लखनऊ। विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान शुक्रवार को नेता विरोधी दल अखिलेश यादव के एक घण्टे तक बोलने के बाद नेता सदन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भाषण शुरू हुआ। मुख्यमंत्री ने दुष्यन्त कुमार की कविता…तुम्हरे पांव के नीचे जमीन नहीं…कह कर अखिलेश यादव पर हमला बोला। मुख्यमंत्री ने विपक्ष के आरोपों का जवाब दिया तो अपनी सरकार की उपलब्धियां भी गिनाईं।
योगी ने कहा कि एक घंटे के भाषण में अखिलेश को केवल गोरखपुर का जलजमाव याद आया। जो लोग चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुए, वह गांव, गरीब, शोषित वंचित की पीड़ा क्या समझ पाएंगे। सपा चौधरी चरण सिंह की थोड़ी बात भी ध्यान रखी होती तो इनकी सरकार में सबसे अधिक किसानों ने आत्महत्या नहीं की होती।
नेता सदन ने कहा कि जिस किसान की बात आप (अखिलेश) कर रहे हैं, वह सांड़ भी उसी का हिस्सा है। आपके जमाने में सांड़ कत्ल खाने में जाते थे, हमारी सरकार में गोधन के रूप में हैं। योगी ने यादव परिवार में फूट पर भी चुटकी ली। उन्होंने कहा कि नेता विरोधी दल जो सूची लेकर आये हैं, उसमें कुछ गड़बड़ है। चाचा शिवपाल ने सूची बदल दी होगी। वैसे भी जब परिवार में सत्ता के लिए संघर्ष होता है तो यह सब होता ही है।
इसके आगे मुख्यमंत्री ने कहा कि हम सभी विषयों पर जवाब देंगे। इसके बाद वह प्रदेश में बाढ़ और किसानों की समस्याओं पर बोलते हुए सरकार की उपलब्धियां गिनानी शुरू कीं। उन्होंने कहा कि 2017 से पहले बाढ़ प्रभावितों को केवल ब्रेड बांटा जाता था। हमारी सरकार आई तब एक किट तैयार की गई। इसके साथ ही महिलाओं के लिए अलग से डिग्निटी किट दी जाने लगी। आज अस्पतालों में लोग इसलिए आते हैं क्योंकि वहां डॉक्टर भी उपलब्ध हैं और दवा भी है। आपके लिए वोट बैंक हो सकता है, जाति हो सकती है लेकिन मेरे लिए पूरा प्रदेश परिवार है। इसीलिए जनता ने आपको 2014, 2017, 2019 और 2022 में आपका साथ नहीं दिया। 2024 में आपका खाता भी नहीं खुलेगा। शिवपाल के लिए कहा कि आपका यह कोई भला नहीं करने वाले हैं। इसलिए अपना रास्ता खोज लीजिये।
पिछले एक घंटे से मैं नेता विरोधी दल के विचारों को सुन रहा था और एक घंटे के भाषण में बाढ़ और सूखा से संबंधित मुद्दों पर उन्हें सिर्फ गोरखपुर का जल जमाव याद आया और बाकी कुछ भी नहीं।
नेता विरोधी दल के वक्तव्य को देखकर यही लगा कि 2014, 2017, 2019 और 2022 का जो जनादेश है वो जनता ने ऐसे ही नहीं दिया। दुष्यंत कुमार ने इस पर बहुत अच्छी बात कही है कि तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीं नहीं और कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यकीं नहीं। उन्हें जमीनी हकीकत की कोई जानकारी नहीं है।
तुलसीदास जी ने ये बात कही भी है कि समरथ को नहीं कोई दोष गोसाईं…ऐसे ही लोगों पर बातें अक्षरशः ठीक बैठती हैं, क्योंकि जो लोग जन्म से चांदी के चम्मच से खाने के आदी हैं वो गरीब-किसान-दलित की समस्या और उसकी पीड़ा को क्या समझेंगे। उन्होंने अति पिछड़ों और पिछड़ों के साथ क्या व्यवहार किया था, ये पूरा देश जानता है।
