दुनिया भर की संसदों की “अम्मा” कहलानेवाली ब्रिटिश पार्लियामेंट की इमारत में दरार पड़ गई है। छत से पानी टपकता है। संसदीय लोकलेखा समिति की गत सप्ताह रपट के अनुसार इसकी दीवारें कभी भी ढह सकती हैं। यह हादसा ठीक उसी दौर में हुआ, जब नई दिल्ली में सेंट्रल विस्टा से नवीनतम संसद के भवन का उद्घाटन हो रहा था। क्या संयोग रहा ? अब लंदन की संसद को मरम्मत करने में हर सप्ताह अर्थात इक्कीस करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं। इसी भवन के सदन से कभी सारे महाद्वीपों में करोड़ों जन को गुलाम बनाकर रखा गया था। सदियों तक उन पर श्वेत साम्राज्यवादी जुल्मों-सितम ढाते रहे। शोषण करते रहे। भारतवर्ष इस औपनिवेशक अत्याचार का जीवंत उदाहरण रहा है।
यूं तो नरेंद्र मोदी हमेशा दावा करते हैं कि भारत ही “लोकतंत्र की जननी” रही है। मगर पश्चात्य के लोग नहीं मानते। उनके आकलन से विभिन्न हमलावरों, गजनी-गोरी, नादिर शाह और अहमद शाह अब्दाली से लेकर अंग्रेज-पुर्तगाली तक उपनिवेशवादियों का भारत गुलाम रहा। मगर गणतन्त्र का उल्लेख यहां है इस्लामी आक्रमण के पूर्व का है। उदाहरणार्थ वैशाली के गणराज्यों का, दक्षिण भारत के चोल-चालूक्य राज का और देशी पंचायत प्रणाली का। इन्हें आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था। इंग्लैंड पर रोम साम्राज्य के जूलियस सीजर तथा फ्रेंच और स्पेन सम्राटों ने भी हमला किया था। मगर उनकी संसद बची रही। वृहत ब्रिटेन और उत्तरी आयरलैंड के संयुक्त अधिराज्य की संसद या ब्रिटिश संसद युनाइटेड किंगडम की सर्वोच्च विधायी संस्था है। सम्पूर्ण ब्रिटिश प्रभुसत्ता के उपनिवेशों में वैधिक नियमों को बनाने, बदलने तथा लागू करने का संपूर्ण अधिकार केवल इसी संसद का ही है। यह एक द्विसदनीय विधायिका है : हाउस ऑफ लॉर्ड्स और हाउस आफ कॉमन्स।
लंदन में आधुनिक रूप में संसद का गठन 1707 में किया गया था। यह विश्व के कई लोकतंत्रों के लिए नमूना रही। इसलिए यह संसद “मदर ऑफ पार्लियामेन्ट” कही जाती है। ब्रिटिश विधान-प्रक्रिया के अनुसार, संसद द्वारा पारित अधिनियमों को सांविधिक होने के लिए, ब्रिटिश संप्रभु की शाही स्वीकृति प्राप्त करना अनिवार्य होता है। प्रधानमंत्री की सलाह पर बादशाह संसद भंग भी कर सकते हैं, हालांकि विधि सम्मत रूप से उनके पास, प्रधानमंत्री की सहमति के बिना भी, संसद को भंग करने की शक्ति है। ब्रिटिश संसद के दोनों सदनों की बैठकें, लंदन शहर के वेस्टमिन्स्टर शहर में थेम्स नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित पैलेस ऑफ वेस्टमिन्स्टर, अर्थात वेस्टमिंस्टर का महल में आयोजित होती है, जिसे हाउस ऑफ पार्लियामेंट के नाम से भी जाना जाता है। यह सरकारी भवन वाइटहॉल और डाउन स्ट्रीट तथा ऐतिहासिक स्थल वेस्टमिन्स्टर ऐबी के करीब है।
