लोकसभा चुनाव के मद्देनजर आम आदमी पार्टी (AAP) के साथ गठबंधन का विरोध करती रही प्रदेश कांग्रेस जहां दबे स्वर में ही सही, अब राजी नजर आ रही है, वहीं अंतिम फैसला राहुल गांधी की व्यस्तता के कारण अटका हुआ है। इस बीच, प्रदेश कांग्रेस में खामोशी बरकरार है। आपस में चर्चा सभी कर रहे हैं, लेकिन खुलकर कोई कुछ नहीं बोल रहा है।
AAP के साथ गठबंधन को लेकर पार्टी में शक्ति ऐप के जरिये करीब 52 हजार कार्यकर्ताओं से रायशुमारी हो चुकी है, 280 ब्लॉक अध्यक्षों और 14 जिलाध्यक्षों की राय भी जानी जा चुकी है। प्रदेश अध्यक्ष, तीनों कार्यकारी अध्यक्षों, सभी पूर्व प्रदेश अध्यक्षों और तमाम बड़े नेताओं से भी उनकी राय जान ली गई है। सूत्रों की मानें तो तीन पूर्व प्रदेश अध्यक्षों ने भी गठबंधन के पक्ष में अपना समर्थन दे दिया है।
एक वर्ग अब भी गठबंधन के खिलाफ है, लेकिन नीचे से लेकर ऊपर तक सभी सहमत हैं कि आखिरी फैसला पार्टी आलाकमान का ही होगा। अब इस दिशा में प्रदेश पार्टी प्रभारी पीसी चाको की राहुल गांधी के साथ बैठक होनी है। बैठक में गठबंधन को लेकर सारी रिपोर्ट रखी जाएगी।
इस दौरान भाजपा को हराने की रणनीति और लोकसभा चुनाव में आप के साथ गठबंधन के फायदों पर भी विचार-विमर्श होगा। इसके बाद पार्टी हाईकमान जो भी निर्णय लेंगे, वही सर्वमान्य होगा। प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित भी हामी भर चुकी हैं कि वह पार्टी के साथ हैं।
उनकी ओर से कहा जा रहा है कि वह अब सारी तस्वीर साफ होने के बाद ही कोई प्रतिक्रिया देंगी। सोमवार को राहुल कर्नाटक में थे, जबकि मंगलवार को पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक है। बताया जाता है कि दिल्ली में मतदान चूंकि 12 मई को छठे चरण में है, इसलिए भी अधिक तत्परता नहीं दिखाई जा रही है।
पीसी चाको, प्रदेश प्रभारी एवं महासचिव, एआइसीसी का कहना है कि दिल्ली में गठबंधन को लेकर अंतिम फैसला पार्टी हाईकमान को करना है। उनसे समय मांगा हुआ है, लेकिन व्यस्तताओं के चलते यह बैठक हो नहीं पा रही है। वैसे अभी हमारे पास समय भी है। फिर भी संभावना है कि दो से चार दिन में सारी तस्वीर साफ हो जाएगी।
…तो दिल्ली में भी गठबंधन पर असर पड़ने के आसार
भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस देशभर में गठबंधन की नीति पर काम कर रही है, लेकिन दो बड़े राज्यों पश्चिम बंगाल और बिहार में भी अभी तक पार्टी को कामयाबी नहीं मिल पाई है। उत्तर प्रदेश में भी स्पष्ट है कि गठबंधन कर चुकी सपा-बसपा कांग्रेस के साथ हाथ नहीं मिलाएंगी। वहीं, बिहार में राजद एवं पश्चिम बंगाल में वाम दलों के साथ लगातार रस्साकशी ही चल रही है। अगर यहां भी पार्टी को कामयाबी नहीं मिली तो इस सबका असर दिल्ली में भी देखने को मिल सकता है। पार्टी के आला नेताओं का कहना है कि यदि कहीं गठबंधन नहीं होता है तो फिर महज दिल्ली की सात सीटों के लिए भी गठबंधन करने का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा।