चेरनोबिल परमाणु दुर्घटना एक ऐसा हादसा है जो भयावह होने के साथ पूरी दुनिया के लिए सबक भी है। 1977 में निर्मित चेरनोबिल परमाणु ऊर्जा संयंत्र का उपयोग तत्कालीन सोवियत संघ या आधुनिक पिपरियात, यूक्रेन में बिजली बनाने के लिए किया गया था। 1986 में 25- 26 अप्रैल की मध्य रात्रि इस परमाणु ऊर्जा संयंत्र में विस्फोट से बेलारूस, यूक्रेन और रूसी संघ के बड़े क्षेत्रों में रेडियोधर्मी बादल फैल गया। आपदा की गंभीरता का पता इस बात से लगाया जा सकता है कि तीन यूरोपीय देशों में लगभग 8.4 मिलियन लोग विकिरण की चपेट में आए थे।
हादसे के बाद पर्यावरण को विकिरण से मुक्त करने और हादसे को बिगड़ने से रोकने के लिए कुल 1.8 करोड़ सोवियत रूबल (वर्तमान 5 खरब भारतीय रुपए)। खर्च किए गए। यह लागत और हताहत, दोनों के मामले में आजतक का सबसे भयानक परमाणु दुर्घटना है। यह उन दो दुर्घटनाओं में से एक है जिन्हें अंतरराष्ट्रीय परमाणु घटना स्केल के सातवें स्थान पर पद दिया गया है, जो सबसे ज्यादा है। दूसरे स्थान पर जापान का फूकूशीमा डाईची परमाणु दुर्घटना है।
चेरनोबिल परमाणु दुर्घटना आपदा में लगभग 235 बिलियन डॉलर की क्षति का अनुमान लगाया गया है। लगभग 50 से 185 मिलियन क्यूरी रेडियोन्यूक्लाइड (रासायनिक तत्वों के रेडियोधर्मी रूप) वायुमंडल में छोड़े गए, जो हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों की तुलना में कई गुना अधिक रेडियोधर्मिता है। वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि संयंत्र के आसपास का क्षेत्र 20,000 वर्षों तक रहने योग्य नहीं होगा।
8 दिसंबर, 2016 को संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव पास कर 26 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय चेरनोबिल आपदा स्मरण दिवस के रूप में घोषित किया। महासभा ने अपने प्रस्ताव में माना कि 1986 की आपदा के तीन दशकों के बाद भी दीर्घकालिक परिणाम गंभीर रूप से बरकरार रहे।