महाकुम्भ को एकता,समता और समरसता के धागे में पिरो रहे सीएम योगी

महाकुम्भनगर। तीर्थराज प्रयागराज में संगम तट पर सनातन आस्था और संस्कृति के महापर्व महाकुम्भ का आयोजन हो रहा है। इस महाकुम्भ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एकता का महाकुम्भ करार दिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी विभिन्न मंचों से इस महाकुम्भ को सामाजिक समरसता का सबसे बड़ा समागम बता चुके हैं और इसे चरितार्थ करते हुए उन्होंने इस बार विभिन्न वर्गों एवं संप्रदायों से आने वाले साधु संतों का सम्मान व अभिनंदन कर एक नई पहल और उदाहरण प्रस्तुत किया है। महाकुम्भ में आने वाले दिनों में सीएम योगी कई और वर्गों और संप्रदायों से जुड़े संतों को सम्मानित करने वाले हैं। सीएम योगी का स्पष्ट मत है कि मानवता के इस महापर्व में देश के कोने-कोने से, अलग-अलग भाषा, जाति, पंथ, संप्रदाय के धार्मिक संत, संन्यासी और महानुभाव सम्मिलित हो रहे हैं। इन सभी का यहां सम्मान होना चाहिए और उन्हें बिना भेदभाव हर वो सुविधा और व्यवस्था मिलनी चाहिए जो पहले से स्थापित साधु संतों व अखाड़ों को प्राप्त हो रही है। सीएम योगी के निर्देश पर इस बार कई ऐसी संस्थाओं को भी भूमि आवंटित की गई, जो या तो पहली बार सम्मिलित हो रहे हैं या फिर कई वर्ष पूर्व इसका हिस्सा बनते थे, लेकिन किन्हीं कारणों से बीते कुम्भ में वो सम्मिलित नहीं हो सके। सीएम योगी की इस पहल की संत समाज में काफी प्रशंसा हो रही है।

हर वर्ग, संप्रदाय के लिए समानता का भाव

प्रयागराज का महाकुम्भ विश्व का सबसे बड़ा मानवीय और आध्यात्मिक सम्मेलन है। यूनेस्को ने महाकुम्भ को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत घोषित किया है। सीएम योगी का मानना है कि महाकुम्भ भारत की सांस्कृतिक विविधता में समायी हुई एकता और समता के मूल्यों का सबसे बड़ा प्रतीक है। यहां सब एक समान हैं। अपने इसी उद्देश्य को संदेश के रूप में आमजन तक पहुंचाने के लिए सीएम योगी ने इस बार हर वर्ग से जुड़े संतों को मंच पर सम्मानित करने की पहल की है। इसी क्रम में सीएम योगी ने 21, 25 और 27 जनवरी को महाकुम्भ मेला क्षेत्र में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में शिरकत कर तमाम वर्गों के संतों और संन्यासियों का सम्मान किया। इन संतों और संन्यासियों में बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति, घुमंतू जातियों, उत्तर पूर्व के साथ ही बौद्ध धर्म के विदेशी धार्मिक संत एवं महानुभाव सम्मिलित रहे। आने वाले दिनों में सीएम नानक पंथी, बौद्ध और अनुसूचित जनजातियों के धार्मिक संतों, संन्यासियों और महानुभावों का भी सम्मान करने के लिए महाकुम्भ में आएंगे।

