नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 2002 में गोधरा में ट्रेन के एक कोच में आग लगाकर 59 लोगों की हत्या के दोषी 8 लोगों को जमानत दे दी है। इन सभी को ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट से उम्र कैद की सजा मिली थी। कोर्ट ने गुरुवार को इन्हें 17-18 साल जेल में बिताने के आधार पर जमानत दी है। कोर्ट ने निचली अदालत से फांसी की सजा पाने वाले 4 को जमानत से मना कर दिया है।
गुजरात सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने 20 फरवरी को सुनवाई के दौरान अपराध को जघन्य बताते हुए जमानत दिए जाने की मांग का विरोध किया था। सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों के नाम, अपराध में उनकी भूमिका और जेल में बिताए गए समय संबंधी चार्ट कोर्ट में दाखिल करने का निर्देश दिया था। 30 जनवरी को सुनवाई के दौरान दोषियों की ओर से कहा गया था कि उनका दोष सिर्फ यही था कि इन्होंने सिर्फ पत्थरबाजी की थी, लेकिन वो उम्रकैद की सजा भुगत रहे हैं। इस पर तुषार मेहता ने कहा था कि सिर्फ पत्थरबाजी ही नहीं, इन लोगों ने ट्रेन की बोगी में आग भी लगाई थी।
पहले की सुनवाई के दौरान मेहता ने कोर्ट को आश्वस्त किया था कि वह हर दोषी की भूमिका की जांच करेंगे कि क्या वाकई इनमें से कुछ लोगों को जमानत पर रिहा किया जा सकता है। 15 दिसंबर 2022 को कोर्ट ने इस मामले के दोषी फारुख को 17 साल से जेल में होने के आधार पर जमानत दी थी।
दरअसल, 27 फरवरी, 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस की एस-6 बोगी में आग लगाई गई थी, जिसमें 58 लोगों की मौत हो गई थी। साबरमती एक्सप्रेस से यह कारसेवक अयोध्या से लौट रहे थे। की इस घटना के बाद गुजरात में सांप्रदायिक दंगे हुए थे। इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने 2011 में 31 लोगों को दोषी करार दिया था। इनमें से 11 को फांसी की सजा और 20 को उम्रकैद की सजा हुई थी। इस मामले में 63 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया गया था।
गुजरात हाई कोर्ट ने 2017 में ट्रायल कोर्ट से फांसी की सजा मिले 11 दोषियों की सजा कम करते हुए उसे उम्रकैद में तब्दील कर दिया था और 20 को मिली उम्रकैद की सजा बरकरार रखी थी।