पालि व्याकरण कार्यशाला आरम्भ हुई

नई दिल्ली : केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी के निर्देशन एवं संरक्षण में इसके अंगीभूत परिसरों में जुलाई के प्रथम पखवाड़े में दीक्षारम्भ कार्यक्रम किया जा रहा है; जिसके अन्तर्गत विविध प्रकार की शैक्षणिक एवं ज्ञानाधारित गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। इसी कड़ी में गोमती नगर स्थित विश्वविद्यालय के लखनऊ परिसर में दीक्षारम्भ-कार्यक्रम के तहत बौद्धदर्शन एवं पालि विद्याशाखा के द्वारा 08 जुलाई, 2024 से 18 जुलाई, 2024 तक दस दिवसीय ‘व्यावहारिक पालि व्याकरण शिक्षण कार्यशाला’ का आयोजन किया जा रहा है। दिनांक 08 जुलाई, 2024 को पूर्वाह्ण 10:30 बजे उक्त कार्यशाला का उद्घाटन सत्र आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता विभागाध्यक्ष प्रो. राम नन्दन सिंह ने की। प्रो. सिंह ने अपने उद्बोधन में बताया कि ‘दुनियां के विभिन्न देशों में पालि भाषा के प्रतिष्ठित विभाग हैं, जिनमें पालि विद्या के विषय में बहुत ही गम्भीरतापूर्वक अध्यापन तथा अनुसन्धान हो रहे हैं। यूरोप में यह विषय एक लोकप्रिय विषय बन चुका है। दक्षिण-एशियाई देशों में तो पालि एक प्रकार से धार्मिक एवं राष्ट्रीय भाषा के तौर पर सम्मानित स्थान प्राप्त है। श्रीलंका, म्यामां, थाईलैण्ड, कम्बोडिया, लाओस इत्यादि थेरवादी-बौद्ध-परम्परा वाले देशों में पालि को बहुत अधिक सम्मान प्राप्त है। भारत में भी धीरे-धीरे यह भाषा लोकप्रिय होती जा रही है। भारत सरकार के प्रयासों से देश में पालि शिक्षा के लिए विविध विश्वविद्यालयों एवं स्कूली शिक्षा में प्रयास चल रहे हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के तहत पालि को बहुत महत्त्व दिया गया है।’

विशिष्टातिथि एवं बौद्धदर्शन एवं पालि विद्याशाखा के संयोजक प्रो. गुरुचरण सिंह नेगी ने इस अवसर पर नवप्रवेशी विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय परिसर और विभाग का परिचय देते हुए बताया कि केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के लखनऊ परिसर में बौद्धदर्शन से शास्त्री एवं आचार्य करने की सुविधा वर्ष 1987 से उपलब्ध है। बौद्धदर्शन का अध्ययन-अध्यापन संस्कृत माध्यम से होता है। वर्ष 2022 से विभाग का नामान्तरण ‘बौद्धदर्शन एवं पालि-विद्याशाखा’ के रूप में हुआ और पालि से एम.ए. का पाठ्यक्रम संचालित हो रहा है। प्रो. नेगी ने यह भी कहा कि बुद्ध की शिक्षाओं का प्राचीन संकलन त्रिपिटक के नाम से जाना जाता है। त्रिपिटक संस्कृत के साथ-साथ पालिभाषा में निबद्ध है। आज संस्कृत त्रिपिटक मूलरूप में उपलब्ध नहीं है। पालि-त्रिपिटक सम्पूर्ण रूप से उपलब्ध होता है। इस लिए बुद्धवचनों को मूलरूप में जानने-समझने के लिए पालिभाषा का ज्ञान होना आवश्यक है। प्रो. नेगी ने यह भी कहा कि ‘परिसर निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा के सत्प्रयत्नों के कारण परिसर में पालि का उन्नयन वर्ष हो रहा है। परिसर में एम.ए. (पालि) की कक्षा में बड़ी संख्या में छात्र प्रवेश ले रहे हैं। इस पाठ्यक्रम में न केवल लखनऊ, अपितु दूरदराज के क्षेत्रों से अध्येता प्रवेश ले रहे हैं। दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार तथा महाराष्ट्र के अध्येता भी इस पाठ्यक्रम में प्रवेश ले रहे हैं। ऐसे ही अन्तर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों को भी इस पाठ्यक्रम में प्रवेश दिलाने के लिए विश्वविद्यालय के स्तर पर प्रयास चल रहे हैं।’

परिसर निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा ने बताया कि ‘पालि का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। आने वाले दिनों में परिसर में स्थायी आदर्श पालि शोध संस्थान की स्थापना प्रस्तावित है। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली अपने अंगीभूत 13 परिसरों में एक-एक विशिष्ट संस्थान या केन्द्र की स्थापना कर रहा है। विश्वविद्यालय द्वारा पालि के विकास हेतु लखनऊ परिसर को आदर्श पालि शोध संस्थान आरम्भ करने हेतु चयनित किया है। इसी प्रकार देश-विदेश के कामकाजी लोगों, गृहिणियों, किसान भाइयों, कर्मचारी-अधिकारी वर्ग तथा जिज्ञासुओं की सुविधा के लिए ओडीएल के माध्यम से बी.ए. तथा एम.ए. के स्तर पर पालि के पाठ्यक्रम आरम्भ किये जायेंगे। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी के प्रयासों से भारत सरकार के शिक्षा मन्त्रालय की विविध योजनाओं में पालि के लिए बजट निर्धारित किया गया है तथा अब संस्थागत स्तर पर पालि शिक्षक मानदेय, छात्रवृत्ति, सेमीनार, संगोष्ठी, प्रकाशन इत्यादि हेतु विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर आवेदन किया जा सकता है।’

इस कार्यशाला के विषय में बोलते हुए कार्यशाला संयोजक डॉ. प्रफुल्ल गड़पाल ने बताया कि ‘प्रचलित कार्यशाला के माध्यम से एम.ए. (पालि) में प्रविष्ट विद्यार्थियों को व्यावहारिक पालि व्याकरण सिखाया जायेगा, क्योंकि किसी भी भाषा को सीखने के लिए व्याकरण का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। पालि भाषा को सीखने के लिए पालि-व्याकरण एक कुंजी की तरह है। प्राचीन भारत की जनभाषा पालि को व्यावहारिक पालि व्याकरण के माध्यम से आसानी से सीखा जा सकता है। पालि के व्याकरण से परिचित होकर अध्येता पालि बौद्ध ग्रन्थों को पढ़ने और समझने में समर्थ हो सकेंगे।’

बौद्ध दर्शन एवं पालि विद्याशाखा की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कृष्णा कुमारी, पालि अध्ययन केन्द्र के विकास अधिकारी डॉ. जयवन्त खण्डारे तथा पालि अध्ययन केन्द्र में रिसर्च एसोसिएट डॉ. प्रियंका त्रिपाठी ने भी अपने अमूल्य विचार प्रस्तुत किये।

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