जेठमलानी ने बढ़ी फीस को लेकर कोई पछतावा नहीं किया। इसे क्वालिटी से जोड़ते थे। हेवी फीस को जस्टिफाई करते थे। उनका मानना था कि केस की जटिलता को समझने के लिए और उसके लिए किए गए प्रयासों के मद्देनजर फीस बिलकुल सटीक ली जाती है। तर्क देते कि इससे मुवक्किल निश्चिंत हो जाता है कि उसके केस पर गंभीरता से काम होगा। एक विदेशी अखबार ने जब आशाराम बापू (फीस मामले) को लेकर सवाल किया तब भी बोले- बेशक, स्वभाविक रूप से।
जेठमलानी को स्मगलरों का वकील कहलाए जाने पर भी ऐतराज नहीं था। 70-80 के दशक में कुख्यात स्मगलर हाजी मस्तान के कई केस लड़े।
लड़ाके और जुझारू तो शुरू से ही थे। 17 साल की उम्र में वकील बनने के लिए बार काउंसिल से लड़ाई लड़ी, जीते और वकील बने। वकालत विरासत में मिली। पिता भी चर्चित वकील थे। फिर नानावाटी केस ने सुर्खियों में ला खड़ा कर दिया। 1959 का नानावटी केस। जिसमें अवैध संबंध के चलते नेवी अफसर नानावटी ने पत्नी के प्रेमी की हत्या कर दी थी। नानावटी ने आत्म समर्पण किया फिर तीन साल जेल में गुजारे। जेठमलानी ने उनका केस लड़ा, रिहा कराया। ये हिंदी सिने जगत का दिलचस्प टॉपिक भी बना। 1963 में ये रास्ते हैं प्यार के और 2016 में बनी रुस्तम।
ऐसा नहीं है कि जेठमलानी हर केस जीते लेकिन हारने के बाद भी कोर्ट में दी दलील ने नजीर पेश कर दी। राजनीति में भी दिलचस्पी कम नहीं रही। केस भी कई राजनीतिक दिग्गजों के लड़े। इनमें एलके आडवाणी, अमित शाह और जयललिता का नाम शामिल है। तमिलनाडु की तत्कालीन सीएम रहीं जयललिता को सजा हुई फिर इनकी दलीलों के बल पर बरी भी हुईं। जिससे उच्च-स्तरीय भ्रष्टाचार के मामलों में कानून और राजनीति के जटिल गठजोड़ का देश को पता चला।
ऐसा ही कुछ टू जी स्पेक्ट्रम केस में हुआ। जेठमलानी इस जटिल मामले में कुछ मुख्य आरोपियों का बचाव करने में शामिल रहे, जिनमें राजनेता और कॉर्पोरेट जगत के धुरंधरों का नाम शामिल था। जिसका नतीजा भी कई बहस के बाद सकारात्मक रहा। कई आरोपियों को अंततः बरी कर दिया गया, और इस मामले ने भारत में भ्रष्टाचार और शासन के बारे में व्यापक बहस छेड़ दी।
ऐसे कई मामले रहे जिन्होंने राम जेठमलानी को भीड़ से अलग खड़ा किया। बेबाकी शख्सियत में चार चांद लगाती थी। भला कौन बेटा कहेगा कि मैं और मेरी मां साथ साथ बड़े हुए। दरअसल, राम की मां 14 साल की थीं जब वो पैदा हुए। ऐसा ही कुछ अपनी दो शादियों को लेकर भी कहा। एक पिता के पसंद से दुर्गा से की तो दूसरी अपनी पसंद की रत्ना से।
राजनीति में आए तो नाता हर पार्टी से कभी तीखा तो कभी मीठा बनाकर रखा। राजनीतिक गलियारों में भी खलबली मचा कर रखी। भाजपा सरकार में मंत्री भी बने लेकिन विरोध में भी सुर उठाए।
ऐसे कई वकील हैं जिन्होंने कोर्ट रूम में अपनी दलीलों से जितना लोगों को पस्त किया उतना ही संसद में भी अपनी बात ठसक से रखी। लोकप्रिय भी काफी रहे। लेकिन जेठमलानी तो सफलतम राजनेताओं की फेहरसित में शामिल हो पाए और न ही इतने विद्वान होने के बाद पालखीवाला जैसे संविधानविद् के तौर पर सेवाएं दे पाए। लेकिन ये भी सच है कि लीक से हटकर प्रथाओं को ध्वस्त कर बखूबी खुद को स्थापित किया। जेठमलानी अनूठे और बेमिसाल थे।