महान किसान नेता और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कहा था कि देश की प्रगति का मार्ग इस देश के गांव, गलियों, खेत और खलिहानों से होकर जाता है। चौधरी चरण सिंह की बातों को वास्तव में समाजवादी पार्टी ने अपने कालखंड में थोड़ा भी ध्यान में रखा होता तो उत्तर प्रदेश के इतिहास में सर्वाधिक किसानों ने उनके कालखंड में आत्महत्या नहीं की होती।
मुझे चौधरी चरण सिंह की बातों के साथ ही महान साहित्यकार राम कुमार वर्मा जी की पंक्तियां याद आती हैं जिन्हें ध्यान में रखकर डबल इंजन की सरकार काम कर रही है। यह देश के अन्नदाता किसानों के लिए समर्पित पंक्तियां थीं कि हे ग्रामदेवता नमस्कार, सोने चांदी से नहीं किंतु तुमने मिट्टी से किया प्यार, हे ग्राम देवता नमस्कार। सोना-चांदी से प्यार करने वाले लोग अन्नदाता किसान के महत्व को नहीं समझेंगे। उसकी पीड़ा को भी नहीं समझ पाएंगे।
अगर भारत की खेती की बात होती है तो नेता विरोधी दल, उससे बाड़ी शब्द भी जुड़ता है। पशुपालन भी उसका पार्ट है। और जिस सांड़ की आप बात कर रहे हैं न वो भी उसी का हिस्सा है। आपके समय में वो बूचड़ खाने के हवाले होता था, हमारे समय में यही पशु धन का पार्ट बना हुआ है।
लगता है पेपर की कटिंग पर होमवर्क करते समय शिवपाल जी ने कुछ पुरानी कटिंग भी बीच में रखवा दी थीं। क्योंकि इतिहास गवाह है कि जब परिवार में सत्ता का संघर्ष बढ़ता है तो कुछ न कुछ चीजें तो सामने आएंगी। शिवपाल जी ने इतना पापड़ बेला है तो कुछ तो सामने आएगा। शिवपाल जी के प्रति हमारी सहानुभूति है। आपके साथ अन्याय हुआ है। आपके साथ ये लोग न्याय करेंगे भी नहीं।
यूपी में अमूमन 15 से 20 जून तक मानसून प्रवेश कर जाता था। इस वर्ष प्रारंभिक बारिश को छोड़ दें तो बारिश अनुकूल और अच्छी नहीं कही जा सकती है। हमने पहले ही बैठक करके अपनी रणनीति बनाई है। हिमालयी नदियों में बाढ़ की स्थिति पैदा हुई, इससे काफी फसलों को नुकसान पहुंचा है। उसके आंकलन के आदेश भी दिये गये हैं। उसपर कार्रवाई आगे बढ़ रही है।
इसके बावजूद यूपी की स्थिति देश के अन्य राज्यों से काफी अच्छी है। यूपी देश का और दुनिया का अकेला ऐसा भूभाग है जहां 86 प्रतिशत भूमि, नगरों, सरकारी और निजी नलकूपों से सिंचित है। कृषि बोआई का सामान्य प्रतिशत 88 प्रतिशत फसलों की बोआई हो गई है। धान की नर्सरी भी लगभग 100 फीसदी लग चुकी है, कम बारिश के कारण इसमें नुकसान हुआ होगा, मगर सरकार की कार्रवाई इसपर आगे बढ़ रही है।
सिंचाई की अतिरिक्त सुविधा और अतिरिक्त विकल्प होने का परिणाम ये है कि देश के कुल कृषि भूमि का 11 प्रतिशत यूपी के पास है। आबादी का 16 फीसदी यूपी में निवास करती है। मगर खाद्यान का कुल उत्पादन 20 अन्न उत्पादन यहां का किसान करता है। ये दिखाता है कि प्रदेश का किसान अपने परिश्रम और पुरुषार्थ से उत्पादन को आगे बढ़ाने में कोताही नहीं करता। सरकार किसानों को अधिक से अधिक सुविधा देने का प्रयास करती है।
