नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई 8 अप्रैल के लिए टाल दी है। उस दिन सुप्रीम कोर्ट इस बात पर विचार करेगा कि मामले को सुनवाई के लिए संविधान पीठ में भेजना ज़रूरी है या नहीं। याचिकाकर्ता तहसीन पूनावाला की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन से कोर्ट ने कहा था कि वह उन बिंदुओं के बारे में एक संक्षिप्त नोट तैयार करे, जो उन्होंने अपने आवेदन में उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिये दस फीसदी आरक्षण देने के निर्णय पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
12 मार्च को केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर सामान्य वर्ग के आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों को दस फीसदी आरक्षण दिए जाने का बचाव किया। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि संशोधनों ने संविधान की मूल संरचना या सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले का उल्लंघन नहीं किया है। 11 मार्च को सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच से कहा था कि यह मामला संविधान के मूल ढांचे से जुड़ा हुआ है। इसलिए इस मामले पर संविधान बेंच को सुनवाई करनी चाहिए। तब कोर्ट ने कहा था कि अगर बड़ी बेंच को रेफर करने की जरूरत होगी तो हम भेजेंगे।
आठ फरवरी को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने फिलहाल इसको लेकर बनाए कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। याचिका में कहा गया है कि इस फैसले से इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के 50 फीसदी की अधिकतम आरक्षण की सीमा का उल्लंघन होता है। याचिका में कहा गया है कि संविधान का 103वां संशोधन संविधान की मूल भावना का उल्लघंन करता है। याचिका में कहा गया है कि आर्थिक मापदंड को आरक्षण का एकमात्र आधार नहीं बनाया जा सकता है। याचिका में इंदिरा साहनी के फैसले का जिक्र किया गया है जिसमें कहा गया है कि आरक्षण का एकमात्र आधार आर्थिक मापदंड नहीं हो सकता है। याचिका में संविधान के 103वें संशोधन को निरस्त करने की मांग की गई है।