प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के सरकार से बड़ा संगठन वाले बयान को लेकर दाखिल जनहित याचिका खारिज कर दी है। मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली एवं न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने कहा कि याचिका में कोई तत्व ही नहीं है। कोर्ट ने कहा कि प्राइवेट कैपिसिटी में पार्टी फोरम में दिए गए बयान का कोई मायने नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यह बयान पार्टी फोरम पर है, संवैधानिक पद पर रहते हुए सरकार के फोरम पर नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि केशव मौर्य डिप्टी सीएम होने के साथ-साथ पार्टी के सदस्य भी हैं। डिप्टी सीएम होने से पार्टी से सम्बन्ध खत्म नहीं हो जाता। इस कारण पार्टी स्तर पर दिए गए बयान को लेकर अखबार में छपी खबरों के आधार पर याचिका दाखिल की गई है। याचिका में कोई बल नहीं है। इस कारण खारिज की जाती है।
याचिका में क्या कहा गया था
याचिका को अधिवक्ता मंजेश कुमार यादव ने दाखिल किया था। उन्होंने याचिका में कहा था कि डिप्टी सीएम ने संगठन को सरकार से बड़ा बताया है। केशव मौर्य का सरकार से बड़ा संगठन कहना उनके पद की गरिमा को कम करता है। सरकार की पारदर्शिता पर संदेह उत्पन्न करता है। यह भी कहा कि भाजपा, राज्यपाल और चुनाव आयोग की ओर से कोई प्रतिक्रिया या खंडन न करना इस मुद्दे को और जटिल बनाता है। याचिका में कहा गया कि उपमुख्यमंत्री बनाए जाने से पहले उन पर सात आपराधिक मामले दर्ज हुए थे। इसलिए ऐसे आपराधिक रिकॉर्ड वाले किसी व्यक्ति को संवैधानिक पद पर नियुक्त करना गलत है।
प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में दिया था बयान
लोकसभा चुनाव में भाजपा के यूपी में खराब प्रदर्शन के बाद हो रही भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने यह बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि संगठन सरकार से बड़ा था, है और रहेगा। लखनऊ में कार्य समिति की बैठक के बाद डिप्टी सीएम ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर भी अपनी बात को दोहराते हुए लिखा था कि संगठन सरकार से बड़ा था, बड़ा है और हमेशा रहेगा। उन्होंने कहा था कि मैं उपमुख्यमंत्री बाद में हूं, पहले कार्यकर्ता हूं।