घरेलू क्रिकेट में जब भी दबदबे की बात होती है तो मुंबई, दिल्ली, कर्नाटक, तमिलनाडु की टीमों का नाम सबसे पहले आता है. लेकिन विदर्भ (Vidarbha) ने पिछले दो साल में इन धारणाओं को तोड़ दिया है. उसने दो साल में वह कर दिखाया है, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. इस टीम ने 2017-18 में अपना पहला रणजी ट्रॉफी (Ranji Trophy) और ईरानी कप (Irani Cup) खिताब जीता. कुछ क्रिकेट पंडितों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया, तो कुछ ने इत्तफाक बताया. विदर्भ ने इसका जवाब फिर अपने प्रदर्शन से दिया और 2018-19 रणजी ट्रॉफी और ईरानी कप फिर से अपने नाम कर लिया.
विदर्भ की इस जीत के कई नायक रहे. एक टीम जब जीतती है तो कोई एक शख्स उसकी वजह नहीं होता. अक्सर इसमें खिलाड़ियों के साथ-साथ कचिंग स्टाफ योगदान रहता है. विदर्भ की दो साल में चार खिताबी जीत इस बात की बानगी है. कई लोगों के लिए यह सोचने का विषय हो सकता है कि जो विदर्भ नॉकआउट दौर तक ही रह जाती थी, वह चार खिताब कैसे ले गई. लेकिन इसके पीछे उसके खिलाड़ियों की अथक मेहनत है, जिसे साफ तौर पर देखा जा सकता है. इसकी एक और बड़ी वजह हैं, विदर्भ के मुंबइया कोच चंद्रकांत पंडित.
चंद्रकांत पंडित के कोच बनते ही बदल गई तस्वीर
भारत के लिए पांच टेस्ट और 36 वनडे खेलने वाला यह खिलाड़ी 2017-18 सीजन में टीम का कोच बना और अपने पहले ही कार्यकाल में विदर्भ को पहली बार रणजी ट्रॉफी विजेता बना दिया. चंद्रकांत पंडित (Chandrakant Pandit) को क्रिकेट की दुनिया में खडूस कहा जाता है. इसके पीछे वजह उनकी कोचिंग स्टाइल है. वे गेंदबाजों को अभ्यास में नो बॉल फेंकने की सजा 500 रुपए जुर्माने के तौर पर देते हैं तो खिलाड़ी से निजी तौर पर बात कर उसका आत्मविश्वास भी बढ़ाते हैं. चंद्रकांत पंडित जब नागपुर आए थे, मुंबई को रणजी ट्रॉफी विजेता बनाकर आए थे. भारत की सबसे सफल घरेलू टीम के बाद पंडित ने विदर्भ में उस जीत के जज्बे को जेहन में डाला. पंडित के आने के बाद विदर्भ बदल चुकी थी.
चंदू सर किसी को हल्के में नहीं लेते: आदित्य सरवाटे
इस सीजन रणजी ट्रॉफी के फाइनल में विदर्भ की जीत का अहम हिस्सा रहने वाले आदित्य सरवाटे ने कहा, ‘हमने हर मैच को करो या मरो की तरह लिया. यही हमारा दो सीजनों में प्लस प्वाइंट रहा. चंदू सर जो हमारे कोच हैं. उनका जो एप्रोच है वह कारगर है क्योंकि वह किसी भी टीम को हल्के में नहीं लेते.’ सरवाटे के मुताबिक, कोच के ही सिखाए रास्तों पर चलने का नतीजा है कि विदर्भ दो साल में चार खिताब जीतने में सफल रहा है.
वसीम जाफर के साथ आने से बढ़ी ताकत
विदर्भ की जीत के दूसरे हीरो का नाम वसीम जाफर (Wasim Jaffer) है. भारत के लिए 31 टेस्ट खेल चुके जाफर 2015-16 में विदर्भ से जुड़े. जाफर मुंबई के साथ रहते हुए रणजी ट्रॉफी का खिताब जीत चुके थे. उनके पास बड़े मैचों का अच्छा-खासा अनुभव था, जो विदर्भ के काम आया. जरूरत पड़ने पर जाफर ने न सिर्फ बल्ले से बेहतरीन योगदान दिया बल्कि वे रणनीति में भी हमेशा टीम की थिंक टैंक का अहम हिस्सा रहे. इस रणजी सीजन में जाफर ने 15 पारियों में 1037 रन बनाए. वे हालांकि ईरानी कप में नहीं खेले, लेकिन जाफर ने पर्दे के पीछे मेंटॉर के रूप में जो काम किया है वह किसी से छुपा नहीं है.
कप्तान फैज फजल की बैटिंग और स्ट्रेटजी भी अहम
क्रिकेट जैसे खेल में किसी भी टीम की सफलता उसके कप्तान के इर्द-गिर्द ही घूमती है. फैज फजल (Faiz Fazal) कप्तान के रूप में विदर्भ के सबसे सफल कप्तान रहे हैं. उन्हें इस कायाकल्प का तीसरा हीरो कहा जा सकता है. विदर्भ ने उन्हीं की कप्तानी में यह सभी खिताब जीते. मैदान पर सफल रणनीतिकार से लेकर सलामी बल्लेबाज के तौर पर टीम को मजबूत शुरुआत देने की दोनों जिम्मेदारियों को फैज ने बखूबी निभाया. सरवाटे भी मानते हैं कि जाफर और फैज के रहने से टीम का बल्लेबाजी क्रम बेहद मजबूत रहा जिससे टीम को बेहद फायदा हुआ. आदित्य सरवाटे ने कहा, ‘वसीम भाई तो लीजेंड हैं. उनका टीम में रहना ही बड़ी बात है. फैज भाई लगातार टीम के लिए अच्छा कर रहे हैं. हमारी बल्लेबाजी इनके रहने से काफी मजबूत है. सफलता का काफी हद तक श्रेय वसीम भाई और फैज भाई को जाता है.’
सही मायने में टीम की सफलता इन तीनों के ही इर्द गिर्द घूमती है. इन तीनों की तिकड़ी ने विदर्भ को एक आम टीम से विजेता में तब्दील किया और वह दिग्गजों की परछाई से निकलकर खुद घरेलू क्रिकेट की दिग्गज टीम बन गई. पंडित, जाफर और फजल ने टीम में जीत की भूख पैदा की और खिलाड़ियों को जीतने का आत्मविश्वास दिलाया. दोनों सीजन में टीम लगभग एक जैसी थी लेकिन हर जीत के हीरो अलग-अलग थे. इससे साबित होता है कि विदर्भ चुनिंदा खिलाड़ियों के बूते सफलता हासिल करने वाली टीम नहीं हैं.
पिछले सीजन में बल्ले से फैज और जाफर के अलावा अक्षय वाडकर ने कमाल दिखाया था. गेंद से रजनीश गुरबानी ने टीम को सफलता दिलाई थी. इन दोनों ने इस सीजन में भी अच्छा प्रदर्शन किया और टीम को एक बार फिर खिताब तक लेकर आए. इस सीजन कहानी बदली और आदित्य सरवाटे, अक्षय कारनेवार जैसे खिलाड़ी निकल कर सामने आए, जिन्होंने विदर्भ को दोनों खिताब बचाए रखने में मदद की. इस फेहरिस्त में अक्षय वघारे, गणेश सतीश, उमेश यादव जैसे नाम भी हैं.