इस जगह पर पहला शाही महल ग्यारहवीं शताब्दी में बनाया गया था और 1512 में इस इमारत के नष्ट होने से पहले वेस्टमिन्स्टर ही लंदन के राजा का प्राथमिक लंदन निवास था। इसके बाद से ही यह संसद भवन के रूप में कार्य कर रहा है। यहां संसद की सभाएं 13 वीं शताब्दी से होती रही और शाही न्याय पीठ एवं वेस्टमिन्स्टर हॉल भी यहीं पर है। इस भवन में 1834 में भयानक आग लग गई। जो इमारतें बच गईं उनमें शामिल हैं वेस्टमिन्स्टर हॉल, द क्लॉइस्टर्स ऑफ सेंट स्टीफन्स, चैपल ऑफ सेंट मैरी अंडरक्राफ्ट और जूअल टॉवर। लंदन के वायु प्रदूषण के कारण इसके संरक्षण का कार्य तब से चल ही रहा है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब 1941 में इसके कॉमन चैंबर में हिटलरी बमबारी हुई थी तब से यहां पर पुर्ननिर्माण का काम चला। लंदन का प्रतिष्ठित ऐतिहासिक स्थल और शहर का मुख्य पर्यटन केंद्र है। यह 1987 से यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों का हिस्सा है। विगत चार दशकों में अपनी ब्रिटेन यात्रा पर मैं हर बार संसद की गैलरी में जाता रहा। अनुभव बड़े रुचिकर होते थे। ब्रिटेन की संसद में ही पास हुआ था भारत की आजादी का एक्ट, जिसके 28 दिन बाद 200 साल की गुलामी से देश को मुक्ति मिली थी।
हाउस ऑफ लॉर्ड्स और हाउस ऑफ कॉमन्स मूल रूप से एक “वार्ता” के अर्थ में हैं। इस शब्द का इस्तेमाल 13 वीं शताब्दी में उनके मठों में भिक्षुओं के बीच रात के खाने के बाद की चर्चाओं का वर्णन करने के लिए किया जाता था। सेंट एल्बंस के अंग्रेजी बेनिदिक्तिन भिक्षु मैथ्यू पेरिस ने 1239 में प्रीलेट्स, अर्ल और बैरन के बीच एक परिषद की बैठक के लिए इस शब्द का प्रयोग किया था। इसका उपयोग 1245 में ल्योन में पोप इनोसेंट IV द्वारा बुलाई गई बैठक में भी किया गया था। ब्रिटिश उपनिवेशक रहे भारत के केन्द्रीय ऐसेम्बली ने 1927 से लेकर 1952 तक ब्रिटिश शासन के लिए विधान तय किए। सन् 1951-52 में सम्प्रभुता सम्पन्न भारत गणराज्य के पहले चुनाव से लेकर 2019 तक चुनी गई 17 लोक सभाएं स्थापित की गई थीं। निरन्तर 71 सालों तक संसद का स्थाई सदन राज्यसभा भारत के भविष्य को लेकर चिन्तन करती रही।
ब्रिटिश पार्लियामेंट की तर्ज पर भारत में भी अंग्रेजों ने एक गोल भवन निर्मित कर उसे सेंट्रल एसेम्बली बनाया था। आजादी के बाद यही संसद भवन बना। कितना फर्क है कि ब्रिटिश काल में नई दिल्ली के संसद भवन पर कुल 83 लाख खर्च हुए थे। आज नई संसद पर 970 करोड़ व्यय हुए हैं। फिलहाल लंदन तथा नई दिल्ली के संसद भवनों में एक ऐतिहासिक रिश्ता तो रहा है। इसी गोलाकार पुरानी संसद भवन पर भगत सिंह ने बम फेंका था ताकि बहरे भी सुन सकें। अब वैसी नौबत नहीं आएगी। आजाद भारत के नागरिक दुबारा उपनिवेश नहीं बनने देंगे। चाहे उजबेकी डाकू जहीरुद्दीन बाबर हो या ब्रिटिश लुटेरा राबर्ट क्लाइव। भारत अब महफूज है, अपनी जनता के हाथों।