएक्टर ईंधन बनाने के लिए इस्तेमाल होता है और इसका इस्तेमाल परमाणु हथियार बनाने में भी होता है। 2015 के समझौते के अनुसार, ईरान अपनी संवेदनशील परमाणु गतिविधियों को सीमित करने और अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों को आने की अनुमति दी थी, इसके बदले में ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को खत्म किया गया था।