सियासत, हुकुमत, पक्ष, विपक्ष, नेता, राजनेता, सांसद, विधायकों के फैसले, इनका स्वार्थ और व्यवहार कमोबेश एक जैसा होता है। सियासी जोड़-तोड़, धोखा,साज़िश सियासत के कॉमन चेहरे हैं। बस किरदार बदलते रहे हैं। कभी कम कभी ज्यादा। मान लीजिए महाराष्ट्र के हालिया घटनाक्रम में एनसीपी के विधायक सत्ता की लालच, स्वार्थ या ईडी, सीबीआई और जेल के डर में भाजपा के साथ आ गए।
ये सारे कारण उत्तर प्रदेश में भी राजनीतिक विस्फोट पैदा कर दें तो कोई ताज्जुब नहीं। बल्कि यहां तो इसकी और भी संभावनाएं बनती हैं। कारण ये है कि यहां महाराष्ट्र की अपेक्षा भाजपा का सर्वाधिक मजबूत और बड़ा जनाधार है। योगी आदित्यनाथ सरकार प्रचंड बहुमत की स्थिर सरकार है। कथित डर की बात कीजिए तो यूपी में यदि विपक्षी विधायक किसी भी किस्म के दागदार हों तो उन्हें सिर्फ ईडी और सीबीआई का नहीं अवैध सम्पत्तियों पर बुल्डोजर बाबा के बुल्डोजर चलने का भी ख़तरा है। इसीलिए तो कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र में दो परिपक्व और अनुभवी नेताओं के दो पुराने मजबूत दल जब टूट सकते हैं तो यूपी का सबसे बड़ा विपक्षी दल सपा भी टूट जाए तो कोई ताज्जुब नहीं।
किसी भी वक्त एनडीए में शामिल होने की संभावना वाली सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने साफ इशारा भी कर दिया है कि अखिलेश यादव से नाखुश बड़ी तादाद में सपा विधायक भाजपा संग आ सकते हैं। सपा गठबंधन के मजबूत घटक दल रालोद के एनडीए में शामिल होने की आशंकाओं को सांसद रामदास अठावले ने लखनऊ में अपने हालिया बयान में और भी बल दे दिया है। हांलांकि रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी ने इन कयासों को ग़लत बताया है।
सपा के टूटने की संभावनाओं में शिवपाल यादव को पार्टी की कमज़ोर कड़ी माना जा रहा है।राजनीतिक पंडितों का कहना है कि शरद पवार को देश की राजनीति का चाणक्य माना जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक ये बात कह चुके हैं कि शरद पवार देश के सबसे वरिष्ठ और परिपक्व नेता हैं। जब उनकी पार्टी एनसीपी और बाला साहब ठाकरे की शिवसेना टूट गई और इन दलों के विधायक भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों पर विश्वास जताने लगे तो मोदी-योगी के सबसे मजबूत किले यूपी में सपा के विधायक भाजपा संग आ जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा। यह बात भी माननी पड़ेगी कि अखिलेश यादव शरद पवार और उद्धव ठाकरे से ज्यादा परिपक्व नेता तो नहीं है।
बिहार में भी भाजपा विरोधी दलों की टूट की स्थिति पैदा होने पर कयास लगने लगे हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और नीतीश सरकार के सहयोगी जीतनराम मांझी की पार्टी एनडीए का दामन थाम ही चुकी है। यूपी भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो विपक्षी दलों कई विधायक और सांसद भाजपा में शामिल होने की वेटिंग की लाइन में काफी दिनों से खड़े हैं। यदि विपक्षी एकजुटता यूपी में भी परवान चढ़ना शुरू हुई और भाजपा को आगामी लोकसभा में पचहत्तर सीटें जीतने के लक्ष्य में कोई खतरा महसूस हुआ तो शिवपाल सिंह सहित बल्क सपा विधायकों को भाजपा का दामन थामने का मार्ग प्रशस्त कर दिया जाएगा।
भारतीय राजनीति में जोड़ने और तोड़ने का बाज़ार गर्म है। विपक्षी दल भाजपा से लड़ने की क़ूबतत पैदा करने के लिए एकजुटता का प्रयास कर रहे हैं, दूसरी तरफ विपक्षियों को अपने-अपने दलों को टूटने से बचाने की चुनौती सामने खड़ी है। महाराष्ट्र में एनसीपी टूटने के बाद यूपी, बिहार और अन्य राज्यों के क्षेत्रीय क्षत्रपों को एकता की जद्दोजहद के बीच अपने-अपने दलों को टूटने का खतरा सताने लगा है।
पिछले क़रीब एक दशक में भाजपा का काफिला सफलता के रास्ते पर ज्यों-ज्यों बढ़ा उसके साथ दूसरे दलों के नेता, विधायक और सांसद साथ आते गए। इस तरह भाजपा की ताक़त और भी बढ़ती गई। कई बार तो कांग्रेस के विधायकों के जत्थे अपनी पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए, ऐसे में किसी सूबे में कांग्रेस की सरकार गिरी तो कभी चुनावी नतीजों में सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी।
इसी क्रम में महाराष्ट्र की स्थापित पार्टी एनसीपी टूट गई। ये वो दल है जिसके मुखिया शरद पवार को देश का सबसे वरिष्ठ और परिपक्व राजनेता माना जाता है। एक वर्ष पूर्व महाराष्ट्र की शिवसेना टूटी। स्वर्गीय बाल ठाकरे की शिवसेना जिसका नेतृत्व उनके पुत्र उद्धव ठाकरे कर रहे थे, इस शक्तिशाली दल के टूटने-बिखरने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। महाराष्ट्र में शिवसेना के बाद एनसीपी के टूटने के बाद अन्य भाजपा विरोधी दलों को टूटने का डर लाज़मी है। भाजपा को हराने के लिए देशभर में भाजपा विरोधियों की एकजुटता के प्रयास में दलों का ही टूटना एकजुटता या महागठबंधन के प्रयासो को झटका ही कहा जाएगा।