स्कोल्ज़ ने यह बयान एक आपातकालीन बैठक के बाद दिया, जिसे फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने बुलाया था। यह बैठक रूस और अमेरिका के बीच होने वाली वार्ता से पहले हुई, जिसमें यूरोपीय देशों ने अपनी रणनीति पर चर्चा की। स्कोल्ज़ ने कहा कि यूक्रेन किसी भी ऐसी शांति को स्वीकार नहीं कर सकता जो जबरदस्ती थोपी जाए।
जर्मन चांसलर ने यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका से सामूहिक सुरक्षा के लिए मिलकर कार्य करने का आग्रह किया और कहा कि नाटो की ताकत इसी में है कि सभी देश मिलकर काम करें और जोखिम साझा करें। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस एकता पर कोई सवाल नहीं उठना चाहिए।
जब उनसे पूछा गया कि क्या यूरोपीय देश शांति मिशन के तहत यूक्रेन में जमीनी सेना भेज सकते हैं, तो स्कोल्ज ने इसे “समय से पहले” बताया और कहा कि इस पर अभी चर्चा करना सही नहीं होगा। हालांकि, उन्होंने यह जरूर कहा कि यूरोपीय देश अपनी सुरक्षा को मजबूत करने के लिए अपने सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम दो प्रतिशत रक्षा बजट पर खर्च करने के लिए तैयार हैं।
इसके अलावा, जर्मनी इस बात का समर्थन करता है कि अगर यूरोपीय देश अपनी रक्षा पर ज्यादा खर्च करते हैं, तो इस खर्च को उनके बजट घाटे की गणना में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
इस बैठक में नाटो और यूरोपीय कमीशन के नेताओं के साथ-साथ फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, पोलैंड, स्पेन, इटली, डेनमार्क और नीदरलैंड सहित कई यूरोपीय देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए। इसका मुख्य उद्देश्य रूस और अमेरिका की वार्ता से पहले एक साझा यूरोपीय प्रतिक्रिया तैयार करना था। हालांकि, इस वार्ता में न तो ब्रुसेल्स को और न ही कीव को आमंत्रित किया गया है।