विजय गर्ग
वर्ष 2022 में 30 नवंबर वह तिथि है, जब कृत्रिम बुद्धिमता के इतिहास में एक नया आयाम इस रूप में दर्ज हो गया कि इस दिन से इंटरनेट एक नए अवतार में सामने आ गया। चैटजीपीटी ओपनएआइ द्वारा लांच एक चैटबाट ने विश्व को वह राह दिखाई कि गूगल द्वारा खोज कर प्रस्तुत की जा रही समग्री से कितनी वह अधिक उपयोगी हो सकती है। शिक्षा, चिकित्सा, भ्रमण, कापीराइटिंग, कानून से लेकर ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बच्चा है, जहां चैटजीपीटी और उसके बाद गूगल के जेमिनी एआई (पूर्व में बार्ड) जैसे तमाम नए मंच ने यह साबित करने का प्रयास किया है कि मशीनें लगभग मानव जितनी समझदार हो सकती हैं। कृत्रिम बुद्धिमता के बल पर वे केवल बराबरी नहीं कर सकती हैं, बल्कि कुछ मामलों में बेहतर भी हो सकती हैं।
इससे पहले कि हम एआइ के दायरे में हिंदी के हस्तक्षेप और अंग्रेजी के वर्चस्व की और से मिलने वाली चुनौतियों का उल्लेख करें, देखना होगा कि इस मामले में हमारी सरकार क्या कर रही है। वह तकनीक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में देश के एक बड़े भूभाग में बोली जाने वाली राजभाषा हिंदी का किस रूप में उपयोग कर रही है। इसका एक उदाहरण भारत सरकार की प्रौद्योगिकी भागीदार राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र की साइट से मिलता है। इसके पहले पेज पर लिखा है, ‘एआइ मशीनें द्वारा मानव संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का अनुकरण है। यह प्रक्रियाओं को स्वचालित करता है और आइटी सिस्टम में संज्ञानात्मक कंप्यूटिंग को लागू करके मानव बुद्धि को अनुकरण करना इसका लक्ष्य है।’
निश्चय ही हिंदी का आज का पाठक इस तरह की कठिन भाषा का पक्षधर नहीं हो सकता है। संभव है कि भाषा की इस दुरूहता के बारे में सचेत करने पर यह विभाग इस दिशा में सुधार के कुछ प्रयास करेगा। एक अन्य उदाहरण दे साल पहले 2022 में राजभाषा पर बनाई गई केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति की संस्तुतियों का लिया जा सकता है। इस समिति ने अक्टूबर 2022 में संस्तुति की थी कि हिंदी भाषी राज्यों में आइआइटी जैसे तकनीकों और गैर-तकनीकी उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा का माध्यम हिंदी और देश के अन्य हिस्सों में स्थानीय भाषा होनी चाहिए। इसके साथ ही, अंग्रेजी का उपयोग वैकल्पिक होना चाहिए। समिति ने यह संस्तुति भी की थी कि हिंदी को संयुक्तराष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में से एक होना चाहिए। समिति के उपाध्यक्ष भर्तृहरि महताब के अनुसार, समिति ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को ध्यान में रखते हुए ये सार सुझाव दिए थे, लेकिन वास्तविकता यह है कि अनेक उच्च शिक्षण संस्थानों में हिंदी का केवल 20-30 प्रतिशत उपयोग किया जा रहा है। ऐसे में सवाल है कि क्या कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) के क्षेत्र में हिंदी अपनी कोई हैसियत बना पाएगी।
इस सवाल का अभी आशाजनक उत्तर देना कठिन हो सकता है, परंतु इसकी तकनीक में वह जवाब छिपा है जो एआइ में हिंदी के बेहतर भविष्य की उम्मीद जगाता है। असल में, एआइ एक तकनीक नैचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (एनएलपी) की तरह इसे भाषा विज्ञान से जोड़ने वाला नय आविष्कार है यह एक ऐसी तकनीक है, जिसकी मदद से हम मनुष्यों को नैचुरल लैंग्वेज का उपयोग करते हुए मशीनों रोबोट्स से संवाद करने में मदद मिलती है। इस तरह का एक उदहरण गूगल बाइस सर्च है, जोकि नैचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग तकनीक पर काम करता है। इसका अभिप्राय यह है कि आप इसे जिस भाषा में संवाद करने के हिसाब से विकसित करेंगे, यह तकनीक इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्रियों में से बेहतर का चुनाव करते हुए उसी भाषा में उत्तर उपलब्ध कराएगे यानी एआइ को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई सवाल या जिज्ञासा किस भाषा में उसके सामने रखी। गई है। वह सवाल के अनुकूल इसकी खेज करती है कि क्या संबंधित भाषा के अलावा अन्य भाषाओं (जैसे कि हिंदी में पूछे गए सवाल के जवाब हिंदी के अलावा अंग्रेजी आदि) में उपलब्ध हैं या नहीं। यदि वे सामग्रियां वहां मौजूद हैं, ती एआइ तुरंत सभी समग्रियों को संयोजित करते हुए हिंदी या अन्य भाषा में समाधान प्रस्तुत कर देती है एआइ ऐसा किस प्रकार कर पाती है, इसका जवाब इसमें निहित है कि एआइ असल में मशीनों के सीखने की प्रक्रिया (मशीन लर्निंग) का एक मुख्य अवयव है।
मशीन लर्निंग की यह प्रक्रिया गूगल सूर्य की तुलना में इसलिए थोड़ी अलग है, क्योंकि इसके तहत कंप्यूटरीकृत साफ्टवेयर स्वयं किए गए कार्यों से मिलने वाले अनुभवों से लगातार सीखते और उसी के अनुसार उसमें सुधार करते जाते हैं। उदाहरण के लिए एक बार जिस भाषा में संवाद किया जा चुका है, उस भाषा में सीखे गए नए शब्दों, उद्धरणों को अगले उत्तरों में सम्मिलित कर लिया जाता है। कह सकते हैं कि एआइ से संबंधित मशीन लर्निंग की प्रक्रिया में कंप्यूटर साफ्टवेयर स्वयं को ही प्रशिक्षित करते रहते हैं। चूंकि पैटजीपीटी और जैमिनी (बार्ड) जैसे कृत्रिम बुद्धिमता के टैल्स में नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग और मशीन लर्निंग, दोनों का ही उपयोग किया जाता है, इसलिए कह सकते हैं कि इसमें अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं, जैसे हिंदी में मिलने वाले उत्तरों में हर दिन सुधार होता जाएगा। इस आधार पर यह कहना समीचीन होगा कि एआइ में हिंदी का भविष्य उज्जवल ही है। इसमें यदि कोई बाधा है तो केवल यह कि तकनीक प्रौद्योगिकी से जुड़े संगठनों और उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई और शोध कार्यों में हिंदी या अन्य स्थानीय भाषाओं के उपयोग को प्राथमिकता नहीं दी जाती है। जिस दिन से वहां ऐसा किया जाने लगेगा, एआइ के माथे पर हिंदी की बिंदी पूरी प्रखरता के साथ चमकने लगेगी।