बाढ़ और सूखा से आपदा की चपेट में आए 4500 किसानों को पहले चरण में अबतक मुआवजा देने का कार्य किया है। 2017 में सरकार ने 61320 किसानों को लगभग 60 करोड़ का मुआवजा उपलब्ध कराया था। इसी प्रकार 2018-19 में भी 384113 किसानों को 212 करोड़ का मुआवजा दिया गया, जिसमें से ज्यादातर सूखे से पीड़ित थे। 2019-20 में भी 64 करोड़ 32 लाख का मुआवजा अन्नदाता को प्रदान किया गया। 2020-21 में 120 करोड़ का मुआवजा 362600 से अधिक किसानों को प्रदान किया गया। 2021-22 में 475 करोड़ रुपए 1394900 से अधिक किसानों को कंपनसेशन दिया। 2022-23 में प्रदेश के 427 करोड़ रुपए 1214000 किसानों को मुआवजा दिया गया। अबतक 8400 से अधिक किसानों को प्रदेश सरकार बाढ़ के कारण क्षति का मुआवजा दे चुकी है।
प्रदेश सरकार ने बाढ़ और सूखा के अलावा अन्य अनेक कदम उठाए हैं। कैसे इनसे बचाव किया जा सकता है। इस बार पश्चिमी यूपी में बाढ़ आई मगर 40 से ज्यादा जनपदों में सूखा देखने को मिला। बहुत सी जगह सिंचाई और पॉवर कॉर्पोरेशन ने अपने स्तर पर कार्य किये। नोडल अधिकारियों और प्रभारी मंत्रियों ने जनपदों के दौरे किये। प्रदेश सरकार ने बाढ़ पीड़ितों के राहत के कार्य किये।
2017 में मैं पहली बार सीतापुर और लखीमपुर में बाढ़ पीड़ितों से मिलने गया तो पता लगा कि उन्हें सूखे ब्रेड दिये जाते थे। कोई राहत नहीं, कोई मुआवजा नहीं। आपदा राहत का पैसा बंदरबांट हो जाया करता था। मैंने उसी दिन बैठक ली और राहत किट तैयार करने का निर्णय लिया। जिसमें 10 किलो चावल, 10 किलो आटा, 10 किलो आलू, दाल, नमक, दियासलाई, मसाले, केरोसिन ये सभी कुछ उपलब्ध कराने की व्यवस्था की और महिलाओं को डिग्निटी किट भी उपलब्ध कराया।
इस वर्ष 26964 ड्राई राशन किट बाढ़ पीड़ितों को उपलब्ध कराया गया। 2550 डिग्निटी किट प्रदान किए गए। 909 बाढ़ शरणालय बनाये गये। पशुओं के लिए चारे भी बनाये गये। प्रभावित क्षेत्रों में मेडिकल कैंप, पशुओं का टीकाकरण, अतिरिक्त नौकाओं की व्यवस्था की गई। प्रशासन की कार्रवाई और जनप्रतिनिधियों की सक्रियता से पब्लिक में संतुष्टि का भाव देखने को मिला।
प्रदेश में 403 एमएम बरसात को सामान्य माना जाता है, मगर पिछले कुछ वर्ष से देखने को मिला है कि मौसम चक्र में विसंगति का दुष्प्रभाव सबसे अधिक अन्नदाताओं पर पड़ता है। 403 एमएम बारिश में से अबतक 303 एमएम बारिश हुई है। मगर ये बारिश एक बार में हुई है।
इन्सेफलाइटिस से पूर्वी यूपी में चालीस साल में 50 हजार बच्चों की मौत हुई थी। चार बार सपा को प्रदेश की सत्ता संभालने का मौका मिला था। 90 फीसदी मरने वाले बच्चे दलित, अल्पसंख्यक और अति पिछड़ी जाति के थे, क्या यहां पीडीए नहीं था। तब क्या कर रहे थे चार बार के आपके मुख्यमंत्री। और आपको तो पांच साल का मौका मिला था।
मुझे ये बताने में गर्व होता है कि हमारी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में इन्सेफेलाइटिस का समूल नाश कर दिया। आज आप जाइए गोरखपुर, महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, सिद्धार्थनगर, संत कबीर नगर, बस्ती, बहराइच, बलरामपुर, श्रावस्ती, गोंडा, पीलीभीत, लखीमपुर और सहारनपुर तक इंसेफेलाइटिस समाप्त हो चुका है। बस घोषणा होना बाकी है।
आज सरकारी अस्पताल में मरीज इसलिए आ रहा है कि उसे दवाएं मिल रही हैं और डॉक्टर मिल रहा है। आपके समय में न दवा थी, न डॉक्टर थे। अपनी विफलता को छिपाने के लिए आपको वहां किसी गरीब का आना और उसे आयुष्मान भारत सुविधा के अंतर्गत 5 लाख की बीमा की सुविधा मिलना बुरा लगता है।
