विलायती बबूल के कोपभाजन बने वन्य जीवों के जंगल में वापसी के संकेत
औरैया : चम्बल-यमुना और उसकी सहायक नदियों के संगम के आंचल में जंगली इलाके में दशकों के इंतजार के बाद तेदुओं की गुर्राहटें एक बार फिर से गूंजी हैं। इन गुर्राहटों से जहां ग्रामीणों में भय पैदा हो रहा है तो वही पर्यावरण विदों की नजर में शुभ संकेतों की बात कही जा रही है। फिलहाल जो भी हो पंचनद के जंगलों में लुप्त हो रहे वन्य जीवों की प्रजातियों की दिशा में सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है। जानकारी के मुताबिक 1980 में चम्बल ‘आय कट योजना’ के तहत बीहड़ी सरजमी पर विलायती बबूल के बीजों का छिड़काव किया गया था और यही सरकारी निर्णय बीहड़ में वन्य जीवों के अस्तित्व पर संकट बन गया। नतीजन तब से लेकर अब तक वन्य जीवों की लगभग एक दर्जन प्रजातियां धीरे—धीरे लुप्त होती चली गई। कारण बना विलायती बबूल का नुकीला कांटा, जिसने गद्दी दार पैरों वाले वन्य जीवों को बीहड़ से पलायन के लिए विवश कर दिया था।
सोसाइटी फॉर कंजर वेशन ऑफ नेचर वर्ष 2015 में अपने सर्वे रिपोर्ट में स्पष्ट किया था कि 1980 से लेकर अब तक 35 बरसों में पंचनद में वन्य जीवों तेंदुआ, बारहसिंहा, काला हिरन, चीतल, लकड़बग्गा समेत लगभग नौ वन्य जीवों प्रजातियां विलुप्त हो गयी और काला नेवला, लाल हिरन, लोमड़ी, केरकिल आदि पर भी संकट खड़ा है। बीते एक माह में बीहड़ी गांवों में ग्रामीणों ने काफी लम्बे अंतराल के बाद तेदुओं का विचरण होना शुरु हुआ है जो अब इनके डर से जंगल में जाने में खासी एहितयात बरत रहे हैं। पंचनद इलाके में बरसों से शोध कर रहे हरेन्द्र राठौर का कहना कि बीते समय में तेदुओं की चहल कदमी कम हुई थी। पिछले एक दशक में वन माफियाओं द्वारा बड़े पैमाने कांटे जा रहे बबूल के चलते इनका विचरण बढ़ना स्वाभाविक है लेकिन इससे घबराएं नहीं बल्कि इनका सामना करने से बचने की जरुरत है।