अपने लुक की वजह से उन्हें ज्यादातर अंग्रेज अफसरों या विदेशी कैरेक्टर के रोल मिले। कई लोगों के लिए वह खलनायक के तौर पर सिर्फ अंग्रेज अफसर ही साबित हुए।
हिंदी फिल्मों के अलावा बंगाली, असमी, मलयाली जैसी फिल्मों ने भी टॉम अल्टर को अंग्रेज कैरेक्टर के लिए ही काम दिया। लगभग चार दशक के करियर में 100 से अधिक फिल्में करने वाले टॉम थिएटर के दिग्गजों में गिने जाते थे।
29 सितंबर, 2017 को कैंसर के चलते उनका निधन हो गया। पुण्यतिथि के मौके पर चलिए इस अभिनेता के कुछ अनकहे पहलुओं को याद करें।
टॉम ऑल्टर शक्ल से पूरे अंग्रेज लगते थे। मगर अपने रंग रूप के विपरीत वह हिंदी बोलने के इतने अच्छे थे कि उन्हें भारत का ब्रांड एंबेसडर कहा जाता था। साथ ही उर्दू भाषा भी उनकी पहचान हुआ करती थी।
टॉम साल 1980 से लेकर 1990 के दशक में स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट भी रहे थे। वह पहले जर्नलिस्ट थे, जिन्होंने टीवी पर सचिन तेंदुलकर का इंटरव्यू लिया था, जब वह क्रिकेट में कदम रखने जा रहे थे।
राजेश खन्ना को वो अपना आइडल मानते थे और बताया जाता है कि उन्होंने उनकी फिल्म आराधना देखकर ही एक्टर बनने का फैसला किया था।
टॉम ऑल्टर ने चरस फिल्म से सिनेमा में डेब्यू किया था। उसके बाद उन्होंने कई फिल्में की। जिनमें क्रांति, गांधी, आशिकी, वीर-जारा, शतरंज के खिलाड़ी जैसे कई सुपरहिट फिल्में शामिल हैं। 2008 में टॉम ऑल्टर को हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।