विश्व पर्यावरण दिवस ने दिया प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने की सोच

राघवेन्द्र प्रताप सिंह : हर साल की तरह इस साल भी 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस दुनिया भर में मनाया गया और विश्व के कई देशों ने अपने यहां विकास और पर्यावरण के बीच सामंजस्य बिठाने का संकल्प भी बनाया है। विश्व पर्यावरण दिवस के लिए प्रतिवर्ष एक खास थीम के साथ काम किया जाता है जिससे दुनिया भर के देश कुछ बेहतर कार्यप्रणाली अपनाने के लिए प्रेरित होते हैं । विश्व पर्यावरण दिवस 2023 की इस बार की थीम सॉल्यूशंस टू प्लास्टिक पॉल्यूशन थी।  यह थीम प्लास्टिक प्रदूषण के समाधान पर आधारित है। आज दुनिया भर में प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने भी 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर अपने सन्देश में, प्लास्टिक कूड़े-कचरे (अपशिष्ट) के त्रासद परिणामों से छुटकारा पाने की महत्ता पर ज़ोर दिया है।  उनका ये सन्देश इस सन्दर्भ में और भी ज़्यादा अहम है कि अन्तरराष्ट्रीय वार्ताकार, प्लास्टिक प्रदूषण की समाप्ति पर, नवम्बर 2023 तक एक सन्धि का मसौदा तैयार करने के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम कर रहे हैं।

एंतोनियो गुटेरश ने कहा है, “हर वर्ष, दुनिया भर में 40 करोड़ टन से भी ज़्यादा प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से लगभग एक तिहाई प्लास्टिक का प्रयोग केवल एक बार होता है।” यूएन का मानना है कि प्लास्टिक कचरे की लगभग 2,000 भरे हुए ट्रकों के बराबर मात्रा, हर दिन समुद्रों, नदियों और झीलों में फेंक दी जाती है। प्लास्टिक के महीन कण, उन खाद्य पदार्थों तक पहुँच रहे हैं जो हम खाते हैं, उस पानी में भी, जो हम पीते हैं, और यहाँ तक कि उस हवा में भी, जिसमें हम साँस लेते हैं। प्लास्टिक जीवाश्म ईंधन से बनता है, हम जितना अधिक प्लास्टिक बनाते हैं, उतना ही ज़्यादा जीवाश्म ईंधन जलाते हैं, और इस तरह हम जलवायु संकट को और भी बदतर बनाते हैं। संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि अगर पूरी मानवता, प्लास्टिक के पुनः प्रयोग, री-सायकिल करने और प्लास्टिक से दूर रहने के लिए अभी से कार्रवाई करनी शुरू करे तो, प्लास्टिक प्रदूषण में, वर्ष 2040 तक, 80 प्रतिशत तक की अदभुत कमी की जा सकती है।

हर साल दुनिया भर में 40 करोड़ टन से ज़्यादा प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से लगभग आधी मात्रा यानि 20 करोड़ टन प्लास्टिक का प्रयोग, केवल एक बार होता है।  संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार, कुल प्लास्टिक में से केवल, 10 प्रतिशत मात्रा री-सायकिल होती यानि उसका पुनःप्रयोग होता है। ऐसा अनुमान है कि इस पृथ्वी पर मौजूद हर एक व्यक्ति औसतन हर साल 50 हज़ार से ज़्यादा प्लास्टिक कणों का उपभोग करता है, और अगर इसमें साँसों के ज़रिए हमारे भीतर पहुँचने वाले कणों को भी शामिल कर लिया जाए, तो इनकी संख्या और भी बढ़ जाती है।

कूड़े-कचरे में फेंक दिया गया या एकल प्रयोग के बाद जला दिया गया प्लास्टिक, मानव स्वास्थ्य और जैव-विविधता को हानि पहुँचाता है, और पर्वतों के शीर्ष स्थलों से लेकर समुद्रों की तलहटी तक, सभी को प्रभावित करता है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि इस समस्या से निपटने के लिए उपलब्ध विज्ञान और समाधानों के मद्देनज़र, देशों की सरकारों, कम्पनियों और अन्य हितधारकों से, इस संकट को सुलझाने के लिए कार्रवाई की गति और दायरा बढ़ाने होंगे।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की 2023 में  जारी एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा टैक्नॉलॉजी के उपयोग से और नीतियों, बाज़ारों व उत्पादों में बड़े बदलावों के ज़रिए, वर्ष 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण में 80 प्रतिशत तक की कमी लाना सम्भव है। प्लास्टिक की थैलियों, और सामान ले जाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उत्पादों को हटाकर दूसरी सामग्री (जैसेकि काग़ज़ में सामान बांधना) के उपयोग से प्लास्टिक प्रदूषण में अतिरिक्त 17 प्रतिशत तक की कमी लाई जा सकती है। इसके तहत, जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी का अन्त करना, रीसायकलिंग के लिए नए डिज़ाइन दिशानिर्देश जारी करना और अन्य उपाय अपनाए जाने पर बल दिया गया है, ताकि रीसायकल किए जाने योग्य उत्पादों का हिस्सा 21 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया जा सके।

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