प्रदेश के अंदर 10 करोड़ लोगों को आयुष्मान भारत की सुविधा मिल रही है वो आपके लिए जाति हो सकती है, वोट बैंक का मुद्दा हो सकता है। हमारे लिए यूपी का नागरिक परिवार का हिस्सा है। हमें विरासत में जर्जर व्यवस्था मिली थी, उसे सुधारने में वक्त जरूर लगेगा मगर वहां उमड़ती भीड़ ये बताती है लोगों का इस व्यवस्था में विश्वास भी बढ़ा है। वहां पहले से सुविधा बेहतर हुई है। पब्लिक को आपमें विश्वास ही नहीं था इसलिए आपको नकार दिया।
ये सरकार पहली सरकार है जिसने अन्नदाता किसानों के हित में दो अन्य महत्वपूर्ण कदम उठाए थे। हमने अपने पहले कार्यकाल में वन्य जीव और मानव संघर्ष को आपदा की श्रेणी में लाने का काम किया।
कोई व्यक्ति सर्पदंश और सांड़ से मरे, इन सभी को आपदा में घोषित करने वाला यूपी देश का पहला राज्य है। हम तो सांड़ की नंदी के रूप में पूजा करते हैं। शिवपाल जी आप नहीं करते क्याय़ तो कुछ तो समझाया करें इन्हें।
बिजनौर के किसानों की चर्चा नेता विरोधी दल कर रहे थे, आपको पता होना चाहिए कि 20 तेंदुओं को वहां से निकाला गया है और रेस्क्यू टीमें वहां लगातार कैंप कर रही हैं। हम किसान को सुरक्षित रखेंगे, साथ ही वन्यजीवों को रेस्क्यू करके सुरक्षित करने का कार्य भी करेंगे।
नेता विरोधी दल से पूछना चाहता हूं कि पीएम आवास योजना से लाभान्वित 55 लाख लोग पीडीए के पार्ट नहीं हैं क्या? क्यों नहीं अबतक इन्हें आवास मिला था, क्योंकि वो दलित और गरीब थे। 2017 से अबतक 55 लाख लोगों को आवास दिलाये गये हैं।
लोहिया आवास में आप सपा के कैडर को आवास देते थे। सपा कार्यालय ये तय करता था कि किसको आवास मिलना है। जब पीएम आवास की घोषणा हुई, तब केंद्र में कांग्रेस और प्रदेश में सपा की सरकार थी, उस वक्त की सूची को हमने स्वीकार करते हुए सभी को मकान देने का कार्य किया है।
जब मोदी जी की सरकार आई तब भारत सरकार कहती थी कि आवास लीजिए और ये कहते थे कि दलित हमारा वोट बैंक नहीं है। ये लोग आवास देते ही नहीं थे। लगभग ढाई वर्ष तक ये सरकार में रहे। 2017 में जब हमारी सरकार आई उसके बाद 55 लाख गरीबों को आवास दिया गया है, जिसमें से 44 लाख से अधिक आवास में गृह प्रवेश भी हो चुका है।
डबल इंजन सरकार ने एक और काम किया है। प्रयागराज में एक भूमाफिया की जमीन को मुक्त कराके 76 गरीबों को वहां भी आवास देने का कार्य किया गया है।
2012 से 17 के बीच प्रदेश की जनता चाचा भतीजे के बीच द्वंद्व का शिकार होती रही। भतीजे को लगता था कि चाचा हावी ना हो जाएं, इसलिए पैसे नहीं देते थे। यही कारण है कि 2012 से 17 के बीच आठ परियोजनाएं पूरी हो पाई थीं। 2017 से 22 के बीच हमने 20 परियोजनाओं को पूरा किया है। सिंचन क्षमता 2012 से 17 तक 195900 हेक्टेयर थी और 2017 से 22 के बीच 2317000 हेक्टेयर सिंचाई हुई है, जिससे 44 लाख किसान लाभान्वित हुए हैं।
पहली बार गत वर्ष हमने बिजली के बिल में 50 फीसदी की छूट दी है। तब क्या कर रहे थे आप लोग। आपने कुछ नहीं किया और कुछ करना भी नहीं चाहते थे। 2023 24 के लिए हम फीडर को अलग कर रहे हैं। 1500 करोड़ का बजट इसके लिए प्रावधान कर चुके हैं। जिससे प्राइवेट नलकूप लगाने वाले किसानों को फ्री में बिजली उपलब्ध करा सकें।
