मनोहर पर्रीकर ने कैंसर के सामने घुटने नहीं टेके। उन्होंने जीवन के अंतिम समय तक संघर्ष किया। यह जानने के बाद भी कि उन्हें पैंक्रियाज (अग्न्याशय) का कैंसर था और वह भी एडवांस स्टेज का। इस कारण उनका बच पाना मुश्किल था, फिर भी इलाज के दौरान एम्स के डॉक्टरों ने उनके चेहरे पर कभी शिकन नहीं देखी थी।
एम्स के डॉक्टरों को दिया था गोवा आने का न्योता
एम्स के डॉक्टर उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि उन्हें कैंसर का बिल्कुल खौफ नहीं था। इलाज के दौरान वह बड़े आराम से बात करते थे। एम्स से जाते वक्त डॉक्टरों को गोवा आने का आमंत्रण भी दिया था। उनके निधन से एम्स के डॉक्टर आहत हैं। वे कैंसर से जंग में पर्रीकर को रोल मॉडल बताते हैं।
मरीजों के लिए प्रेरणा थे
एम्स में उनका इलाज करने वाले मेडिकल आंकोलॉजी के विशेषज्ञ डॉ. अतुल शर्मा ने कहा कि जिस जज्बे के साथ उन्होंने परिस्थितियों का सामना किया, इलाज के साथ-साथ गोवा के मुख्यमंत्री का कामकाज बखूबी संभालते रहे, यह दूसरों के लिए भी प्रेरणादायी है। वह मुख्यमंत्री होते हुए भी आम आदमी की तरह इलाज के दौरान डॉक्टरों से बात करते थे और बेहद सादगी में रहते थे।
बात- बात में डॉक्टरों को हंसा देते थे
खुद तेजतर्रार होने के बावजूद वह डॉक्टरों की सलाह का पालन करते थे। जांच के दौरान कई बार वह सवाल भी करते थे और कई बार अपनी बातों से सबको हंसा भी देते थे। यह बताते हुए डॉ. अतुल शर्मा गमगीन हो जाते हैं। वह उनके निधन को गोवा के साथ ही देश के लिए अपूर्णीय क्षति बताते हैं।
कैंसर के इलाज में अमेरिका भी गए थे
उल्लेखनीय है कि कैंसर का पता चलने के बाद इलाज के लिए पर्रीकर अमेरिका गए थे। वहां से लौटने के कुछ समय बाद पिछले साल 15 सितंबर को उन्हें एम्स में भर्ती किया गया था। तब वह करीब एक माह तक भर्ती रहे थे। 14 अक्टूबर को उन्हें छुट्टी दी गई थी। इसके बाद इस साल 31 जनवरी को उन्हें दोबारा एम्स के कैंसर सेंटर में भर्ती किया गया था। इस दौरान भी वह कई दिनों तक भर्ती रहे थे। उन दिनों को याद कर एम्स के डॉक्टर गमजदा हो जाते हैं।