बाल्टिक सागर में स्थित जिस द्वीप का एक समय नाजी जैविक हथियार शोध के लिए इस्तेमाल करते थे, उसपर जर्मनी के वैज्ञानिक वायरस वैक्सीन विकसित करने में जुटे हैं जिससे जिंदगी बचाई जा सकेगी। रिएम्स द्वीप पर पहुंचना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इस द्वीप पर काम करने वाले वैज्ञानिकों को प्रवेश और निकासी के समय कीटाणुनाशक की बौछार से गुजरना होता है और बड़ा सूट पहनना होता है।
बीमारी के प्रभाव की निगरानी के लिए अनुसंधान के क्रम में भेड़ और गाय समेत दर्जनों पशुओं को जानबूझकर वायरस से संक्रमित किया जाता है। द्वीप के फ्रिएड्रिच लोएफ्लेर इंस्टीट्यूट के उप प्रमुख फ्रांज कोनरैथ्स ने कहा, ‘हम वास्तव में वायरस के अल्काट्राज हैं। वायरस की एक जेल की तरह।’ प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण रुएगेन द्वीप के दक्षिण में स्थित रिएम्स रैबीज, अफ्रीकन स्वाइन फ्लू बुखार और इबोला जैसे रोगाणुओं के अध्ययन के लिए वैश्विक केंद्र बन गया है।
अभी हाल ही में पेन स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी डिवाइस बनाई है, जो वायरस के विभिन्न उपभेदों के विकास का तेजी से पता लगाने में समक्ष है। यह इतनी हल्की है कि इसे हाथों से पकड़कर कहीं भी लाया और ले जाया जा सकता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इसकी मदद से वायरस का संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है।
शोधकर्ता मौरिसियो टेरोनस ने बताया कि यह डिवाइस वायरस की उसके आकार के आधार पर पहचान कर सकती है। इसमें नैनोट्यूब्स का उपयोग किया, जो आकार में वायरस की एक विस्तृत श्रृंखला जैसी दिखती है। वायरसों की पहचान के लिए हमने इसमें रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का भी उपयोग किया है।
इस डिवाइस को ‘विररियोन’ नाम दिया गया है। इसकी मदद से खेत में फैले वाइरस का भी पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा पशुओं को भी वायरस संक्रमण होने पर उनके बड़े झुंड को इसकी चपेट में आने से बचाया जा सकता है। इसकी मदद से मिनटों में ही वायरस का पता लगाकर जरूरी इलाज किया जा सकता है।