अपने सवा दो घंटे वाले जवाब में कल (अविश्वास प्रस्ताव : लोकसभा 10 अगस्त 2023) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई तथ्य भुला दिए। नेहरू वंश द्वारा पूर्वोत्तर में चार दशकों तक की मचायी विनाशलीला का सम्यक विवरण नहीं दिया। शायद प्रधानमंत्री की रिसर्च टीम में अनभिज्ञ जन थे, अथवा कांग्रेस-युगीन नौकरशाह। उन्हें इतिहास का एहसास कहां ?
नरेंद्र मोदी ने कच्छ्तिवु द्वीप का जिक्र तो किया। मगर यह विस्तार से नहीं बताया कि इसे इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को उपहार में भेंट किया था। पिछले दिनों ही तमिलनाडु के द्रमुक मुख्यमंत्री एम.के. स्तालिन ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया था कि कच्छ्तिवु को वापस भारत ले लें और तमिलनाडू में मिला दें। तब (20 जुलाई 2023) श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे आर्थिक मदद हेतु दिल्ली आए थे। तुर्रा यह कि इन्हीं स्तालिन की द्रमुक पार्टी ने अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन किया। उनके सांसद कल वाकआउट में सोनिया-कांग्रेस के साथ थे। श्रीलंका और रामेश्वरम (भारत) के बीच कच्छ्तिवु स्थित है। यह दोनों देशों के मछुआरों द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है। भारत ने 1974 में इस द्वीप के स्वामित्व को श्रीलंका को सौंप दिया था। यह द्वीप रामनाड साम्राज्य का हिस्सा था। बाद में भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश राज के दौरान यह मद्रास प्रेसीडेंसी का भाग बन गया था।
नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया : “नार्थईस्ट हमारे जिगर का टुकड़ा है।” सदन में उन्होंने राष्ट्र को याद भी दिलाया कि किस भांति इंदिरा गांधी ने मिजोरम के हिंदुस्तानी नागरिकों पर वायुसेना द्वारा 5 मार्च 1966 को बमबारी करवाई थी। कांग्रेस शासन द्वारा 1947 से की गई लंबी उपेक्षा के कारण बागी मिजो आजादी मांग रहे थे। मोदी ने सवाल किया : “क्या मिजोरम के लोग देश के नागरिक नहीं थे ? आज भी मिजोरम में 5 मार्च को शोक मनाया जाता है। कोई भी उस दर्द को भूल नहीं पा रहा है।” फिर मोदी ने जवाहरलाल नेहरू के उस बदनुमा भाषण का उल्लेख किया जब असम में अक्तूबर 1962 में चीन से हारकर भागती भारतीय सेना पर नेहरू ने कहा : “मेरा हृदय असम की जनता के साथ है।” मानों कम्युनिस्ट चीन ने असम पर फतह कर उसे अपना प्रांत बना लिया हो।
नरेंद्र मोदी ने सांसदों को यह नहीं बताया कि किस प्रकार नेहरू ने नागा विरोधियों को भारतीय सेना द्वारा भून डाला था। नतीजन बागी नेता अंगामी जापू फिजो ने ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की मदद से लंदन में रहते इस संवेदनशील पूर्वोत्तर प्रदेश में भारत को अपार हानि पहुंचाई थी। बड़ी संख्या में भारतीय फौज नागालैंड में अरसे तक तैनात रही। जब नेहरू कोहिमा गए थे (30 मार्च 1953), प्रधानमंत्री बनने के छः साल बाद, तो जनसभा में नागा नेताओं को आने नहीं दिया गया।
