लखनऊ, 15 अक्टूबर। हर शहर एक सपना होता है। सपना समृद्धि और विकास का। जीवन की बेहतरी की संभावनाओं का। ये शहर आर्थिक गतिविधियों के केंद्र होते हैं। इनमें बेहतर रोजगार और आय के अवसर होते हैं। पर, संतृप्त होने के साथ इनकी बुनियादी सुविधाएं चरमराने लगती हैं। मौजूदा समय में हुक्मरानों के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती भी है। यह चुनौती बढ़ती ही जानी है। विश्व आर्थिक मंच की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक देश के करीब 40 फीसद लोग शहरो में निवास करेंगे। तब करीब 5000 ऐसे कस्बे होंगे, जिनकी आबादी एक लाख से अधिक होगी। 10 हजार से अधिक आबादी वाले कस्बों की संख्या 50 हजार से अधिक होगी। लोगों के सपनों को परवान चढ़ाने के लिए नए शहर नियोजित तरीके से बसें ताकि पहले के शहरों की बुनियादी सुविधाओं पर और जोर न पड़े।
इस बाबत योगी आदित्यनाथ की सरकार ने गंभीर पहल की है। इस पहल के अनुसार सरकार अपने पांच एक्सप्रेसवे के किनारों पर 32 ओद्योगिक शहर बसाने जा रही है। इसमें पूर्वांचल, बुंदेलखंड और गंगा एक्सप्रेसवे के किनारे बसे 23 जिलों के 84 गांवों को चिन्हित कर औद्योगिक शहर के लिए अधिसूचित भी कर दिया गया है। अब उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) इनके अधिग्रहण का काम करेगा। हर शहर के लिए शुरू के चरण के लिए 100 से 600 एकड़ तक जमीन का अधिग्रहण होना है। अधिग्रहण के बाद यूपीडा यहां बुनियादी सुविधाओं का विकास कर इनको निवेशकों को उपलब्ध कराएगा।
इन शहरों में वेयर हाउस, लॉजिस्टिक, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, होजरी, फूड प्रोसेसिंग, दुग्ध प्रसंस्करण, दवा, मशीनरी से संबंधित इकाइयों में निवेश आकर्षित कराने का फोकस होगा। यह भी ख्याल रखा जाएगा कि जिस क्षेत्र में जिस उद्योग की परंपरा हो उससे संबंधित उद्योग भी लगें।
इसके अलावा भी करीब दर्जन भर शहरों से लगे अलग टाउनशिप का भी विकास योगी सरकार कर रही है। इसका दोहरा लाभ होगा। संतृप्त हो चुके शहरों की बुनियादी सुविधाओं पर अब और अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। नए शहर या टाउनशिप पूरी तरह से नियोजित होंगे। इनमें रहने वालों का जीवन स्तर बेहतर होगा। ये उनके सपनों के परवान चढ़ाने में मददगार बनेगा।