भाजपा ने भारतीय राजनीति की कुछ परंपराओं के विपरीत अपने तौर-तरीके तय किए हैं। सत्तारूढ़ दलों की ये धारणा थी कि सदन का संचालन करने वाला स्पीकर ऐसा हो जो अपने कड़े तेवरों से बेक़ाबू सदस्यों को काबू कर लें। ‘लोहा लोहे को काटता है’ की तर्ज पर ज्यादातर दल ऐसे सदस्य को स्पीकर की ज़िम्मेदारी देते थे जो अपने तल्ख तेवरों से सदन की गर्मी को ठंडा कर दें। इस धारणा से अलग भाजपा ने गांधीवादी फार्मूले से कटुता को शालीनता से काबू करने वाले को स्पीकर की जिम्मेदारी देने का सिलसिला जारी रखा है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार के पहले कार्यकाल में हृदय नारायण दीक्षित को विधानसभा अध्यक्ष का पद सौंपा था। जिन्होंने अपने कार्यकाल में सदन की तल्खियों को कम करने के सफल प्रयास किए थे।
उनके कार्यकाल में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती के दिन विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का फैसला किया था।महात्मा गांधी की 150 जयंती पर यूपी विधानसभा का विशेष सत्र लगातार 36 घंटे चला था। सत्र 2 अक्टूबर की सुबह 11 बजे शुरू हुआ था जो 3 अक्टूबर की रात 11 बजे तक चला था। इस एतिहासिक विशेष सत्र की सफलता में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित का बड़ा योगदान था।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दूसरे कार्यकाल में मृदभाषी सतीश महाना को विधानसभा अध्यक्ष की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। सीधे, सरल, मिलनसार, हरदिल अज़ीज़ महाना के सामने सत्तारूढ़ भाजपा और सबसे बड़े विपक्षी दल सपा के सदस्यों के बीच टकराव को काबू करना बड़ी चुनौती है। तीखे माहौल में मिठास भरने की कोशिश में महाना निरंतर प्रयास कर रहे हैं। हॉट टॉक को कूल करने का हुनर वो बखूबी जानते हैं। पहले विधानसभा सत्र से ही उन्होंने सदन में शिष्टाचार क़ायम रखने के लिए तमाम नई पऱपराओं और कुछ सराहनीय कार्यक्रमों का सिलसिला शुरू किया था। माननीयों के जन्मदिन पर उनको बधाई देने से लेकर सत्ता और विपक्ष को एक टेबिल पर बैठाकर खाने की दावत के पीछे विधानसभा अध्यक्ष का यही निहितार्थ है कि आपसी सौहार्द क़ायम रहे।
संसदीय गरिमा की रक्षा करना सदन के सभी सदस्यों का दायित्व है। नेता सदन से लेकर नेता प्रतिपक्ष और सभी सदस्यों के बीच गर्मा-गर्मी आम बात है,पर अशोभनीय तकरार या झड़प लोकतांत्रिक व्यवस्था की शोभा को अशोभनीय बना देती है। विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) के विवेक और हुनर पर निर्भर करता है कि वो किस तरह ऐसी स्थितियों को क़ाबू करें, या ऐसी स्थितियों की पुनरावृत्ति को रोकने का किस प्रकार प्रयास करें।
सतीश महाना में ऐसी ही खूबियां हैं कि वो सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गर्मा-गर्मी और क्रोध को ठंडा करके सबके चेहरों में मुस्कुराहट ला ला सकते हैं। कुशल व्यवहार के धनी होने के कारण विपक्षी भी उनका ख़ूब सम्मान करते हैं इसलिए महाना को पक्ष और विपक्ष के बीच आपसी सामंजस्य बनाने और अनुशासन हीनता को काबू करने में ज्यादा मुश्किल नहीं होती।
ये बात उन्होंने साबित कर दी है। सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। शनिवार को यूपी विधानसभा में चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव में काफी तीखी तकरार हो गई। लेकिन रविवार को खाने की टेबिल पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव व अन्य सत्ता-विपक्ष के महत्वपूर्ण सदस्यगण हंसते-मुस्कुराते दिखे। किसी के भी चेहरे पर विरोध, प्रतिद्वंदता और कटुता का ज़रा भी भाव नहीं था। विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने बीते रविवार को अपने निवास पर योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव सहित सत्ता और विपक्ष के महत्वपूर्ण नेताओं को खाने की दावत दी थी। भोजन में कितना तीखापन या कितनी स्वीट्स डिश थीं नहीं पता, किंतु खाने की टेबिल पर बैठे दोनों दलों के नेताओं के दिल मिलते नज़र आए। इनमें आपसी सौहार्द, सामंजस्य और आत्मीयता दिखी रही। लग ही नहीं रहा था कि बीते शनिवार को सदन में यही नेता बहस के दौरान क्रोधित होकर तीखे तेवर दिखा रहे थे।
खाने की टेबिल पर योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव की हंसती-मुस्कुराती तस्वीरें मीडिया में छा गईं, सोशल मीडिया में वायरल हुईं।लोग कहने लगे महाना दो मुहानों की दूरी पर खड़े राजनीतिज्ञों के बीच सौहार्द का पुल बनने की खूबी रखते हैं। वो हॉट-हॉट को कूल-कूल कर देने के जादूगर हैं।