मोदी ने सदन को यह नहीं बताया कि नेहरू सरकार द्वारा मणिपुर की निर्वाचित विधानसभा 16 जुलाई 1959 को भंग कर लोकतंत्र का वध करने के खिलाफ सर्वप्रथम डॉ. राममनोहर लोहिया की क्या संघर्ष रहा ? यह सोशलिस्ट ही मणिपुर में पहले सत्याग्रही थे। तब लोहिया ने लिखा था : “देश की पूर्वी सीमा पर लगभग पचास हजार वर्ग मील का यह क्षेत्र बाकी हिंदुस्तान के लोगों के लिए वर्जित क्षेत्र है, जिसमें कोई भी भारतीय नागरिक खास परमिट लिए बिना प्रवेश नहीं कर सकता, जब कि संविधान पूरे देश में लागू होता है।”
सुप्रीम कोर्ट ने तब डॉ. लोहिया की याचिका पर फैसला दिया था : “जिला मजिस्ट्रेट, मणिपुर, द्वारा जारी आदेश को अब तक बाध्यकारी नहीं माना जा सकता है। उन पर प्रतिबंध अवैध है।” तब लोहिया और सांसद रिशांग किशिंग कैद हुये थे। डॉ. लोहिया के सत्याग्रह का परिणाम रहा कि मणिपुर विधान सभा का शीघ्र निर्वाचन हुआ। लोकतांत्रिक प्रणाली फिर स्थापित की गई। जन संघर्ष बड़ा कामयाब रहा।
नरेंद्र मोदी ने सदन को यह नहीं बताया कि उनके गृहराज्य गुजरात के कच्छ जनपद के सीमावर्ती गांव छादबेट और कंजरकोट को 1968 में इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को भेंट दिया था। तब विशाल सत्याग्रह हुआ था। मैं अहमदाबाद से “टाइम्स ऑफ इंडिया” के लिए रिपोर्टिंग हेतु भुज नगर गया था। सत्याग्रह में कैद होने वालों में अटल बिहारी वाजपेई, जॉर्ज फर्नांडीस, राज नारायण, मृणाल गोरे, बैरिस्टर नाथ, मधु लिमये आदि थे।
लोकसभा को मोदी ने यह नहीं बताया कि पूर्वी भारत के पश्चिम बंगाल के भारतीय द्वीप बेरुबारी को इंदिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान को बख्श दिया था। नतीजन रातों-रात वहां के भारतवासी हिंदू सब इस्लामी गणराज्य के बाशिंदे बना दिये गये थे। यह सब राहुल गांधी नहीं जानते हैं। उन्हें 19 मार्च 1970 के पहले हुई घटनाओं की जानकारी कतई नहीं है, क्योंकि वे तब पैदा ही नहीं हुए थे। अतः इस अधेड़ कांग्रेसी की अनभिज्ञता क्षम्य है। मगर मोदी को तो पूरी बात कहनी चाहिए थी। उन्होंने लोहियावादियों का विशेष उल्लेख किया जब मुलायम सिंह यादव की सांसद पुत्रवधू डिंपल भी राहुल के साथ वाकआउट कर गईं थीं। कई पुराने सोशलिस्टों को याद है कि कैसे लोहिया और राहुल गांधी की फोटो एक साथ अखिलेश यादव ने पोस्टर में छपवाकर यूपी विधानसभा के चुनाव प्रचार में वोट मांगा था। लोहिया तब राहुल के समकक्षी बन गए थे, समाजवादी पार्टी की नजर में।
मोदी तो पुराने चावल हैं। सालों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता के नाते उन्हें ये सारी घटनायें लोकसभा को बतानी चाहिए थी। वे जानते हैं भली-भांति कि इतालवी सोनिया गांधी और यूरेशियन राहुल गांधी भारतीयता से अनजान हैं, अपरिचित भी। इसका प्रमाण हैं चौधरी चरण सिंह की गवाही। इस छठे प्रधानमंत्री ने इन्दिरा गांधी के बारे में कहा था : “मैं राजनीति छोड़ दूंगा जिस दिन इंदिरा गांधी जौ और बाजरे में फर्क बता देंगी।” अपनी सास से बहु सोनिया और दादी से पोता राहुल अधिक ज्ञानी नहीं हो सकते हैं।