- बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय की टीम ने कई फसलों को लेकर तैयार किया मॉडल
- बुंदेलखंड में परंपरागत खेती की जगह औद्यानिक खेती पर योगी सरकार का जोर
- वैज्ञानिक शोध के दौरान फलों की विभिन्न प्रजातियों ने कम पानी में भी दिया बढ़िया रिजल्ट
लखनऊ, 24 जून। मौसम की अनिश्चितता और प्राकृतिक रूप से शुष्क इलाका होने के बावजूद बुंदेलखंड रीजन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से विकास की नई राह पर बढ़ चला है। सीएम योगी का विशेष फोकस बुंदेलखंड रीजन पर है, ऐसे में हाल ही में संपन्न यूपी ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के बाद लाखों करोड़ के औद्योगिक निवेश प्रस्तावों के साथ ही अब कृषि क्षेत्र में भी बुंदेलखंड नई कहानी लिखने ज रहा है। आने वाले समय में बुंदेलखंंडका इलाका प्रदेश में हाई रेटेड औद्यानिक फसलों का केंद्र बनने की राह पर है। बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय की ओर से विभिन्न प्रजातियों के फलों पर हुए रिसर्च ने शोधकर्ताओं के सामने चौंकाने वाले नतीजे पेश किये हैं। पारंपरिक रूप से दलहन का कटोरा कहा जाने वाला बुंदेलखंड क्षेत्र आने वाले दिनों में विशेष प्रजाति के फलों का भी बड़ा सेंटर बन सकता है। इसमें अंजीर, चिरौंजी, खजूर और ड्रैगेन फ्रूट जैसे हाई रेटेड फल शामिल हैं, जिनकी मदद से बुंदेलखंड के किसान परंपरागत खेती के बनिस्पत चार गुना ज्यादा आय कर सकते हैं।
मॉडल तैयार, पूरे बुंदेलखंड में विस्तारित करने की जरूरत
बांदा कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय के कुलपति नरेन्द्र प्रताप सिंह के अनुसार बुंदेलखंड इलाके में मौसम की अनिश्चितता के कारण किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। ऐसे में कृषि का विविधिकरण करना बहुत जरूरी है। कृषि विश्वविद्यालय की ओर से बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए ऐसे फलों पर विशेष काम किया गया है, जो यहां के मौसम और परिस्थितियों के अनुकूल हों। उन्होंने बताया कि हमारी टीम ने नीबू, अंजीर, डेट पॉम और ड्रैगन फ्रूट पर पिछले चार साल के रिसर्च के बाद मॉडल तैयार कर लिया है, जिसे अब पूरे बुंदेलखंड में विस्तारित करने की आवश्यकता है। कुलपति ने बताया कि प्रदेश सरकार बुंदेलखंड की तस्वीर बदलने को लेकर काफी प्रयास कर रही है। अब जरूरत है कि यहां के किसान भी आगे आएं और पारंपरिक खेती के साथ ही औद्यानिक खेती के जरिए अपनी आय को बढ़ाएं। कुलपति नरेन्द्र प्रताप सिंह के अनुसार बुंदेलखंड में आवारा जानवरों की बड़ी समस्या को देखते हुए नंदी अभयारण्य शुरू किया गया, जिसमें छुट्टा गोवंश के लिए खुले स्थान पर रहने की व्यवस्था की गई है। इनके गोमूत्र और गोबर का उपयोग हम प्राकृतिक खेती में उपयोग कर रहे हैं।
चिंरौंजी की 74 किस्मों पर हुआ रिसर्च
विश्वविद्यालय के फल विज्ञान विभाग के हेड डॉ अखिलेश कुमार श्रीवास्तव के अनुसार 2018-19 से ही फलों की विभिन्न वैराइटीज़ पर उनकी टीम ने रिसर्च शुरू किया। ऐसे फलों पर रिसर्च किया गया जो पहले यहां कभी नहीं लगाये गये थे। इनमें नींबू, बड़ा नींबू, मुसब्बी और किन्नो संतरा पर शोध किया गया। इसके बहुत ही सकारात्मक रिजल्ट सामने आए हैं। रिसर्च के बाद अब बुंदेलखंड के बांदा और हमीरपुर में किसान इन फलों के जरिए दोगुना लाभ कमा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इसके अलावा शुष्क फल कहे जाने वाले आंवला, बेर, बेल, जामुन, चिरौंजी और महुआ पर भी रिसर्च हुआ है। ये सभी इंडीजीनस पौधे हैं। इनमें चिरौंजी की 74 किस्मों पर हमने रिसर्च किया है। उन्होंने बताया कि दलहनी-तिलहनी फसलों से तय सीमा में ही लाभ कमाया जा सकता है, जबकि औद्यानिक फसलों की खेती तीन से चार गुना ज्यादा लाभकारी होती है।
बुंदेलखंड के किसान उगा सकेंगे ड्रैगन फ्रूट और अंजीर
डॉ अखिलेश कुमार श्रीवास्तव के अनुसार ड्रैगन फ्रूट जोकि काफी महंगे बिकते हैं। इसे लेकर भी रिसर्च में काफी बढ़िया रिजल्ट मिले हैं। बुंदेलखंड के किसान एक हेक्टेयर में ड्रैगन फ्रूट के 555 पौधे लगा सकते हैं। हर पौधे से 40 से 50 किलो ड्रैगन फ्रूट मिल जाता है। इसमें वन टाइम इन्वेस्टमेंट है। पहली बार तकरीबन 15 सौ रुपए प्रति पौधे का कॉस्ट आता है। बस इसके एनुअल मैंटेनेंस की आवश्यक्ता है और ये कई दशक तक फल देते हैं। इसी प्रकार टीशू कल्चर से खजूर के पौधों पर भी रिसर्च किया गया है। बुंदेलखंड इलाके में बीजों से खजूर रोपने से उसमें 12 से 15 साल बाद फल उगते हैं, मगर रिसर्च में ये अवधि घटकर 4 साल हो गई है। खजूर के इन फलों से छोहारा बनाकर किसान अपनी आमदनी में कई गुना का इजाफा कर सकते हैं। साथ ही अंजीर जोकि सबसे महंगा ड्राई फ्रूट है, उसे भी अब बुंदेलखंड में उगाया जा सकता है। तीन साल में अंजीर का पौधा फल देने लगता है। प्रति पौधा 12 किलो तक अंजीर पैदा किया जा सकता है। चूंकि अंजीर एक पेरिशेबल फ्रूट है तो इसके प्रोसेसिंग की जरूरत पड़ती है। हमने देखा है कि अंजीर के लिए बुंदेलखंड का क्लाइमेट सूट कर रहा है।