- बेबाक बात और पत्रकारिता थी शीतला सिंह की पहचान – सुरेश बहादुर सिंह
- पत्रकारिता में सहकारिता के पुरोधा थे शीतला सिंह – प्रेम कांत तिवारी
- शीतला सिंह ने अखबार बनाया घर नहीं – सुमन गुप्ता
- राजधानी के पत्रकारों ने दी शीतला सिंह को भावपूर्ण श्रद्धांजलि
लखनऊ। पत्रकारिता के क्षेत्र में सहकारिता,राह आसान नहीं थी। परन्तु, असंभव को संभव बनाने की क्षमता रखने वाले शीतला सिंह ने हार नहीं मानी। कई बार सरकार से टकराव भी हुआ। प्रताड़ना भी झेली, बावजूद इसके जमे रहे। अंततः नए मानक गढ़ने वाले पुरोधा के रूप में उनकी जीत हुई। ऐसे थे पत्रकार शीतला सिंह और ऐसा थी उनकी पत्रकारिता की शैली।
उपरोक्त बातें वरिष्ठ पत्रकार प्रेमकांत तिवारी ने प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र जनमोर्चा के संस्थापक संपादक शीतला सिंह की स्मृति में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में कहीं। ज्ञातव्य है कि विगत 16 मई को शीतला सिंह का 91 वर्ष की आयु में देहावसान हो गया।
शोक सभा में बोलते हुए यूपी प्रेस क्लब के अध्यक्ष रवींद्र सिंह ने कहा कि शीतला सिंह और अयोध्या राम मंदिर मामले का बहुत गहरा जुड़ाव था। उन्होंने अपना प्रसिद्ध समाचार पत्र जनमोर्चा भी अयोध्या से ही शुरू किया था। कहा जाता है, कि लंबे समय तक चली अयोध्या आंदोलन मामले की रिपोर्टिंग किसी पत्रकार की शीतला सिंह से मिले बिना पूरी नहीं होती थी
वरिष्ठ पत्रकार रतीभान त्रिपाठी ने कहा कि शीतला सिंह सतत जीवटता वाली शख्सियत थे। जब उन्होंने इलाहाबाद से जनमोर्चा का प्रकाशन शुरू किया तब मुझे उनके व्यक्तित्व का यह रूप जब मुझे देखने का सौभाग्य मिला था। यह गुण ताउम्र उनमें बना रहा।
रायटर्स न्यूज से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान ने कहा कि शीतला सिंह जमीनी मुद्दों से जुड़ी पत्रकारिता के पुरोधा थे। यूनियन से जुड़े रहकर उन्होंने पत्रकारों के लिए बहुत संघर्ष किया। आने वाले समय में ऐसे लोग मिलेंगे यह लगभग सपना ही है, परंतु यदि इस सपने को आदर्श मान कर चलें तो भी पत्रकारिता के मानक बने रहेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार राजीव बाजपेई ने बताया कि पहली बार जब मैंने उन्हें देखा तो लगा कि इतना दैदीप्यमान चेहरा आज तक नहीं देखा। बाद में उन्होंने मुझे मेहनत को जीवन की कुंजी बनाने का मंत्र भी दिया। अयोध्या रिपोर्टिंग के दौरान सभी पत्रकार जनमोर्चा पढ़कर अपनी खबरें पूर्ण करते थे।
यूपी प्रेस क्लब के सचिव रहे वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह ने कहा कि पत्रकारिता में पूंजीवाद के दौर में उन्होंने जनमोर्चा जैसी श्रमजीवी सहकारिता आधारित समाचार पत्र को निकालने का जोखिम उठाया। श्रम शक्ति और संगठन शक्ति के चलते वह सफल भी हुए। अपनी बातों को बेबाकी से रखने और बेबाकी से खबरें लिखने के लिए शीतला सिंह सदैव याद रखे जाएंगे। संघर्षशील शीतला सिंह ने मृत्यु को भी पत्रकारिता करते हुए ही अंगीकार किया। निधन के दिन भी अपने समाचार पत्र के कार्यालय में उन्होंने देर रात तक कार्य किया। ‘मरने तक थकेंगे नहीं वाला हौसला था उनमें’, शीतला सिंह सदैव पत्रकारिता में रहेंगे।
शीतला सिंह द्वारा निकाले गए समाचार पत्र जनमोर्चा की संपादक सुमन गुप्ता ने कहा कि मुझे तीन दशक तक उनके साथ काम करने का सौभाग्य मिला। तत्कालीन फैजाबाद से उनके सान्निध्य में मैने काम शुरु किया। तब वहां कोई महिला पत्रकार नहीं थी। समय की पाबंदी और अन्य अनेक पत्रकारीय बाध्यताओं के साथ मैने उनसे पत्रकारिता सीखी। उस दौर में जब लोग प्रतियोगिता के चलते अपनी खबरें लीक नहीं होने देते थे तब वे फोन करके लोगों को जानकारियां देते थे। शीतला सिंह के संघर्ष के रास्ते पर चलकर पाए गए सम्मान ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया। शीतला सिंह ने अपना घर नहीं बनाया, अपना अखबार बनाया। अखबार का बिछौना अखबार का बिस्तर बनाकर सोने वाले पत्रकार थे शीतला सिंह जी।
पत्रकार शीतला सिंह के निधन पर आयोजित इस शोक सभा में मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के सचिव शिव शरण सिंह, वरिष्ठ पत्रकार प्रद्युम्न तिवारी, के बख्श सिंह, आदि ने भी उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए अपनी बात रखी। श्रद्धांजलि सभा में बड़ी संख्या में प्रिंट एवं एलक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वृत और समकालीन पत्रकार गण मौजूद रहे।