प्रैक्सिस ग्लोबल अलायंस की रिपोर्ट के अनुसार, किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) भारतीय किसानों, विशेष रूप से छोटे किसानों की आर्थिक भलाई में सुधार के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में उभरे हैं।
संसाधनों को इकट्ठा कर, एफपीओ किसानों को कम लागत पर गुणवत्तापूर्ण इनपुट तक पहुंच प्रदान करते हैं और बाजार तक पहुंच को सुविधाजनक बनाते हैं।
प्रैक्सिस ग्लोबल अलायंस में खाद्य और कृषि के प्रैक्टिस लीडर अक्षत गुप्ता ने कहा, एफपीओ मॉडल के सबसे सफल उदाहरणों में से एक डेयरी सहकारी अमूल है, जिसने लाखों छोटे किसानों को उचित मूल्य और विशाल बाजार नेटवर्क तक पहुंच प्रदान कर सशक्त बनाया है।
भारत का कृषि क्षेत्र इसकी अर्थव्यवस्था का आधार बना हुआ है, जो लगभग 42 प्रतिशत आबादी को रोजगार देता है। सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान 18 प्रतिशत है।
रिपोर्ट के अनुसार, मेगा फूड पार्कों की स्थापना और कोल्ड चेन में निवेश के साथ, भारत फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम कर सकता है और अपने उत्पादों की शेल्फ-लाइफ बढ़ा सकता है, जिससे उसे उच्च मूल्य वाले अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच बनाने में मदद मिलेगी।
कृषि निर्यात के विस्तार में ऑस्ट्रेलिया की सफलता काफी हद तक फार्म एक्सपोर्ट फैसिलिटेशन प्रोग्राम (एफईएफपी) के कारण है, जो लॉजिस्टिक्स में सुधार करता है। साथ ही निर्यात केंद्र स्थापित करता है और बेहतर व्यापार समझौतों के माध्यम से बाजार तक पहुंच बढ़ाता है।
प्रैक्सिस ग्लोबल अलायंस में खाद्य और कृषि के प्रबंध भागीदार मधुर सिंघल ने कहा, नियमों को सुव्यवस्थित करने और इंफ्रास्ट्रक्चर को सपोर्ट करने के साथ ऑस्ट्रेलिया ने निर्यात को काफी बढ़ावा दिया है। भारत इस मॉडल को अपना सकता है, विनियामक बाधाओं को दूर कर सकता है और इंफ्रास्ट्रक्चर सपोर्ट प्रदान कर सकता है।
वैल्यू-एडेड टेक्नोलॉजी में निवेश निर्यात राजस्व में काफी वृद्धि कर सकता है। उदाहरण के लिए, कच्चे दूध को पाउडर, मट्ठा प्रोटीन और पनीर जैसे उत्पादों में बदलने से आकर्षक अंतरराष्ट्रीय बाजार खुलते हैं।
न्यूजीलैंड जैसे देशों ने मिल्क-प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी में निवेश कर डेयरी निर्यात में सफलतापूर्वक विविधता लाए हैं।
इसी तरह, भारत हाई-वैल्यू फसलों जैसे फलों से जूस, मसालों से एसेंशियल ऑयल, डेयरी से पाउडर और चीज प्रोसेस करने पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकता है, जिससे विशिष्ट निर्यात बाजारों को पूरा किया जा सके।
भारत की कृषि प्रतिस्पर्धात्मकता को बेहतर बनाने में निजी कंपनियों की अहम भूमिका है। टेक्नोलॉजी और इनोवेशन में निवेश के माध्यम से, कई नई पहल की जा सकती है, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि किसान उपज को अनुकूलित करें और लागत और कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करें।
रिपोर्ट में बताया गया है, अगले साल की ओर देखते हुए, आशावाद की भावना है।