के. विक्रम राव : ऑस्ट्रेलिया की यात्रा के अंतिम दिन आज (24 मई 2023) नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज से सख्त दंडात्मक कदम का वादा पाया, जब उन्होंने हिंदू मंदिरों पर आतंकी हमलों का मुद्दा उठाया। गत महीनों खलिस्तानी उग्रवादियों ने कैरम डाउंस के विष्णु मंदिर, ब्रिसबेन के लक्ष्मी नारायण मंदिर, मिल पार्क के इस्कान मंदिर आदि को क्षति पहुंचायी। मोदी ने कहा : “प्रधानमंत्री अल्बनीज और मैंने पहले भी ऑस्ट्रेलिया में मंदिरों पर हमले और अलगाववादी तत्वों की गतिविधियों के मुद्दे पर चर्चा की थी। हमने आज भी इस मामले पर चर्चा की।” ऑस्ट्रेलियाई पीएम ने उन्हें इस तरह की तोड़फोड़ करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया है।”
हिंद महासागर के इन दो तटीय राष्ट्र, जो कॉमनवेल्थ के सदस्य भी हैं, ने शिक्षा और आर्थिक क्षेत्रों में करीबी लाने का निर्णय किया है। जब कल रात सिडनी के कूडोस बैंक एरीना में बीस हजार अप्रवासी भारतीयों को दोनों प्रधानमंत्री संबोधित कर रहे थे तो अचरजभरे हर्षातिरेक का माहौल था। कम्युनिस्ट पृष्टभूमि के अल्बनीज तथा राष्ट्रवादी पुरोधा मोदी गर्मजोशी से बारंबार गले लग रहे थे। अवसर की बारीकी, संवेदनशीलता और सौहार्द की नजर से मोदी की एक घोषणा ने श्रोताओं के मन को निनादित कर दिया। यह करतल ध्वनि में व्यक्त हुई। मोदी बोले : “अगले भारतीय प्रधानमंत्री के आगमन हेतु अब आपको 28 वर्षों की लंबी प्रतीक्षा नहीं करनी होगी।” उन्होंने अलविदा नहीं कहा, फिर भेंट का प्रण जाहिर किया। मोदी के पूर्व राजीव गांधी 1986 में ऑस्ट्रेलिया पधारे थे। उनके बाद सात प्रधानमंत्री गत चार दशकों में हुए, पर कोई भी ऑस्ट्रेलिया नहीं आया।
मोदी और अल्बनीज में कई साम्य भी हैं। दोनों अपनी मां के प्रिय पुत्र हैं, पिता के स्नेह का अभाव दोनों ने देखा। अल्बनीज के पिता तो कार दुर्घटना में मारे गए थे। मां सफाई कर्मचारी, तो पिता कुली थे। अल्बनीज स्वयं बैंक कर्मचारी रहे। छात्र जीवन में वे कम्युनिस्ट पार्टी के प्रभाव में आए। वामपंथी विचार के तो थे ही। फिर लेबर (सोशलिस्ट) पार्टी के अगुवा बने। प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए। उनका पहला निर्णय था कि राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन को बढ़ाने का। श्रमिक हितकारी नीतियां अपनाई। श्रम कानून को मानवीय बनाया। विदेश नीति में यूक्रेन का साथ दिया। चीन और रूस की नाराजगी झेली।
इस यात्रा में नरेंद्र मोदी की महत्वपूर्ण खोज रही सोने की खदानों से भरा शहर “लखनऊ”। उपलब्ध दस्तावेजों में जिक्र है किसी मिस्टर रे का जो 1857 में लखनऊ में ईस्ट इंडिया कंपनी में प्रशासनिक अधिकारी थे। विद्रोह के बाद वे घायल अवस्था में ऑरेंज प्रदेश (ऑस्ट्रेलिया) आकर बस गए। उन्हीं ने सिडनी से ढाई सौ किलोमीटर दूर की इस बस्ती को लखनऊ का नाम दिया। यहां मात्र 300 परिवार बसे हैं। इतिहासकार कुक ने अपनी किताब “लखनऊः ए वेरिटेबल गोल्डमाइन” में इसे भारत के लखनऊ से संपर्क होने का जिक्र किया है।
