जैन संत आचार्य विजय धर्म धुरंधर सूरीश्वर महाराज इन दिनों खासी चर्चा में है। वह हाल ही में पाकिस्तान की यात्रा करके स्वदेश लौटे हैं। अनेक लोग पाकिस्तान की यात्रा करते रहते हैं लेकिन इस संत की यात्रा के खास मायने हैं। जैन मुनि की यह यात्रा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि देश के विभाजन के बाद 75 सालों मेंं आज तक कोई जैन संत पाकिस्तान नहीं गया। आचार्य श्री धुरंधर ऐसे पहले जैन संत हैं, जिन्होंने न केवल विभाजन के उपरांत पाकिस्तान की यात्रा की बल्कि जैन संस्कृति के प्रतीक प्राचीन जैन मंदिरों में जा कर पूजा-अर्चना भी की है। उन्होंने पाकिस्तान में जा कर शांति एवं अहिंसा का संदेश दिया है, जिसकी देश-दुनिया में चर्चा हो रही है। इसी के साथ पाकिस्तान में स्थित जैन मंदिर भी चर्चा मेंं आ गए हैं।
जैन समाज में आचार्य धर्मधुरंधर परिचय के मोहताज नहीं हैं। समाज में एक समृद्ध व्यक्तित्व वाले संत के रूप में उन्हें पहचाना जाता है। आचार्य श्रीमद् विजय सुमंदर सूरीश्वर महाराज के अनुयायी संत धर्म धुंरधर ने 11 साल की उम्र में दीक्षा ली थी। उन्होंने अपने गुरु के मार्गदर्शन में जैन धर्म और अन्य धर्मों का गहन अध्ययन किया है एवं अपने आध्यात्मिक ज्ञान और विवेक की बदौलत आचार्य पदवी प्राप्त की है। वह समाज में प्रसिद्ध उपदेशक तो हैं ही, इसके साथ-साथ बहुमूल्य हस्तलिखित जैन साहित्य के शोध में भी उनकी विशेष रुचि है। उन्होंने विभिन्न ग्रंथों पर शोध का उल्लेखनीय कार्य किया है। कई पुस्तकें भी लिखी हैं।
जैन मुनि 21 मई को अपने शिष्यों और श्राविकों के साथ पाकिस्तान गए। उन्होंने 11 दिवसीय यात्रा के दौरान वहां लाहौर के अनारकली बाजार स्थित प्राचीन जैन मंदिर, लाहौर म्यूजियम में गुरु आत्माराम जी महाराज की चरण पादुका तथा गुजरांवाला में समाधि स्थल के दर्शन कर पुष्पांजलि अर्पित की। करीब तीन सौ किलोमीटर की पैदल यात्रा के दौरान मुनि ने वहां विभिन्न जैन मंदिरों और उनके अवशेषों को देखा। उन्होंने पाकिस्तान सरकार द्वारा लाहौर स्थित जैन मंदिर का जीर्णोद्धार कराने पर खुशी जताई। साथ ही, पाकिस्तानी अधिकारियों से यह आग्रह भी किया कि गुरु आत्माराम जी महाराज की चरण पादुकाएं जहां से ला कर म्यूजियम में रखी गई हैं, अगर वही पर पुन: प्रतिष्ठित की जाएं तो समूचे जैन समाज के लिए यह हर्ष की बात होगी। पाकिस्तानी अधिकारियों ने उनकी भावना अपनी सरकार तक पहुंचाने का आश्वासन दिया है।
जैन मुनि की इस यात्रा से भारत और विश्व के अन्य देशों के जैन समुदाय का ध्यान पाकिस्तान स्थित जैन मंदिरों की ओर गया है। पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांत में जैन संस्कृति के निशान जगह-जगह बिखरे पड़े हैं। पाकिस्तान मेंं स्थित जैन मंदिर एक ओर जहां सार-संभाल के अभाव में जर्जर हो गए हैं, वहीं 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के उपरांत अनेक मंदिरों को ढहा दिया गया। वहां अनेक भव्य मंदिर हैं, जो उपेक्षित हैं। ये मंदिर पुराने समय की अनूठी स्थापत्य कला के नमूने हैं और उस वैभवकाल की कहानी कहते हैं। इन मंदिरों की सार-संभाल करने वाला वहां कोई नहीं है। जो जैन धर्मावलंंबी वहां रहते थे, वह विभाजन के समय वहां से भारत आ गए।
जैन मुनि की यात्रा ने पाकिस्तान स्थित जैन धरोहर की ओर ध्यान आकर्षित किया है। लाहौर स्थित एक जैन मंदिर का पाकिस्तान सरकार ने कोर्ट के आदेश पर पुनर्निर्माण करवाया है लेकिन वह पारंपरिक जैन वास्तु शैली मेंं नहीं है। जैन मुनि ने पाकिस्तानी अधिकारियों के समक्ष इच्छा जताई कि इस मंदिर का निर्माण जैन धर्म की पारंपरिक वास्तु शैली में करवाया जाए। हम लोग इसमेंं सेवाएं देने को तैयार हैं।
विभाजन के दशकों बाद तक किसी का ध्यान पाकिस्तान के इन मंदिरों की ओर नहीं था। जैन संत की यात्रा से समुदाय की दिलचस्पी इस ओर पैदा हुई है। जैनों में पाकिस्तान स्थित मंदिरों के दर्शन की इच्छा उत्पन्न हुई है। प्रबल संभावना है कि अब जैन समुदाय के लोग अपनी धरोहर को देखने के लिए पाकिस्तान जाने की योजना बनाएं। पाकिस्तान स्थित ऐतिहासिक महत्व के करतारपुर साहिब और ननकाना साहिब गुरुद्वारों के दर्शनों के लिए बड़ी तादाद में सिख संगत पाकिस्तान की यात्रा करती आ रही है। सिंध में स्थित हिंगलाज माता के मंदिर में आराधना के लिए भी काफी श्रद्धालु हर साल वहां जाते हैं। इस क्रम में अब जैन मंदिरों का दर्शन भी जुड़ सकता है। अगर ऐसा होता है तो इससे दोनों देशों के लोगों को एक-दूसरे के करीब आने का अवसर प्राप्त होगा। परस्पर प्रेम बढ़ेगा। दोनों देशों के कटु संबंधों के कारण जहां आज जिन फिजांओं में रंजिश का जहर है, वहां क्या पता मोहब्बत की खुशबू के झोंके आने लगें। शांति और अहिंसा को सर्वोपरि मानने वाला जैन समाज तो मोहब्बत के माहौल का ही पैरोकार है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)