नलकूपों को सोलराइज करने की कार्रवाई हुई है। अबतक 45342 किसानों को इससे आच्छादित किया है। 2023-24 में 30 हजार किसानों को जोड़ने का लक्ष्य है। प्रदेश में टेल तक पानी पहुंचाने का कार्य बहुत अच्छे ढंग से आगे बढ़ा है। पीएम कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत 23 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि की सिचाई करने की योजना इसी का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
प्रदेश में अलग-अलग विभाग की ओर से भी 30 हजार 642 तालाब और 1546 चेकडैम बनाये गये हैं। 13 हजार से ज्यादा अमृत सरोवर बनाने का कार्य हुआ है। 34974 रेन वाटर हार्वेस्टिंग का कार्य हुआ है। 30749 रियूज एंड रिचार्ज स्ट्रक्चर बनाने का कार्य हुआ है। विभिन्न जनपदों में 9 नदियों को पुनर्जीवित किया गया है और 66 के साथ ये कार्य किया जा रहा है। भूगर्भीय जल के स्तर को ऊपर उठाने का कार्य किया जा रहा है।
2017 से पहले बिजली वीआईपी जिलों में ही मिलती थी। शेष जिले इससे वंचित होते थे। आज यूपी में सभी जिलों में समान रूप से बिजली आपूर्ति की जा रही है। जिला मुख्यालय पर 23 से 24 घंटे, तहसील पर 20 से 22 घंटे और ग्रामीण इलाकों में 16 से 18 घंटे की आपूर्ति 2017 से लगातार की जा रही है।
1 लाख 29 हजार मजरों का विद्युतिकरण किया गया। 33 केवीए के 1528 सब स्टेशन बनाये गये। एक करोड़ 58 लाख घरों को फ्री बिजली कनेक्शन उपलब्ध कराये गये। 399800 से अधिक किसानों को निजी नलकूपों के कनेक्शन दिये गये। 2015-16 में पीक आवर 12300 मेगावाट की डिमांड होती थी, आज 28284 मेगावाट की डिमांड है। ये दिखाता है कि पिछली सरकार के पास केवल व्यक्तिगत एजेंडा था, विकास का कोई एजेंडा नहीं था।
इसके अलावा हमारी सरकार द्वारा पॉवर सप्लाई लॉस को भी काफी कम किया गया। 2017 से पहले ये 22 फीसदी था, आज ये 17 फीसदी के आसपास है। ये रिफॉर्म को दिखाता है। 2017 से पहले 1 करोड़ 8 लाख विद्युत मीटर थे, आज 3 करोड़ 27 लाख से अधिक विद्युत मीटर लगाये गये हैं।
विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में 12 से 17 के बीच में 4839 मेगावाट की विद्युत उत्पादन की क्षमता थी जो अब बढ़कर 5820 मेगावाट की हो गई है। इसके अलावा 1600 मेगावाट के ओबरा तापीय परियोजना को आगे बढ़ाने की कार्रवाई को आगे बढ़ाने का कार्य किया है। ये योजनाएं प्रदेश की आने वाली आवश्यक्ताओं की पूर्ति करने का कार्य करेंगी।
एमएसपी क्या होता है शायद नेता विरोधी दल को पता नहीं है। शिवपाल जी को ये बताना चाहिए। संभवत: नेता विरोधी दल के नेता को रबी और खरीफ में अंतर नहीं पता।
सरकार इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि किसी भी स्थिति में किसान परेशान ना हो। मोदी जी के प्रधानमंत्री बनते ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू की गई। 2017 से 2022 के बीच लगभग 50 लाख किसान इस योजना से लाभान्वित हुए हैं। इसमें 4228 करोड़ रुपए डीबीटी के माध्यम से किसानों को सीधे सीधे पहुंचाने का कार्य हुआ।
प्रदेश में रबी और खरीफ के लाभार्थी किसानों को मुख्यमंत्री कृषक दुर्घटना बीमा से जोड़ा जा रहा है। इसके अंतर्गत जिन किसानों की दुखद मौत हुई, ऐसे 9710 किसानों को अबतक 435 करोड़ की धनराशि का भुगतान किया गया है। केवल किसान के अलावा उनके सहयोगी किसानों को भी इस योजना से जोड़ने की कार्रवाई हमारी सरकार ने की है। प्रदेश में किसान सम्मान निधि के अंतर्गत 2 करोड़ 61 लाख किसानों को 59105 करोड़ रुपए डीबीटी के माध्यम से दिए जा रहे हैं।
