लखनऊ। शौर्य और संस्कार की धरती, बुंदेलखंड। यह धरती उत्तर प्रदेश का स्वर्ग बने, यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का संकल्प है। इसे वह कई बार सार्वजनिक रूप से बोल भी चुके हैं। इस संकल्प को पूरा करने के लिए योगी-1.0 से शुरू सिलसिला योगी-2.0 में भी उसी शिद्दत से जारी है। डिफेंस कॉरिडोर, बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे, इस एक्सप्रेसवे के किनारे इंडस्ट्रियल कॉरिडोर, कानपुर और झांसी के बीच नोएडा से भी बड़ा इंडस्ट्रियल हब बनाने, यहां के नामचीन किलों को एडवेंचर टूरिज्म के लिए विकसित करने जैसी योजनाएं इसका प्रमाण हैं।
इंडस्ट्री के अलावा बुंदेलखंड का सबसे बड़ा संकट पानी है। चाहे शुद्ध पेयजल की बात हो या खेतों के सिंचाई। योगी सरकार का इस पर भी समान रूप से फोकस रहा है। अर्जुन सहायक नहर के साथ अन्य छोटी और मझोली परियोजनाओं के पूरा होने से यहां सिंचन क्षेत्र का रकबा बढ़ा है। खेत तालाब योजना से न केवल यहां के जमीन के जल धारण की क्षमता बढ़ी है बल्कि सूखे के समय खेतों की सिंचाई और मवेशियों की प्यास भी बुझ रही है। फिलहाल बुंदेलखंड के लोगों और खेतों की प्यास बुझाने की सबसे बड़ी और महत्वाकांक्षी योजना केन बेतवा लिंक परियोजना है। नदी जोड़ो योजना के तहत आज से करीब दो दशक पहले यह सपना तबके प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने देखा था। योगी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ही मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से जुड़ी इस परियोजना को लेकर गंभीर पहल की। दोनों प्रदेशों और केंद्र में भाजपा की सरकार होने के नाते इन पहलों के नतीजे भी सकारात्मक रहे। तीनों सरकारों में इस बाबत समझौता भी हो चुका है। हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संबंधित विभाग के साथ इसकी समीक्षा के दौरान यह भी निर्देश दिए कि केन बेतवा लिंक परियोजना से हमीरपुर को भी जोड़ा जाय। पहले इससे बांदा, महोबा, ललितपुर और झांसी को ही जोड़ा जाना था।
उल्लेखनीय है कि करीब तीन साल पहले केन-बेतवा परियोजना पर केंद्रीय कैबिनेट की मुहर लगी थी। इस योजना से बुंदेलखंड में आने वाले उत्तर प्रदेश के पांच और मध्यप्रदेश के आठ जिलों की किस्मत बदल जाएगी।
सिंचाई और पेयजल के संकट का हो जाएगा स्थायी समाधान
दशकों से पेयजल और सिंचाई संकट का सामना कर रहे इस क्षेत्र के लिए यह परियोजना किसी वरदान से कम नहीं होगी। अर्से यह क्षेत्र सूखे का शिकार है। इस कारण क्षेत्र में व्यापक गरीबी के कारण अन्य जिलों की तुलना में यहां से पलायन भी बहुत ज्यादा है। अगर यह परियोजना तय समय, आठ साल में पूरी हुई तो इस पूरे क्षेत्र में सिंचाई और पेयजल के संकट का स्थायी समाधान हो जाएगा। परियोजना की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसके जरिये 10.62 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचाई की जद में आएगी। इसके अलावा 62 लाख लोगों को पीने का पानी नसीब होगा। परियोजना के तहत उत्तर प्रदेश में दो बैराज और मध्य प्रदेश की नदियों पर सात बांध बनाए जाएंगे। 103 मेगावाट हाइड्रो पावर और 27 मेगावाट सोलर पावर का उत्पादन होगा।
यूपी के लिए इसलिए है अहम
बुंदेलखंड क्षेत्र में यूपी के पांच जिले बांदा, महोबा, झांसी, हमीरपुर और ललितपुर शामिल हैं। इस परियोजना से यूपी के इन पांच जिलों को करीब 750 मिलियन क्यूसेक मीटर पानी मिलेगा। इन जिलों की 2.51 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि सिंचित होगी। इन जिलों का पेयजल संकट हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। इसके अलावा इस परियोजना के तहत यूपी में दो बैराज बनने हैं। बिजली का लाभ अलग से मिलेगा। केन और बेतवा को जोड़ने के लिए जो 221 मीटर लंबी लिंक चैनल बननी है उसका 21 किलोमीटर हिस्सा उत्तर प्रदेश में पड़ेगा।
यूपी और एमपी को करना होगा पांच फीसदी खर्च
44,605 करोड़ रुपये की इस परियोजना का नब्बे फीसदी खर्च केंद्र सरकार उठाएगी और यूपी को महज पांच फीसदी ही खर्च उठाना होगा। केंद्र का खर्च 39,317 करोड़ रुपये होगा। शेष दस फीसदी राशि में ही उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार को योगदान देना होगा। सरकार ने इस परियोजना को हर हाल में आठ साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा है। (आंकड़े तीन साल पहले के हैं। लिहाजा कुछ वृद्धि भी हो सकती है)
परियोजना की खास बातें
– 44,605 करोड़ रुपये की है परियोजना
– 1062 लाख हेक्टेयर भूमि की होगी सिंचाई
– 62 लाख किसानों को मिलेगा पानी
– 103 मेगावाट जल ऊर्जा और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन भी होगा
– इन जिलों को मिलेगा लाभ : मध्य प्रदेश के पन्ना, टीकमगढ़, छत्तरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी, उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा, झांसी, ललितपुर और हमीरपुर।