राघवेन्द्र प्रताप सिंह : असम सरकार ने नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में मध्यकालीन युग के भक्ति युगीन संत श्रीमंत शंकरदेव के नाम पर एक पीठ की स्थापना के लिए जेएनयू प्रबंधन के साथ समझौता किया है। यह पीठ नयी दिल्ली स्थित जेएनयू के संस्कृत एवं प्राच्यविद्या अध्ययन संस्थान में स्थापित की जाएगी। इस बाबत असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा और जेएनयू के कुलपति संतश्री धूलिपुडी पंडित की उपस्थिति में बृहस्पतिवार को यहां एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए गए है।
असम के मुख्यमंत्री ने इस सन्दर्भ में कहा है कि, “यह महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव के शाश्वत आदर्शों को बढ़ावा देने और उनका प्रचार-प्रसार करने के लिए असम सरकार द्वारा की गई एक पहल है।”उन्होंने कहा कि एमओयू का मकसद राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संदर्भों में महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव के भक्ति आंदोलन पर चर्चा और शोध को बढ़ावा देना है।
यह पहल समकालीन भारतीय समाज में महान संत एवं दार्शनिक श्रीमंत शंकरदेव और उनके वैष्णव आंदोलन की स्थायी प्रासंगिकता पर अध्ययन को भी बढ़ावा देगी। श्रीमंत शंकरदेव एक असमिया संत-विद्वान, सामाजिक-धार्मिक सुधारक, कवि और नाटककार थे, जो असम के 15वीं-16वीं शताब्दी के सांस्कृतिक एवं धार्मिक इतिहास में विशेष स्थान रखते हैं।
आपको बता दें कि 27 फरवरी, 2022 को असम सरकार ने उन स्थानों पर ‘नामघर’ (वैष्णव मठ) स्थापित करने का निर्णय लिया, जहां 15वीं शताब्दी के संत और समाज सुधारक श्रीमंत शंकरदेव ने बत्रादव (असम) से कूचबिहार (पश्चिम बंगाल) की यात्रा के दौरान कम से कम एक रात बिताई थी।
श्रीमंत शंकरदेव कौन थे?
श्रीमंत शंकरदेव 15वीं-16वीं सदी के असमिया संत-विद्वान, नाटककार, संगीतकार, कवि, नर्तक, अभिनेता और सामाजिक-धार्मिक सुधारक थे। वह असम के सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। उन्हें व्यापक रूप से पिछले सांस्कृतिक अवशेषों के निर्माण और नाट्य प्रदर्शन (अंकिया नाट, भाओना), संगीत (बोरगीत), साहित्यिक भाषा (ब्रजावली) और नृत्य (सत्रिया) के नए रूपों को तैयार करने का श्रेय दिया जाता है। वे 15वीं और 16वीं शताब्दी के बहुआयामी आध्यात्मिक गुरु थे। वह एक महान आत्मा थे जिन्होंने असमिया लोगों में राष्ट्रवादी भावना का संचार किया। शंकरदेव ने गुरु नानक, नामदेव, रामानंद, कबीर, बसव और चैतन्य महाप्रभु की तरह ही असम में भक्ति आंदोलन को प्रेरित किया।