नई दिल्ली : मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा कि चुनावों में अवैध धन स्रोतों के दुरुपयोग को देखते हुए आयोग कुछ और विशेष व्यय पर्यवेक्षकों को संवेदनशील राज्यों में नियुक्त करने पर विचार कर रहा है। उन्होंने कहा कि आयोग ने पहले ही तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों के लिए दो विशेष व्यय पर्यवेक्षकों की नियुक्ति कर दी है। चुनाव आयोग ने 14 मार्च को आयोजित जनरल, पुलिस और व्यय पर्यवेक्षकों के पहले बैच की ब्रीफिंग के बाद मंगलवार को आईएएस, आईपीएस, भारतीय राजस्व सेवा और कुछ अन्य केंद्रीय सेवाओं के एक हजार से अधिक अधिकारियों के लिए दिनभर का सत्र आयोजित किया। इन अधिकारियों को आगामी चुनावों में पर्यवेक्षक के रूप में चार राज्यों की लोकसभा और विधानसभाओं में तैनात किया जाएगा।
मुख्य चुनाव आयुक्त कहा कि पर्यवेक्षक चुनाव आयोग की आंख और कान हैं। वहीं वरिष्ठ व्यय पर्यवेक्षक चुनावों के दौरान बड़ी मात्रा में धन के इस्तेमाल को देखते हुए बहुत महति भूमिका निभाते हैं। इस दौरान उन्होंने पर्यवेक्षकों को उनके क्षेत्र में निष्पक्ष, नैतिक और पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए उनकी महत्वपूर्ण भूमिका समझाई। चुनाव प्रक्रिया के प्रति नागरिकों के मन में विश्वास को मजबूत करने के लिए सभी हितधारकों के लिए सतर्क, निष्पक्ष और सुलभ रहने को कहा। सुनील अरोड़ा ने कहा कि आयोग क्षेत्र में प्रतिनियुक्त किए जा रहे वरिष्ठ अधिकारियों पर पूरा भरोसा करता है और प्रेक्षकों और सीईओ को संपर्क का पहला और अंतिम सूत्र मानता है।
हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि उनके द्वारा किए गए पक्षपात का पता लगने पर आयोग कठोर कार्रवाई को भी तैयार रहता है। चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने व्यय प्रेक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि केवल जब्ती के आंकड़ों को प्रवर्तन मशीनरी का प्रभाव नहीं माना जा सकता। खेप के पीछे धन के स्रोत तक पहुंचकर वास्तविक अपराधियों की जांच होनी भी जरूरी है। चुनाव आयुक्त सुशील चन्द्रा ने कहा कि खुफिया जानकारी रखना और उम्मीदवारों के खातों की निगरानी करना चुनाव प्रक्रिया को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करने वाले नाजायज संसाधनों की भूमिका को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है।