बाकू जलवायु वार्ता शुरू होने के साथ ही, पूर्वी यूरोप के 10 देशों को बड़े आर्थिक नुकसान की आशंका

इस वर्ष का संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप 29) सोमवार को बाकू, अजरबैजान में शुरू हुआ, जिसका मुख्य फोकस वैश्विक जलवायु कार्रवाई की आधारशिला यानी वित्त पर था।

मेजबान देश अजरबैजान की अर्थव्यवस्था मुख्यतः तेल और प्राकृतिक गैस उत्पादन पर निर्भर है।

कॉप 29 बैठक की सर्वोच्च प्राथमिकता जलवायु वित्त पर नए सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (एनसीक्यूजी) पर सहमति बनाना है, जो जलवायु परिवर्तन से जुड़ी कार्रवाई को वित्तपोषित करने के लिए विश्व का दीर्घकालिक वित्त लक्ष्य है।

हालांकि, क्रिश्चियन एड द्वारा इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम एनालिसिस के अर्थशास्त्रियों के साथ मिलकर एक अध्ययन प्रकाशित किया गया था। इस अध्ययन के निष्कर्षों में क्षेत्र के शीर्ष 10 सबसे अधिक प्रभावित देशों के भविष्य के सकल घरेलू उत्पाद में कमी का अनुमान लगाया गया है।

पहला, यदि विश्व वर्तमान राष्ट्रीय जलवायु प्रतिज्ञाओं को पूरा करता है, जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित एनडीसी (जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक तापमान लगभग 2.8 डिग्री सेल्सियस होने का अनुमान है) के रूप में जाना जाता है। दूसरा परिदृश्य यह है कि यदि वैश्विक तापमान को दो डिग्री तक पहुंचने दिया जाता है।

बेकिंग बाकू: पूर्वी यूरोप पर जलवायु परिवर्तन का आर्थिक प्रभाव नामक रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्तमान एनडीसी क्षेत्र में, अजरबैजान को 2050 तक भविष्य के सकल घरेलू उत्पाद में 8.5 प्रतिशत की भारी कमी का सामना करना पड़ेगा। यह कमी 2070 तक 12.6 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी।

बता दें कि यदि औसत तापमान वृद्धि दो डिग्री तक बढ़ जाता है तो इससे नुकसान कम होगा, फिर भी 2050 और 2070 दोनों वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद में छह प्रतिशत से अधिक की कमी आएगी।

अजरबैजान यूरोप के प्रमुख जीवाश्म ईंधन उत्पादकों में से एक है। इसके बावजूद यह देश दुनिया के उन चंद देशों में शामिल है, जिन्होंने पेरिस समझौते के अनुच्छेद 4.3 का उल्लंघन करते हुए अपने एनडीसी को कमजोर किया है। इसमें कहा गया है कि प्रत्येक एनडीसी पिछले वाले की तुलना में अधिक महत्वाकांक्षी होगा।

पिछले महीने क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर ने अजरबैजान की जलवायु नीतियों को “गंभीर रूप से अपर्याप्त” बताया था।

अध्ययन में कहा गया है, ऐसा प्रतीत होता है कि अजरबैजान ने 2030 के कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को छोड़ दिया है, और जलवायु कार्रवाई पर आगे बढ़ने के बजाय पीछे जा रहा है। इसके नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य कमजोर बने हुए हैं।

 

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