सऊदी अरब मध्य एशिया में लंबे समय से अमेरिका का एक प्रमुख सहयोगी रहा है। इस सहयोग का बड़ा कारण सुरक्षा संबंधी चिंताएं और तेल है, लेकिन एक तथ्य यह भी है कि उनके कूटनीतिक रिश्ते इतने सहज-सरल नहीं रहे हैं। दोनों देशों ने 1940 में अपने कूटनीतिक रिश्ते कायम किए थे। यह द्वितीय विश्व युद्ध का शुरुआती दौर था। 14 फरवरी 1945 को अमेरिका और सऊदी अरब ने अपने सहयोग को एक समझौते के जरिये नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। तब सऊदी अरब के किंग अब्देल अजीज बिन सऊद और अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी. रूजवेल्ट के बीच स्वेज नहर में क्रूजर यूएसएस क्विंसी के बोर्ड पर ऐतिहासिक मुलाकात हुई थी।
अमेरिका ने दी सुरक्षा की गारंटी
उस दौरान हुए समझौते के तहत अमेरिका ने सऊदी किंगडम को सुरक्षा की गारंटी दी और इसके बदले में अमेरिका को सऊदी अरब में तेल भंडारों तक विशेष पहुंच हासिल हुई। इन विशाल तेल भंडारों की खोज पिछली सदी के तीसरे दशक में हुई थी। तभी से अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्ते स्थिर तरीके से आगे बढ़ते रहे। जब अगस्त 1990 में इराकी शासक सद्दाम हुसैन ने कुवैत पर हमला किया तब रियाद ने लाखों अमेरिकी सैनिकों को सऊदी अरब में तैनात होने की इजाजत दी।
सद्दाम को सत्ता से हटाने के लिए लड़ा युद्ध
अमेरिका के नेतृत्व वाली गठबंधन सेना ने सद्दाम को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए 1991 में खाड़ी युद्ध शुरू किया तो सऊदी अरब ही साझा सेना का सैन्य बेस था। इराक युद्ध के बाद भी गठबंधन सेना ने सऊदी अरब में लड़ाकू विमानों की तैनाती जारी रखी। यह सब दक्षिणी इराक में नो फ्लाई जोन बनाए रखने के लिए किया गया। इससे सऊदी अरब के कट्टरपंथी तत्व अमेरिका से नाराज हुए। इसका नतीजा यह हुआ कि इन तत्वों ने नौवें दशक के मध्य में सऊदी अरब की धरती पर दो अमेरिका विरोधी हमले किए।
सऊदी पर चोरी-छिपे पैसे उपलब्ध कराने के आरोप
11 सितंबर 2001 की आतंकी घटना ने अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्तों को तगड़ा झटका दिया। इस हमले में 19 विमान अपहर्ता शामिल थे। इनमें से 15 सऊदी अरब के नागरिक थे। सऊदी अरब ने इन हमलों की निंदा की, लेकिन उस पर यह आरोप भी लगे कि वह इस्लामिक चरमपंथी तत्वों को चोरी-छिपे पैसे उपलब्ध करा रहा है। 2001 के अंतिम दिनों में रियाद ने अफगानिस्तान के खिलाफ अमेरिकी हमलों में शामिल होने से भी इन्कार कर दिया। इसके बाद उसने 2003 के इराक युद्ध में भी भाग नहीं लिया। हालांकि इसके बावजूद अमेरिका ने एक बार फिर सद्दाम के खिलाफ हवाई हमलों के लिए सऊदी अरब की धरती का इस्तेमाल किया। इराक युद्ध के बाद अमेरिका ने ज्यादातर अपने सैनिकों को सऊदी अरब से निकाल कर कतर में तैनात कर दिया। कतर ही खाड़ी में अमेरिका के एयर ऑपरेशन का मुख्यालय है। इस फैसले के बावजूद का सहयोग कायम रहा।
असद के खिलाफ सीरिया में विद्रोह का भी समर्थन
रियाद ने राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ सीरिया में विद्रोह का भी समर्थन किया और उस समय अपनी नाराजगी भी नहीं छिपाई जब सितंबर 2013 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा बशर की सत्ता के खिलाफ हवाई हमले के अपने संकल्प से पीछे हट गए। उसी साल अक्टूबर में सऊदी अरब ने सीरियाई संकट को लेकर अमेरिका और कुछ अन्य देशों के रुख के विरोध में संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में अस्थाई सदस्यता स्वीकार करने से भी मना कर दिया। 2015 में ईरान के साथ अमेरिका ने जो नाभिकीय समझौता किया वह भी सऊदी अरब को रास नहीं आया। यह ओबामा प्रशासन में सऊदी अरब के घटते विश्वास का एक और प्रमाण था।
ईरान को लेकर भी बदला है ट्रंप का रुख
ओबामा प्रशासन के साथ रिश्तों में खटास के वातावरण को बदलने के लिए ही सऊदी अरब के नेताओं ने अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत का स्वागत किया। मई 2017 में ट्रंप ने जब सऊदी अरब का दौरा किया तो वहां के सुन्नी शासकों ने उनका जोरदार स्वागत किया। ट्रंप का रुख ईरान को लेकर भी बदला है और यह सऊदी अरब के अनुकूल है। तेहरान और इस्लामिक कट्टरपंथियों पर अंकुश लगाने के लिए अमेरिका और सऊदी अरब ने एक बड़ा सैन्य समझौता भी हाल में किया है। इस सबके बीच सऊदी पत्रकार जमाल खशोगी की गुमशुदगी के मामले ने अमेरिका और सऊदी अरब के बीच तनाव को बहुत बढ़ा दिया है। हालांकि सऊदी अरब ने माना है खाशोगी की हत्या उनके दूतावास में ही हुई है।
पांच सऊदी अधिकारी बर्खास्त
इस बीच, सऊदी किंग सलमान ने इस घटना के सिलसिले में पांच अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया है। इनमें शाही दरबार के सलाहकार और क्राउन प्रिंस के बेहद विश्वस्त माने जाने वाले सौद अल कहतनी और उप-खुफिया प्रमुख अहमद असीरी शामिल हैं। इसके अलावा उन्होंने खुफिया एजेंसी के पुनर्गठन के लिए प्रिंस मोहम्मद की अध्यक्षता में एक मंत्रिमंडलीय समिति भी गठित की है। इससे साफ है कि क्राउन प्रिंस के पास व्यापक अधिकार बने रहेंगे।
सहयोग के बाद भी इसको स्वीकार नहीं किया जा सकता
ऐरीजोना में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, ‘सऊदी अरब अच्छा सहयोगी रहा है, लेकिन जो कुछ हुआ है वह अस्वीकार्य है।’ उन्होंने कहा कि इस संबंध में वह क्राउन प्रिंस से बात करेंगे। साथ ही उन्होंने ईरान से निपटने में और सऊदी अरब को बड़ी मात्र में हथियार बिक्री से पैदा होने वाले रोजगार को लेकर उसकी महत्ता का उल्लेख भी किया। हालांकि सऊदी घोषणा से पहले उन्होंने कहा था कि अगर खशोगी की हत्या में सऊदी अरब का हाथ हुआ तो उस पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।