जो नेता विरोधी दल बड़ी डींगे हांक रहे थे, लग रहा था कि इन्होंने कुबेर का खजाना खोल रखा था। इनका कुबेर का खजाना देखें तो 12 से 17 के बीच किसानों को 552 करोड़ रुपए वितरित हुए थे। 2017-22 के बीच 2325 करोड़ रुपए किसानों को सीधे सीधे उनके बैंक खातों में भेजे गये हैं।
मैंने लोहिया आवास और कुबेर के खजाने की भी पोल खोलकर रख दी है। इनके समय में ऐसी व्यवस्था थी कि किसान आत्महत्या कर रहा था। अपनी विफलता को छिपाने के लिए ये आरोप-प्रत्यारोप करते हैं। इनकी प्रवृत्ति हमेशा धोखा देने की रही है। कभी चाचा को, कभी बहन जी को, कभी भाई साहब को धोखा दे दो।
12 से 17 के बीच 19 लाख किसानों से 94 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीद हुई थी। 12 हजार 800 करोड़ का भुगतान नगद किया गया था। इसमें आढ़ती और बिचौलिये बीच में थे। 17 और 22 से बीच 47 लाख 89 हजार किसानों से 225 लाख मीट्रिक टन खरीदा जाता है और 41 हजार 299 करोड़ रुपए डीबीटी के माध्यम से सीधे किसान के खाते में पैसा जाता है।
12 से 17 के बीच 14 लाख 87 हजार किसानों से धान क्रय किया गया। 17 से 23 के बीच में 53 लाख 68 हजार 600 से अधिक किसानों से धान की खरीद हुई। आपके समय 123 लाख मीट्रिक टन धान खरीद होती है, हमारे समय 345 लाख करोड़ मीट्रिक टन की खरीद हुई। आपने 17 हजार करोड़ भुगतान किया और हमने 63936 करोड़ का भुगतान अन्नदाता किसानों को किया।
12 से 17 के बीच कोई क्रय केंद्र स्थापित नहीं होते थे। ये काम केवल बिचौलियों और आढ़तियों के माध्यम से होते थे। आप पर अन्नदाता किसानों का विश्वास नहीं था।
गन्ना किसानों की बात करें तो जिस छपरौली चीनी मिल के उद्धार की बात चौधरी चरण सिंह जी करते रहे, समाजवादी पार्टी चार बार सरकार रहने के बावजूद ये कार्य नहीं कर सकी। हमें गर्व है कि छपरौली चीनी मिल हमारी सरकार में शुरू हुई। सपा सरकार में गन्ना किसानों का 95200 करोड़ का भुगतान हुआ था। हमारी सरकार में 2 लाख 16 हजार करोड़ का भुगतान किसानों को किया है।
किसान कभी आपके एजेंडे में रहा ही नहीं। हमारे लिए किसान किसी जाति में नहीं बंटा है। किसान की जाति, मत मजहब नहीं है। किसान के सम्मान के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि है, फसल बीमा और स्वॉयल हेल्थ कार्ड है। एमएसपी जिसमें लागत का डेढ़ गुना दाम तय किया गया, उन्हीं किसानों के लिए है।
हमने नई चीनी मिलें दी, बंद चीनी मिलों को चलाया। आपकी सरकार में चीनी मिलों को बंद करके किसानों के पेट पर लात मारी गई। किसानों पर गोलियां चलाई जाती थी। कोरोना कालखंड में जब नेता विरोधी दल घरों में दुबके थे तब भी हम चीनी मिलें चला रहे थे। उन्हें अपने कार्यकर्ताओं की चिंता नहीं थी, सरकार से ये पूछने की भी जहमत नहीं उठाई कि हम क्या मदद कर सकते हैं। उल्टा वैक्सीन का विरोध कर रहे थे।
