लोकसभा का चुनावी वर्ष है और दिल्ली की कुर्सी का रास्ता तय करने वाले यूपी में कांग्रेस लुप्त और बसपा दुर्लभ सी लग रही है। बची सपा, जो भाजपा से मुकाबला करने की स्थिति में सबसे बड़ा विपक्षी दल है। इसे सभी विपक्षी दलों का ख़ाली स्पेस मिल गया है। सड़क भी है, सदन भी है, संगठन भी है और सत्ता विरोधी मुद्दे भी खूब हैं। लेकिन भाजपा का सौभाग्य ही कहिए कि सपा मुखिया अखिलेश यादव जनकल्याण के लिए सड़क पर ठोस मुद्दे उठाते नजर नहीं आते। जो भी मुद्दा उठाते हैं वो इतना अपरिपक्व साबित होता है कि सफलता का रास्ता तय करने के बजाय उनके पैर का ही फंदा बन जाता है।
जनसरोकार से जुड़े प्रदेश की जनता के तमाम मुद्दों को छोड़कर अखिलेश ने बीते बुधवार सारस के मुद्दे को ज़ोर-ओ-शोर से उठाया।
यूं कहिए कि राज्य पक्षी सारस को सियासत ने सियासी पक्षी बना दिया। उत्तर प्रदेश के अमेठी निवासी आरिफ से उसके दोस्त सारस के बिछड़ जाने की कहानी मीडिया और सोशल मीडियाकर्मियों की सुर्खियों में छाई हुई थी। पूर्व मुख्यमंत्री और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे सियासी रंग देकर इस कहानी को नया मोड़ दे दिया।
अखिलेश यादव आरिफ और उसके दोस्त सारस के बीच आने वाले वन विभाग से इतना ख़फा हुए कि उन्होंने विरोध व्यक्त करने के लिए बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि मै आरिफ और उसके सारस से मिलने गया था इसलिए वन विभाग सारस को ले गया।
दरअसल सारस को कोई क़ैद नहीं कर सकता, यहां तक की वन विभाग भी नहीं। आरिफ ने भी इस सारस को क़ैद नहीं किया था। एक पक्षी प्रेमी मनुष्य और पक्षी की वफादारी की मिसाल वाली कहानी सालभर पहले शुरू हुई था।
आरिफ ने अपने खेत में घायल पड़े इस सारस की जान बचाई थी, तब से वो सारस आरिफ के घर आता जाता था। साथ में खाता-पीता, घूमता, खेलता और पारिवारिक सदस्य की तरह उससे और उसके परिवार से मोहब्बत जताता था। उड़ कर अपने साथी पक्षियों के संग चला जाता, फिर आरिफ के घर आ जाता। ये सिलसिला जारी था।
ये बात जब चर्चा में आई तो वन विभाग की टीम ने इस सारस को समसपुर पक्षी विहार में शिफ्ट कर दिया। ताकि इस नायाब पक्षी की रक्षा-सुरक्षा और मेडिकल चैकअप इत्यादि हो। दुर्लभ पक्षियों के संरक्षण के लिए बनें हर पक्षी विहार का उद्देश्य पक्षियों को क़ैद करना या किसी से जुदा करना नहीं होता। यहां पूरी आजादी होती है और साथ-साथ देखरेख, खान-पान, मेडिकल का इंतेज़ाम होता है। संरक्षण और नस्ल बढ़ाने के मकसद से पक्षियों को स्वतंत्र रुप से रखा जाता है। ये क़ैद नहीं किए जाते, कहीं भी आ जा सकते हैं। आरिफ खुद कहते हैं कि उनका दोस्त सारस पहले की तरह उनसे मिलने और उनके साथ भोजन करने अवश्य आएगा। उन्हें इस बात की पूरी उम्मीद है। लेकिन अखिलेश यादव ने इस क़िस्से को सियासी ट्रेजेडी का रंग दे दिया। इस मसले पर प्रेस कांफ्रेंस की और सारस के पक्षी बिहार जाने की बात को आज़म खान के जेल जाने से भी जोड़ दिया।
इस पर सोशल मीडिया मे मुस्लिम समाज का रिएक्शन दिलचस्प नज़र आ रहा है। ख़ास कर ऐसे लोग खूब तंज कर रहे हैं जो लोग अखिलेश यादव पर आरोप लगाते हैं कि वो मुस्लिम समाज का वोट तो ले लेते हैं पर उनके मसायल पर रिएक्ट तक नहीं करते। आज़म खान के सपोर्ट में भी सपा अध्यक्ष उतना मुखर नहीं हुए जितना होना चाहिए था। ऐसी सोच रखने वाले कुछ मुस्लिम कह रहे हैं कि अखिलेश की नजर में आजम खान से ज्यादा अहमियत सारस की है। सारस के जाने पर प्रेस कांफ्रेंस की तो इसके बाद आज़म खान का दर्द भी बयां कर दिया। आज़म से अच्छा तो सारस ही है। आज़म और उनका परिवार लम्बे अरसे तक जेल में रहा, पिता और उनके पुत्र की विधायकी रद्द हुई। पूरा परिवार बिखर गया लेकिन इसे लेकर सपा मुखिया ने कभी प्रेस कांफ्रेंस नहीं की। सोनिया गांधी और राहुल गांधी से ईडी ने पूछताछ भी की तो कांग्रेस सड़कों पर उतर आए। दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया जेल भेजे गए तो आम आदमी पार्टी ने दिल्ली सहित कई राज्यों में धरना-प्रदर्शन किया। आज़म खान के जेल जाने पर सपाईयों ने क्या किया ?
एक पुराने समाजवादी बुजुर्ग कहते हैं जिस तरह सारस के मसले पर बोले हैं ऐसे ही अपने सबसे बड़े वोट बैंक मुस्लिम समाज के मसले-मसायल पर भी अखिलेश जी आप कभी प्रेस कांफ्रेंस कर लें। आरिफ से सारस का मिलन फिर हो जाएगा लेकिन आपसे अकलियत जुदा हो गई तो सपा का क्या होगा! आपकी बेरुखी कम नहीं हुई तो ताजुब नहीं कि मुस्लिम समाज भी समाजवादी पार्टी में लुप्तप्राय बन कर रह जाएगा।