#निकाय चुनाव प्रचार के स्टार प्रचारकों की सूची में एक भी मुसलमान नहीं, आज़म और अब्दुल्ला भी नहींं। यादव भी दाल में नमक के बराबर।
हिजाब हुस्न को ढकने के लिए होता है। इससे ना किसी की नज़र पड़ती है और ना नज़र लगती है। हिजाब से हुस्न कम नहीं होता बल्कि महफूज रहता है। मुसलमान समाजवादी पार्टी का हुस्न है और सपा के स्टार प्रचारकों की सूची हिजाब है। सपा ने यूपी निकाय चुनाव के चालीस स्टार प्रचारकों की सूची जारी की तो लोगों को आश्चर्य होने लगा कि इतनी बड़ी लिस्ट में एक भी मुसलमान नहीं। यहां तक कि आज़म ख़ान और उनके बेटे अब्दुल्ला आज़म ख़ान तक इस स्टार प्रचारक की सूची में शामिल नहीं हैं।यादव भी दांव में नमक के बराबर भी नहीं है। ज्यादातर ग़ैर यादव पिछड़े और अति पिछड़े नेताओं को स्टार प्रचारक की जिम्मेदारी दी गई है। सपा प्रवक्ता मनोज यादव कहते हैं कि इसका मतलब ये नहीं कि मुसलमान या यादव की एहमियत पार्टी में कम हुई है। उनकी पार्टी में सर्व समाज की हिस्सेदारी रहती है। ख़ासकर प्रत्येक पिछड़ी जातियों, अति पिछड़ों और दलितों का उत्थान पार्टी का सियासी लक्ष्य है।
दरअसल पार्टी मुखिया अखिलेश यादव नहीं चाहते कि उनकी पार्टी को एम वाई तक सीमित रखने की साज़िश रचने वाले कामयाब हों। वो इस रेखा को तोड़ना चाहते हैं। भाजपा से लड़ने की ये मजबूत रणनीति है। ये बात अन्डर्स्टुड है कि बिना ओहदों के भी मुसलमान और यादव सपा में रुतबे में ऩबर वन ही हैं। एक्सटर्नल से ज्यादा इंटर्नल ताक़त होती है। शरीर के ऊपर लगाने वाली दवा से खाने वाली दवा ज्यादा असरदार होती है। ये बात सच भी है सत्ता परिवर्तन के पक्ष वाला मुस्लिम वर्ग यही चाहता भी है कि पार्टी पर से एम वाई का टैग हटे ताकि हिन्दू समाज का हर वर्ग सपा को विकल्प के रूप में स्वीकार करे। मुस्लिम समाज में राजनीति समझ बढ़ रही है। वो सियासत के शगुन का लिफाफा नहीं रकम बनना चाहता हैं। मुस्लिम समाज के ऐसी मंशा, सहयोग और अंडरस्टेंडिंग वाली पार्टी की रणनीति ही सपा को मजबूत करती है और भाजपा के मुक़ाबिल खड़ा करती है।
मुसलमान और यादव समाजवादी समाजवादी पार्टी का आधार है। गैर यादव पिछड़ों, अति पिछड़ों का थोड़ा साथ भी मिल जाए तो सपा कामयाबी की राह पकड़ सकती है। इसलिए पार्टी के अंदर-बाहर का मुस्लिम और यादव समाज ही चाहता है कि उसे पार्टी के एक्सटर्नल शो ऑफ से दूर रखा जाए, ताकि सपा पर से एम-वाई का टैग हटे और गैर यादव पिछड़े/अति पिछड़े/दलित समाज सपा की ताक़त बने। यही कारण हैं कि चुनाव का टिकट हो, पार्टी पद हों या स्टार प्रचारकों की सूची हों, इसमें मुसलमान और यादव या तो गायब होते हैं या दाल में नमक के बराबर होते हैं। फिर भी मुस्लिम और यादव समाज इससे नाराज नहीं बल्कि संतुष्ट रहता है।
पार्टी चाहती है कि अपने आधार एम वाई को सबसे बड़ी इन्टर्नल ताक़त दे और एक्सटर्नल यानी नजर आने वाली सूचियों से दूर रखें। चुनावी प्रचार के मंचों पर भी अखिलेश यादव की ये कोशिश रहती है कि पिछड़ों-अति पिछड़ों को अधिक से अधिक स्थान मिले ताकि भाजपा को मौका ना मिले कि वो सपा को यादव और मुसलमानों की पार्टी कहे। सपा की योजना है कि भाजपा दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों के जनसमर्थन पर कब्जा जारी ना रख सके। और सपा को शिकस्त देने वाले हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण में भाजपा को कामयाबी ना मिले।