स्वागत, सम्मान और सत्कार

सीएम योगी का बार-बार प्रयागराज आना इसी का द्योतक है। महाकुम्भ की तैयारियों, विकास कार्यों की समीक्षा के साथ-साथ सीएम योगी विभिन्न वर्गों, संप्रदायों, जातियों से जुड़े संतों से भी भेंट कर रहे हैं। हाल ही में अखिल भारतवर्षीय अवधूत भेष बारह पंथ योगी महासभा कार्यक्रम में उन्होंने देश के कई राज्यों से आए विभिन्न वर्गों के संतों का शॉल ओढ़ाकर व भेंट देकर स्वागत और सम्मान किया। नाथ अखाड़ा के कार्यक्रम में भी सीएम योगी ने साधु संतों का सत्कार किया और उन्हें अपने हाथों से प्रसाद परोसा और उनके साथ बैठकर खुद भी प्रसाद ग्रहण किया। विहिप के कार्यक्रम में भी उन्होंने देश भर के साधु संतों से मुलाकात कर उनका कुशलक्षेम जाना और उन्हें आश्वासन दिया कि महाकुम्भ में उन्हें कोई समस्या नहीं होगी। सोमवार को ही वह सतपाल महाराज के शिविर में संतों और संन्यासियों के बीच पहुंचे और वो भी तब जब लखनऊ रवाना होने के लिए उनका हेलिकॉप्टर तैयार हो चुका था। आने वाले दिनों में सीएम योगी अपने इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए महाकुम्भ में और भी दौरे कर सकते हैं।

एकता, समता, समरसता का उदाहरण है महाकुम्भ

पीएम मोदी और सीएम योगी ने महाकुम्भ को एकता का महाकुम्भ बनाने का जो संकल्प लिया है वो अब तक पूरी तरह सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। करोड़ों लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ त्रिवेणी संगम में डुबकी लगा रहे हैं। श्रद्धालु, समस्त साधु,संन्यासियों का आशीर्वाद ले रहे हैं, मंदिरों में दर्शन कर अन्नक्षेत्र में एक ही पंगत में बैठ कर भण्डारों में खाना खा रहे हैं। महाकुम्भ भारत की सांस्कृतिक विविधता में समायी हुई एकता और समता के मूल्यों का सबसे बड़ा प्रदर्शन स्थल है, जिसे दुनिया भर से आये पर्यटक देखकर आश्चर्यचकित हैं। कैसे अलग-अलग भाषायी, रहन-सहन, रीति-रिवाज को मानने वाले एकता के सूत्र में बंधे संगम में स्नान करने चले आते हैं। साधु-संन्यासियों के अखाड़े हों या तीर्थराज के मंदिर और घाट, बिना रोक टोक श्रद्धालु दर्शन,पूजन करने जा रहे हैं। संगम क्षेत्र में चल रहे अनेक अन्न भण्डार सभी भक्तों, श्रद्धालुओं के लिए दिनरात खुले हैं जहां सभी लोंग एक साथ पंगत में बैठ कर भोजन ग्रहण कर रहे हैं। महाकुम्भ मेले में भारत कि विविधता इस तरह समरस हो जाती है कि उनमें किसी तरह का भेद कर पाना संभव नहीं है।

अनवरत जारी है सनातन संस्कृति की परंपरा

महाकुम्भ में सनातन परंपरा को मनाने वाले शैव, शाक्त, वैष्णव, उदासीन, नाथ, कबीरपंथी, रैदासी से लेकर भारशिव, अघोरी, कपालिक सभी पंथ और संप्रदायों के साधु,संत एक साथ मिलकर अपने-अपने रीति-रिवाजों से पूजन-अर्चन और गंगा स्नान कर रहे हैं। संगम तट पर लाखों की संख्या में कल्पवास करने वाले श्रद्धालु देश के कोने-कोने से आए हैं। अलग-अलग जाति,वर्ग,भाषा को बोलने वाले साथ मिलकर महाकुम्भ की परंपराओं का पालन कर रहे हैं। महाकुम्भ में अमीर, गरीब, व्यापारी, अधिकारी सभी तरह के भेदभाव भुलाकर एक साथ एक भाव में संगम में डुबकी लगा रहे हैं। महाकुम्भ और मां गंगा, नर, नारी, किन्नर, शहरी, ग्रामीण, गुजराती, राजस्थानी, कश्मीरी, मलयाली किसी में भेद नहीं करती। अनादि काल से सनातन संस्कृति की समता,एकता कि ये परंपरा प्रयागराज में संगम तट पर महाकुम्भ में अनवरत चलती आ रही है।

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