लखनऊ। उत्तर प्रदेश की जनता के लिए गुरुवार का दिन खुशखबरी वाला रहा। विद्युत नियामक आयोग ने इस साल भी बिजली उपभोक्ताओं को बिल के दाम बढ़ने से लगने वाले करंट से बचा लिया। अब इस साल भी बिजली की दर नहीं बढ़ेगी। विद्युत नियामक आयोग ने बिजली कंपनियों की तरफ से दाखिल 18 से 23 फीसदी बढोतरी के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। एक बार फिर प्रदेश की बिजली दरों में कोई भी बदलाव न करते हुए यथावत रखी गई हैं। यह चौथा साल है, जब बिजली की पूर्व दर ही लागू रहेगी।
नियामक आयोग ने बिजली दरों में कमी को रोकने के लिए अपर मुख्य सचिव ऊर्जा द्वारा वितरण हानियों को आरडीएसएस स्कीम के तहत मानने वाला प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। इस वर्ष भी प्रदेश के उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर 7988 करोड़ रुपये सरप्लस निकला है। गुरुवार को नियामक आयोग का फैसला आने के बाद उपभोक्ता परिषद ने ऐलान किया कि जब तक बिजली कंपनियों पर उपभोक्ताओं का बकाया बना रहेगा, तब तक बिजली दर नहीं बढ़ने दिया जाएगा। अब कुल सरप्लस बढ़कर 33,121 करोड़ रुपये हो गया है। ऐसे में अगले 10 वर्षों तक दरों में बढ़ोतरी नहीं हो सकती है।
बिजली कर्मचारियों यानी कि विभागीय कार्मिकों का जो एलएमवी-10 था उसे टैरिफ शेड्यूल से बाहर कर दिया गया है और अब सभी बिजली कार्मिक घरेलू विद्युत उपभोक्ता की श्रेणी में आएंगे। सभी बिजली कार्मिकों के घरों पर अनिवार्य रूप से मीटर लगाने का आदेश दिया गया है। आयोग ने ट्रांसमिशन टैरिफ 26 पैसे प्रति यूनिट तय किया है।
विद्युत नियामक आयोग बिजली कंपनियों की तरफ से दाखिल 92,564.89 करोड़ की वार्षिक राजस्व आवश्यकता को न मानते हुए केवल 86,579.51 करोड़ वार्षिक राजस्व की आवश्यकता अनुमोदित की गई। बिजली कंपनियों द्वारा जो वितरण हानियां 14.90 प्रतिशत मानी गई थी, विद्युत नियामक आयोग द्वारा केवल 10.30 प्रतिशत ही मान्यता दी गई। आयोग ने बिजली चोरी का खामियाजा प्रदेश के उपभोक्ताओं पर ना पड़े इसलिए हानियों का आकलन बिजनेस प्लान के तहत किया है। आयोग द्वारा 15,200 करोड़ सब्सिडी को मानकर जो टैरिफ का निर्धारण स्लैब वाइज किया गया है। उससे बिजली कंपनियों को लगभग 85,105.59 करोड़ का राजस्व प्राप्त होगा।