‘हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा’ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की यह मशहूर कविता आज भी लोगों की जुबान पर रहती है। बीजेपी के फाउंडर मेंबर के साथ अटल बिहारी वाजपेयी एक शानदार कवि भी थे और उनकी कई कविताएं मशहूर हुईं। वे हमेशा अपने भाषणों में अपनी कविताएं सुनाया करते थे। आज भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की 95वीं जयंती है। उनका जन्म ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 में हुआ था। इस खास मौके पर यहां हम आपको अटल बिहारी वाजपेयी की 5 कविताओं के बारे में बता रहे हैं जो काफी लोकप्रिय हैं।
मशहूर कविताएं-
1: दो अनुभूतियां
-पहली अनुभूति
बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
-दूसरी अनुभूति
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं
————————-
2- कदम मिलाकर चलना होगा
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा.
———————-
3- दूध में दरार पड़ गई
खून क्यों सफेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया.
बंट गये शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार दड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गये नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है.
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई.
अपनी ही छाया से बैर,
गले लगने लगे हैं ग़ैर,
ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता.
बात बनाएं, बिगड़ गई.
दूध में दरार पड़ गई.
————————–
4. मनाली मत जइयो
मनाली मत जइयो, गोरी
राजा के राज में.
जइयो तो जइयो,
उड़िके मत जइयो,
अधर में लटकीहौ,
वायुदूत के जहाज़ में.
जइयो तो जइयो,
सन्देसा न पइयो,
टेलिफोन बिगड़े हैं,
मिर्धा महाराज में.
जइयो तो जइयो,
मशाल ले के जइयो,
बिजुरी भइ बैरिन
अंधेरिया रात में.
जइयो तो जइयो,
त्रिशूल बांध जइयो,
मिलेंगे ख़ालिस्तानी,
राजीव के राज में.
मनाली तो जइहो.
सुरग सुख पइहों.
दुख नीको लागे, मोहे
राजा के राज में.
———————-
5- मस्तक नहीं झुकने दूंगा
एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते
पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।
अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतंत्रता
त्याग, तेज, तप, बल से रक्षित यह स्वतंत्रता
प्राणों से भी प्रियतर यह स्वतंत्रता।
इसे मिटाने की साजिश करने वालों से
कह दो चिनगारी का खेल बुरा होता है
औरों के घर आग लगाने का जो सपना
वह अपने ही घर में सदा खरा होता है।
अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र न खोदो
अपने पैरों आप कुल्हाड़ी नहीं चलाओ
ओ नादान पड़ोसी अपनी आंखें खोलो
आजादी अनमोल न इसका मोल लगाओ।
पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है
तुम्हें मुफ्त में मिली न कीमत गई चुकाई
अंगरेजों के बल पर दो टुकड़े पाए हैं
मां को खंडित करते तुमको लाज न आई।
अमेरिकी शस्त्रों से अपनी आजादी को
दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो
दस-बीस अरब डॉलर लेकर आने वाली
बरबादी से तुम बच लोगे, यह मत समझो।
धमकी, जेहाद के नारों से, हथियारों से
कश्मीर कभी हथिया लोगे, यह मत समझो
हमलों से, अत्याचारों से, संहारों से
भारत का भाल झुका लोगे, यह मत समझो।
जब तक गंगा की धार, सिंधु में ज्वार
अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष
स्वातंत्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे
अगणित जीवन, यौवन अशेष।
अमेरिका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध
कश्मीर पर भारत का ध्वज नहीं झुकेगा,
एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते
पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।