राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह पांच साल बाद सोमवार को फिर औपचारिक रूप से भाजपाई हो जाएंगे। उन्हें भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह संगठन मुख्यालय पर पार्टी की सदस्यता दिलाएंगे। भले ही लोग यह मान रहे हों कि राज्यपाल की भूमिका के बाद कल्याण का भाजपा में वापसी का फैसला सामान्य है। पर ऐसा नहीं लगता। पूरी स्थितियों पर गौर करें तो इसके गूढ़ निहितार्थ हैं जो भविष्य में सामने आएंगे।
सामान्य तौर पर लगता है कि जिस तरह राम नाईक ने राज्यपाल की भूमिका से निवृत्त होने के बाद भाजपा की सदस्यता ले ली है, वैसे ही कल्याण ले रहे हैं, लेकिन कल्याण का मामला वैसा नहीं लगता। लोगों को याद होगा कि कल्याण कहा करते थे, ‘राम मंदिर के लिए एक क्या सैकड़ों सत्ता को ठोकर मार सकता हूं। एक दिन क्या सात जन्मों की सजा भुगत सकता हूं।’
कल्याण ने फिर सक्रिय राजनीति में वापसी का जो फैसला किया है, वह सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। परिस्थितियों से लगता है कि लंबे समय तक पार्टी के प्रमुख रणनीतिकार और अपनी चालों से विपक्ष को छकाते रहे कल्याण ने आगे की भूमिका के लिए खुद को तैयार करना शुरू कर दिया है।