अपनी यात्रा द्वारा मैत्री प्रगाढ़ करने के प्रयास में मोदी ने ब्रिस्बेन शहर में जी-20 सम्मेलन का उल्लेख कर वहां भारतीय उपदूतावास की स्थापना का ऐलान भी किया। चंद महीने बाद भारत में होने वाले क्रिकेट विश्व कप में अल्बनीज तथा अन्य आस्ट्रेलियाई जन को मोदी आमंत्रित कर आएं। कहा कि “क्रिकेट के बिना हम दोनों देश जी नहीं सकते।” यह अल्बनीज के दूसरी भारत यात्रा होगी। गत वर्ष (10 मार्च 2022) वे साबरमती आश्रम में बापू को नमन करने आए थे। होली भी अहमदाबाद में खेली।
एक खास भेंट मोदी की हुई मशहूर वक्ता मार्क बल्ला, उर्फ “शौचगृह योद्धा” से। बल्ला ने “ऑपरेशन टॉयलेट ऑस्ट्रेलिया” की स्थापना की थी। भारत के सुलभ शौचालय श्रृंखला की भांति। बल्ला ने मोदी को स्वच्छता द्वारा दुनिया बदल डालने वाला “महानतम पुरुष” कहा। उनके आकलन में मानव इतिहास में “स्वच्छ भारत” कार्यक्रम अद्वितीय रहा।”
क्रिकेट का उल्लेख करते वक्त मोदी ने अपने श्रोताओं से तादात्म्य स्थापित किया यह कहकर कि महान ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर शेन वार्न के निधन (4 मार्च 2022) पर करोड़ों भारतीय गमगीन थे। वे प्रथम बॉलर थे जिन्होंने 708 विकेट लिए। काबिले गौर बात तो प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने मोदी के लिए विशाल भारतीय प्रशंसकों की भीड़ पर कहा। वे बोले कि : “कुडोरू बैंक एरीना में इतनी केवल रॉक नर्तक ब्रूस स्प्रिंगस्टिन (21 मार्च 2017) को सुनने आई थी। आज उससे भी ज्यादा लोग मोदी के लिए आए हैं।” एक अमेरिकी मजदूर का बेटा, बागी कलाकार एकल गायक-गीतकार ब्रूस से मोदी की तुलना की ऑस्ट्रेलियाई प्रधान मंत्री से। ब्रूस के साथी उन्हें “दि बॉस” (नायक) कहते थे। अतः मोदी भी “दि बॉस” हैं।
एक प्रिय तथा स्मरणीय वाकया है मोदी की यात्रा का। पूर्वी पर्थ नगर में नेल्सन एवेन्यू का नाम बदलकर “नारायण सिंह सैलानी मार्ग” कर दिया गया। यह सिख जवान प्रथम विश्व युद्ध (1917) के दौरान ऑस्ट्रेलिया की रक्षा में शहीद हुआ था। मोदी के अनुरोध पर यह नामकरण किया गया। ब्रिटेन के नौसेनाध्यक्ष एडमिल होरेशियो नेल्सन ने फ्रांस के सम्राट नेपोलियन बोनपर्ट को ट्राफ्लागार सागरी युद्ध में हराया था (21 अक्टूबर 1805)। उस महान सेनापति का नाम हटाकर इसे एक सिख जवान के नाम कर दिया गया। मोदी ने कहा भी कि ब्रिंघम स्ट्रीट को विक्रम मार्ग, हैरिस पार्टी को हरीश उद्यान, पारमिट्टा स्क्वायड को परमात्मा चौक भी भारतीयों ने कर दिया है।
भारतीय गणराज्य से संबंध स्थापित करने के पूर्व ऑस्ट्रेलिया एक शोषक, क्रूर, साम्राज्यवादी, नस्लवादी देश था। मूलतः यहां ब्रिटिश अपराधी ही लंदन से कैद कर भेजे जाते थे। ठीक जैसा अंडमान द्वीप था भारतीय कैदियों के लिए। “श्वेत ऑस्ट्रेलिया” नीति लागू थी। इसे 5 जून 1961 में प्रधानमंत्री एडमंड बार्टम ने शुरू की थी। मकसद था कि एशियाई जनता कहीं घुसपैठ कर इस विशाल महाद्वीप में न बस जाए। मार्च 1964 में यह नीति खत्म हुई। राष्ट्र मण्डल सदस्यों का भी दबाव पड़ा। खासकर भारतीय गणराज्य का। आज मोदी की यात्रा से एशिया का वर्चस्व इन गोरों के महाद्वीप में पुनः बढ़ा है। भारत की यह सफलता है।