ये हमारे लिए गर्व का विषय है कि जब दुनिया संकट में थी तब भारत के विजनरी पीएम देश के गरीबों के लिए योजनाएं शुरू कर रहे थे और लोगों की जान बचाने के लिए प्रयास भी कर रहे थे। चीन और यूरोप के बाजार बंद हुए थे। ये वैक्सीन का विरोध कर रहे थे। ये ऑस्ट्रेलिया से यही पढ़कर आए थे कि लोगों को वैज्ञानिक सोच की जगह उन्हें वैक्सीन लगवाने से मना किया जाए। ये उन्हें मौत की ओर ढकेल रहे थे।
12 से 17 के बीच 14725 टीसीडी पेराई क्षमता का विस्तार हुआ, जबकि 17 से 22 के बीच 78900 टीसीडी का विस्तार हुआ। गन्ना पेराई 3 हजार 734 लाख मीट्रिक टन हुआ और 17 से 23 के बीच में 6 हजार 404 लाख मीट्रिक टन की पेराई हुई है। चीनी उत्पादन 368 लाख मीट्रिक टन और 17 से 23 के बीच 682 लाख 44 हजार मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ है।
12 से 17 के बीच में गन्ने की औसत उपज 61.63 टन प्रति हेक्टेयर थी जबकि आज उसी किसान के खेत में 83.95 टन का उत्पादन हो रहा है। अबतक गन्ना मूल्य का हम लोगों ने 22-23 में 38 हजार 51 करोड़ का भुगतान किया है जो 87 फीसदी है। मैं आश्वस्त करता हूं प्रदेश के सभी 65 लाख गन्ना किसानों का भुगतान शत प्रतिशत किया जाएगा।
12 से 17 में कुल 42 करोड़ लीटर इथनॉल का उत्पादन हुआ। आज अकेले एक वर्ष में 153.71 करोड़ लीटर का उत्पादन कर रहे हैं। यूपी चीनी ही नहीं इथनॉल में भी नंबर वन है। छाता के पुरानी चीनी मिल में इंटीग्रेटेड शुगर कॉम्प्लेस का निर्माण कर रहे हैं। ऐसे ही देवरिया में भी जल्द इसे बनाने जा रहे हैं।
इन्हें चेकडैम अच्छे नहीं लगते, अमृत सरोवर अच्छे नहीं लगते। नेता प्रतिपक्ष को किसी अमृत सरोवर के सामने खड़े होकर सेल्फी लेनी चाहिए। आपको करना कुछ नहीं है, मगर हर एक चीज के लिए बहाने बनाने होते हैं।
वृक्षारोपण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रदेश सरकार की ओर से जो प्रयास किया गया है, इसकी सर्वत्र सराहना हो रही है। दुनिया इसे पॉजिटिव रूप में लेती है कि दुनिया का सबसे बड़ा राज्य दुनिया के लिए कार्बन उत्सर्जन के लिए कितना योगदान दे रहा है। मगर नेता विरोधी दल को लगता है कि ये सब कागजों में है। मगर कागजों में आप थे और आपको जनता नकार चुकी है।
स्कूली बच्चे, ग्राम पंचायत, नगर, ग्राम पंचायत सदस्य से लेकर संसद सदस्य तक वृक्षारोपण के कार्यक्रम से जुड़ा, मगर आपको सब कागजी लगता है। आप कभी अपने आवास से बाहर निकलेंगे तो आपको हर तरफ पेड़ दिखाई देंगे।
162 करोड़ से अधिक वृक्ष अब तक लगाये गये हैं, जिससे 12 लाख 80 हजार एकड़ लैंड आच्छादित हुई है। अगर एफआरआई देहरादून के स्टेट ऑफ फॉरेस्ट की रिपोर्ट देखें तो कहा गया है कि कुल वनावरण में 80 हजार हैक्टेयर की वृद्धि दर्ज की गई है। हम लगातार इस दिशा में कार्य कर रहे हैं।
गत वर्ष तक 131 करोड़ 98 लाख पौधों का रोपण किया है। जिससे 64 लाख मीट्रिक टन कार्बन अवशोषण में भी मदद मिली है। हमने लक्ष्य रखा है कि जब यूपी वन ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनेगा तब तक हम 9 से 15 फीसदी तक वनाच्छादित करेंगे।
एक दिन में 30 करोड़ से अधिक पौधे रोपे गये हैं। अभी 15 अगस्त को 5 करोड़ पौधरोपण का अभियान फिर चलाया जाएगा। इस दौरान हर ग्राम पंचायत, नगर निकाय और प्रमुख स्थलों पर भारत के स्वतंत्रता सेनानियों, वीर शहीदों और अमर जवानों के लिए अमृत वाटिका का निर्माण होगा।