बलूचिस्तान : पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत क्यों रहता है अशांत, उठती रही है आजादी की मांग

इस्लामाबाद। बलूचिस्तान का सवाल पाकिस्तान के लिए एक बड़ी परेशानी बनता जा रहा है। यह देश का सबसे बड़ा प्रांत है। इसे भू-आर्थिक और भू-रणनीतिक रूप से बेहद अहम माना जाता है फिर भी यह अशांत रहता है। बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने रविवार को दावा किया कि उसकी फिदायी यूनिट मजीद ब्रिगेड ने शनिवार को बलूचिस्तान के तुर्बत के पास एक पाकिस्तानी सेना के काफिले पर आत्मघाती हमला किया। हमले में 47 कर्मियों की मौत हो गई और 30 से अधिक घायल हो गए।

बलूचिस्तान को प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर माना जाता है। इसके बावजूद विकास की दौड़ में सबसे पीछे रह गया है।

पाकिस्तान के भूमि क्षेत्र का लगभग 44 हिस्सा बलूचिस्तान का है। इसका केवल 5 कृषि योग्य है। यह अत्यंत शुष्क रेगिस्तानी जलवायु के लिए जाना जाता है। यह अफगानिस्तान और ईरान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा भी साझा करता है।

यहां की अर्थव्यवस्था प्राकृतिक संसाधनों, विशेष रूप से इसके प्राकृतिक गैस क्षेत्रों पर हावी है। क्वेटा के अलावा, प्रांत का दूसरा सबसे बड़ा शहर दक्षिण में तुर्बत है। जबकि प्रमुख आर्थिक महत्व का एक अन्य क्षेत्र अरब सागर पर बंदरगाह शहर ग्वादर है, जो भविष्य का उभरता हुआ व्यापारिक केंद्र है।

बलूचिस्तान नाम का अर्थ है बलूच की भूमि। बलूचिस्तान नाम का इस्तेमाल दरअसल एक व्यापक भौगोलिक क्षेत्र के लिए किया जाता है ईरान और अफ़ग़ानिस्तान की जमीन भी शामिल है।

बलूच लोग पाकिस्तान की ईरानी प्रांत सिस्तान-बलूचिस्तान के साथ-साथ अफगानिस्तान के दक्षिण इलाकों में भी रहते हैं। बलूच अलगाववादी आंदोलन सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं बल्कि ईरान के सिस्तिन और बलूचिस्तान प्रांत में भी जारी है।

बलूचिस्तान की भू-रणनीतिक अहमियत के कारण चीन की मत्वकांक्षी परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) का एक बड़ा हिस्सा इसी प्रांत में है।

सीपीईसी चीनी शी जिनपिंग की बेल्ट एंड रोड पहल का हिस्सा है और ग्वादर शहर का बंदरगाह इस प्रोजेक्ट के लिए बेहद अहम मान जाता है।

बलूचिस्तान में लगातार आजादी की आवाजें उठती रही हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि प्रांतीय और केंद्र सरकारें यहां के प्राकृतिक संसाधनों को दोहन का भारी मुनाफा कमाती रही हैं लेकिन इलाके में विकास को पूरी तरह उपेक्षा की गई है। प्रांत में बलूच राष्ट्रवादियों ने आजादी के लिए 1948-50, 1958-60, 1962-63 और 1973-1977 में विद्रोह किए हैं।

बलूचिस्तान में फिलहाल कई उग्रवादी समूह एक्टिव हैं जो कि हिंसक गतिविधियों को अंजाम देते रहे हैं। वहीं पाकिस्तान सरकार, सुरक्षा बलों पर इस इलाके में मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन के आरोप लगते आए हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कई मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि यहां हजारों लोग लापता हुए हैं और इसके लिए मुख्य रूप से पाकिस्तानी सुरक्षा बल और उनके कथित उग्रवाद विरोधी ऑपरेशन जिम्मेदार है।

बलूचिस्तान में फिलहाल हालात काफी नाजुक है। बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए), बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (बीएलएफ), बलूच राजी आजोई संगर (बीआरएएस) समेत कई उग्रुवादी संगठन यहां सक्रिय हैं।

बीएलए और बीएलएफ खास तौर से सरकार के लिए परेशानी का कारण बने हुए हैं। पाकिस्तान सरकार ईरान और अफगानिस्तान पर इन्हें पनाह देने का आरोप लगाता रहा है।

2024 बलूचिस्तान के लिए बेहद मुश्किल वर्ष रहा है। द बलूचिस्तान पोस्ट के मुताबिक वर्ष 2024 में बलूचिस्तान में हिंसक गतिविधियों में तीव्र वृद्धि देखी गई क्योंकि स्वतंत्रता समर्थक उग्रवादी समूहों ने पाकिस्तानी राज्य के खिलाफ अपने अभियान तेज कर दिए।

बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए), बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (बीएलएफ), बलूच राजी आजोई संगर (बीआरएएस) और अन्य संगठनों ने कथित तौर पर सैन्य बलों, बुनियादी ढांचे और राज्य सहयोगियों को निशाना बनाकर सैकड़ों हमले किए।

सामूहिक रूप से, इन ग्रुप्स ने 938 हमले किए, जिसके परिणामस्वरूप 1002 से अधिक मौतें, 689 घायल और कम से कम 546 संपत्ति को नुकसान पहुंचा।

2024 में बीएलए सबसे सक्रिय ग्रुप बना रहा, जिसने 302 हमले किए, जिनमें कथित तौर पर 580 से ज्यादा लोगों की मौत हुई जबकि 370 से अधिक घायल हुए। कम से कम 171 हमलों में संपत्ति को नुकसान पहुंचा।

ग्रुप ने 21 जिलों में 240 क्षेत्रों में ऑपरेशन करने का दावा किया। रिपोर्ट के मुताबिक इसके करीब 52 लड़ाके मारे गए जिनमें से अधिकतर मजीद ब्रिगेड के थे। मजीद ब्रिगेड हाई-प्रोफाइल आत्मघाती अभियानों को अंजाम देती है।

बीएलए ने कहा कि मजीद ब्रिगेड ने 2024 में छह बड़े ऑपरेशन किए, जिससे कथित तौर पर पाकिस्तानी सेना को काफी नुकसान हुआ।

बीएलए को पाकिस्तान, ईरान, चीन, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ ने आतंकी संगठन घोषित किया है।

 

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