( शाश्वत तिवारी) : सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को बढ़ावा देने के लिए यूनेस्को ने 21 फरवरी को 1999 में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में नामित किया था। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के 24 वें संस्करण का विषय “बहुभाषी शिक्षा- शिक्षा को बदलने की आवश्यकता” था। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर अलग-अलग जगहों पर कार्यक्रम आयोजित किये गए। इस दिन पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में लोग उन लोगों को श्रद्धांजलि देते हैं जिन्होंने एक भाषा के रूप में बंगाली की पहचान बनाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। इसे एकुशे फरवरी ‘मातृभाषा दिवस’ या ‘शाहिद दिबाश’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को मनाने के लिए कोलकाता में विभिन्न जुलूस और कार्यक्रम आयोजित किए गए थे।
बंगाली भाषा भारत और बांग्लादेश को भी जोड़ती है। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर बांग्लादेश पुस्तकालय और सूचना केंद्र से बांग्लादेश उप उच्चायोग तक एक ‘प्रभात फेरी’ का आयोजन किया गया था। वहीँ कोलकाता से पंद्रह साइकिल चालक सात दिवसीय यात्रा के अंत में ढाका पहुंचे सदस्यों ने बताया पहली बार हम 2012 में ‘भाषा दिबाश’ समारोह में भाग लेने के लिए ढाका गए थे। हमें जिस तरह का आतिथ्य मिला था, उसके बाद हर साल हम वहां वापस जाते हैं।
दुनिया में लगभग 6,500 भाषाएँ हैं और बांग्ला वर्तमान में छठी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। हालाँकि, विश्व स्तर पर, लगभग 40 प्रतिशत आबादी के पास उस भाषा में शिक्षा की कमी है जो वे बोलते हैं और अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के पीछे का मकसद भाषाओं और इसके महत्व को बढ़ावा देना और संरक्षित करना है। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर श्रीलंका में भी कार्यक्रम हुआ जिसके बाद श्रीलंका में भारतीय दूतावास ने ट्वीट किया और कहा कि भाषा सेतु बनाती है और लोगों को जोड़ती है। वहीँ दिल्ली में बांग्लादेश के उच्चायुक्त मो0 मुस्तफ़िज़ुर रहमान भी यही कहते हैं कि भाषा भारत और बांग्लादेश को जोड़ती है।